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Types of Music instruments I Vadhya aur unke prakaar in Hindi Indian Music theory

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Types of Music instruments in Hindi Indian Music theory in Hindi is described in this post of Saraswati sangeet sadhana .

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Types of Music instruments

 

Vadhya & Types of vadhya

हमारे वाद्य और उनके प्रकार

  • आदि काल से संगीत में वाद्यो का प्रयोग होता रहा है। अजंता,ऐलोरा और ऐलीफेंटा की चित्रकारी व मोहनजोदड़ो के भग्नावशेष में तथा वेद, उपनिषद आदि ग्रंथों में विभिन्न वाद्यो का उल्लेख हुआ है।
  • भगवान शंकर का प्रिय वाद्य डमरु और भगवती सरस्वती की प्रिय वाद्य वीणा मानी गई है। समस्त भारतीय वाद्यो को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है – तत, सुषिर, अवनद्ध और घन। यह विभाजन पं० शारंगदेव द्वारा लिखित ‘संगीत रत्नाकर’ पर आधारित है।
  • तत,सुषिर,अवनद्ध और, घन वाद्यतन्त्री ततं वाद्य सुषिरमतम् ।।

चर्मावनद्धवदनमवनद्धं तु वाद्यते, घनोमूर्तिं: साअभिधाताद्वधते यंत्र तदधनम्।।

    — संगीत रत्नाकर

ततवाद्य

जिन वाद्यो में तांत अथवा तार द्वारा स्वर उत्पन्न होते है, वे ततवाद्य कहलाते है, जैसे तानपूरा, सितार, सारंगी, वाइलिन ईत्यादी। वीणा ततवाद्यो की जननी मानी जाती है। ततवाद्यो को पुनः तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

(अ) जो वाद्य अंगुलियों, मिजराब अथवा जवा से बजाये जाते है, जैसे- सितार,वीणा, तानपूरा,सरोद इत्यादि।

(ब)जो गज अथवा कमानी से बजाये जाते है, जैसे- बेला, सारंगी, दिलरुबा आदि।

 (स)जिनमें लकडी से आघात उत्पन्न करने से स्वर उत्पन्न होता है जैसे- पियानो।

(2) सूषिर वाद्य

जिन वाद्यो में स्वरोत्पत्ति वायु द्वारा होती है, वे सूषिर वाद्य कहलाते है, जैसे हारमोनियम,शहनाई, क्लैरिनट,बांसुरी,शंख,तुरही इत्यादि। इस वाद्यो को भी हम दो भागों में बाँट सकते है-

(अ) हला विभाग उन वाद्यो का है जिनमें पतली पत्ती अथवा रीड द्वारा स्वर उत्पन्न होते है जैसे- हारमोनियम,शहनाई आदि।

(ब) दूसरा प्रकार उन वाद्यो का है जिनमें  छिद्र द्वारा निकलते है, जैसे- बांसुरी, बिगुल, शंख आदि।

(3) अवनद्ध वाद्य

भारतीय वाद्यो का तीसरा प्रकार अवनद्ध वाद्यो का है। इन वाद्यो में चमडे अथवा खाल को आघात करने से ध्वनि उत्पन्न होती है, जैसे- तबला,पखावज, डमरु, नगाड़ा, भेरी इत्यादि। इनका प्रयोग ताल देने के लिये होता है, क्योंकि इनसे केवल एक स्वर उत्पन्न होता है। अतः इन वाद्यो में स्वर की अपेक्षा लय की प्रधानता अधिक होती हैं। ये वाद्य मुख्यतः गायन और वाद्य की संगति के लिये प्रयोग किये जाते है।

(4) घन वाद्य 

वाद्यो का अंतिम प्रकार घन वाद्यो का है। इनमें किसी धातु अथवा लकड़ी द्वारा स्वरोत्पत्ति होती है, जैसे- मंजीरा, झांझ, करताल, जलतरंग, कांच- तरंग, नल तरंग आदि।

वाद्यो का उपर्युक्त विभाजन आकार, उपयोग और उनके बजाने के ढंग पर आधारित है।

वाद्य – विभाजन की दृष्टि से विद्वानों के तीन मुख्य मत पाये जाते है।

प्रथम मतानुसार सम्पूर्ण वाद्यो को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है- तत, घन और सूषिर। इसमें अवनद्ध को घन में सम्मिलित कर लिया गया है।

दूसरे मतानुसार चार भागों में विभाजित किया गया है, इसके भी दो प्रकार है।

पहले प्रकार से समस्त वाद्यो को  तत, घन, अवनद्ध और सूषिर भागों में दूसरे प्रकार में तत, वितत, घन और सुषिर भागों में विभाजित किया गया है। इस विभाजन में अवनद्ध को घन में सम्मिलित कर लेते है और वितत को तत से पृथक कर देते है।

मिजराब अथवा जवा से बजाये जाने वाले वाद्य तत और छड़ी अथवा कमानी से बजाये जाने वाले वाद्य वितत कहलाते है। इन दोनों में समता यह है कि दोनों प्रकार के वाद्यो में तांत अथवा तार द्वारा स्वरोत्पत्ति होती है।

तृतीय मतानुसार कुल वाद्यो को पांच भागों में विभाजित किया गया है- तत, वितत, घन, अवनद्ध और सुषिर।

अधिकांश विद्वानों द्वारा ‘ संगीत रत्नाकर’ का विभाजन जिस पर पीछे प्रकाश डाला जा चुका है मान्य है।

Indian classical music theory in hindi..

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