Preveshika poorna 2nd Exam
प्रेवेशिका पूर्ण वर्ष
गायन – वादन
पूर्णांक : 125 नियुनतम 44
क्रियात्मक : 75 शास्त्र (मौखिक ) : 50 नियुनतम 44
क्रियात्मक :
- स्वरज्ञान : –
- शुद्ध स्वरोंके साथ गाये / बजाये हुए कोमल तथा तीव्र स्वरों को पहचानने की क्षमता ।
- पहले शिखे सभी अलंकारों का दृइट लय में अभ्यास ।
- निम्नलिखित 6 नये अलंकारोन्न का विभिन्न रगों में तथा विभिन लय में लयकारी (एक मात्रा में एक / दो / तीन / चार / स्वर ) में हाथ से लय देकर प्रयोग करने का अभ्यास ।
3.1) सा ग रे सा , रे म ग रे , ………..सां ध नि सां ।
3.2) सा रे सा ग , रे ग रे म …………सां नि सां ध ।
3.3) सा रे ग रे ग सा रे , रे ग म ग म रे ग ……….(रूपक ताल में )
3.4) सा रे ग रे सा , रे ग म ग रे …………………..(झप ताल में)
3.5) सा म ग रे , रे प म ग …….सां प ध नि ….
3.6) सा रे ग रे ग – , रे ग म ग म – …………………(एक ताल में )
आ) राग ज्ञान :-
(1) पिछले वर्ष के सभी रागों की पुनराव्रत्ति के साथ इस वर्ष यमन (अथवा कल्याण ) और भूपली इन रगों के बड़े खयाल / मसीटखनी गत्ते (केवल बंदिश / गत ) गाना / बजाना अपेक्षित है । रागविस्तार अपेक्षित नहीं है ।
(2) अध्ययन के लिए राग – भेराव , अलहिया बिलावल ,केदार , बागेश्री , बिहाग , मल्कौंस , खमाज।
(3) इन रागों में आरोह – अवरोह , प्रारम्भिक आलाप और एक मध्यालय का खयाल / राजलहानी गत पाँच आलाप तथा पाँच तानो सहित (7 मीन तक ) गाने / बजने की तैयारी का अभ्यास ।
(5) गायन के लिए मण्डल की प्रथना “जय जगदीश हरे ” और एक भजन या लोकगीत शिखाया जाए । वादन के लिए लोकधुन और विशिस्त वादन क्क्रियाओं की तैयारी का अभ्यास ।
(6) गए / बजाए हुए आलापों द्वारा राग पहचानने की क्षमता अपेक्षित है ।
ताल ज्ञान :–
- झपताल ,रूपकताल ,धमार एन तालों की जानकारी ।
- तबले एर बजते हुए तालों को (बोलोंसे ) पहचानने का अभ्यास – कहरवा, दादरा , तीन ताल , एकताल ,झपताल ,रूपक , चौताल ,धमार,।
- तीनताल , एकताल , चौताल , धमार , रूपक और झपताल हाथ से ताल देकर (ताली – खाली दिखाकर ) दुगुन में बोल्न ।
शस्त्रा (मौखिक) : –
- पिछले वर्ष के सभी पारिभाषिक शब्दों की जानकारी की पुनराव्रत्ति अनिवार्य ।
- निम्नलिखित विषयों की वणनात्मक साधारण जानकारी । भारतिए संगीत की दो मुख्य प्ध्द्तियों के नाम – 1) उत्तर संगीत 2) दंक्षिण भारतीय ( करनाटक ) । नाद की व्याख्या और उसकी विशेषता के तीन नाम – 1) छोटा बड़ापन , 2) ऊँचान – नीचपन , 3) जाती अठुवा गुण । गांक्रिया / वण के नाम – 1) स्थायी , आरोही – अवरोही , 3) संचारी , 4) आभोग । गीत के प्रकार – द्रुपद , धमार , ख्याल , भजन , लक्षण गीत , सरगम गीत । वध्य के लिए – मशीतखनी तथा राजखनी गत तथा सरगमगीत । ध्वनि- नाद – श्रुति , स्वर की जानकारी ।
- पं विष्णु डिगाम्म्बर पुलूसकर तथा पं विष्णु नारायण भातखण्डे स्वरलिपि के छिननोह की संक्षिप्त जानकारी – मंडरा / मध्य / टार स्वर ।सम / खाली / ताली / विभाग , आधी मात्रा(1/2)/ पाँव (1/4) मात्रा ।
- प्रथम व द्वितीय वर्षों के रागों का पूर्ण विवरण – राग में लाग्ने वाले शुद्ध / कोमल / तीव्र स्वर , आरोह- आवरोह , वादी – संवादी , पकड़ , समय ) ।
- अब तक शिखे हुए सभी तालों की मात्र , ठेका , सम , विभाग , ताली , खाली की मौखिक जानकारी और तालों को ठाह (बराबर ) तथा दुगुन लय में बोलने का अभ्यास ।
- पं विष्णु दिगंबर प्लसकर की जीविनी ( 10 वाक्यों में ) ….
- वध्य के अंगों की जानकारी – गायन के परीक्षार्थी तानपूरा की तथा वादन के परीक्षार्थी वध्य की जानकारी देंगे ।
All Gandharva mahavidyalaya syllabus
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