Kathak Praveen 8th Year Syllabus In Hindi Prayag Sangeet Samiti

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Kathak Praveen 8th Year Syllabus In Hindi

कत्थक (शुद्ध सिद्धान्त पाठ्यक्रम )

प्रथम प्रश्नपत्र

  • प्रथम से सप्तम वर्षों के पाठ्यक्रम में निर्धारित नृत्य शास्त्र सम्बन्धी समस्त पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन।
  • नृत्य की प्राचीन, मुगल तथा राजपूत कालों से आधुनिक काल तक की पारस्परिक तुलना एवं उनका आलोचनात्मक अध्ययन।
  • नर्तक नर्तकी तथा नृत्याचार्य आदि के गुण.दोष, नायक के आठ सात्विक गुण, ताण्डव एवं लास्य के भाव, नृत्य में साहित्य का महत्व, पुराणों की कथाओं से नृत्य कला का सम्बन्ध आदि का विस्तृत अध्ययन।
  • भरत नाट्यम कथकली, मणिपुरी, ओड़िसी आदि नृत्यों की उत्पत्ति तथा इतिहास, उनकी शैलियां, विशेषताएँ, भाव.भंगिभा, वेष.भूषा, मेकअप आदि का आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध् ययन। कत्थक नृत्य से उपरोक्त नृत्यों का तुलनात्मक तथा आलोचनात्मक ज्ञान।
  • जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, नागा प्रदेश, मध्य प्रदेश, केरल, तमिलनाडू, आन्ध्र प्रदेश तथा मेसूर के लोक नृत्यों का परिचय, उनकी विभिन्न वेष.भूषा, कला कौशल एवं ताल प्रबन्ध आदि का अध्ययन।
  • रंगमंच पर नर्तन के कर्तव्य, सामूहिक नृत्य में नर्तकों का संगठन, नृत्य को प्रभावोत्पादक बनाने वाले रहस्य, दर्शकों पर नृत्य के पड़ने वाले प्रभावों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन तथा समयानुकुल नृत्य में कलात्मक परिवर्तन आदि विषयों का विस्तृत ज्ञान।
  • संयुक्त, असंयुक्त, वैष्णव, समपाद, वैशाक, मण्डल, आलीढ़, प्रत्यालीढ़, शिर, गीता, उर, पार्श्व, जठर, कटि, जंघा, दृष्टि, भ्रमरी, उत्पलवन आदि भेदों का विस्तृत अध्ययन।
  • नौ रसों का पूर्ण ज्ञान। रसों की व्याख्या तथा उन्हें प्रदर्शित करने का ढंग और प्रसुतीकरण के समय ध्यान देने योग्य बातें। रस नृत्य का एक प्रधान अंग है, इसे समझाएं।
  • भूमिचारी, आकाशचारी, भूमि मण्डल, आकाश मण्डल आदि के भेद विष्णुकाल, जीवकाल, गुणकाल, युगकाल, तत्वकाल, ऋतुकाल आदि क्रियाओं के भेद, सृष्टि के सप्त पदार्थ, नीति पाठ, अंकन पाठ, नृत्य अंकन विधान, हस्तपाद आदि की व्याख्या, नृत्य में दिशाओं, का महत्व, व्यूह क्रिया आदि का विस्तृत अध्ययन।
  • मैनवी, मानवी, गजगामिनी, तुरंगिनी, हंसनी, मृगी और खंजरीटी आदि का वर्णन। भाव पाठ, नयनपाठ, बोलभाव, अर्थभाव, रूपभाव, नृत्यभाव, गत अर्थ भाव और अंगभाव आदि का विस्तृत अध्ययन।
  • भारतीय शास्त्रीय नृत्यों की उत्पत्ति, उनका क्रमिक इतिहास और विकास के विषय में पूर्ण अध्ययन।
  • प्राचीन, मध्य और आधुनिक कालों में प्रचलित नृत्यों पर प्रकाश डालने वाले ग्रन्थों का अध्ययन तथा इन कालों के नृत्याचार्यों का पूर्ण परिचय तथा नृत्य में उनका योगदान।
  • भारत के विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित विभन्न प्रकार के प्रसिद्ध लोकनृत्यों का मानव जीवन से सम्बन्ध तथा जीवन में इनकी प्रतियोगिताओं का अध्ययन।
  • गायन, वादन और नृत्य का पारस्परिक सम्बन्ध। नृत्य में गायन तथा वादन का स्थान और महत्व।
  • बैलेट (Ballet) ओपेरा  रासलीला, अभिनय आदि का सूक्ष्म अध्ययन, इनकी विशेषताएँ तथा अन्य नृत्यों के साथ इनकी तुलना, रस और भाव के साथ इनका सम्बन्ध आदि विषयों का ज्ञान।
  • मूर्तिकला, चित्रकला आदि अन्य ललित कलाओं से नृत्य का सम्बन्ध। अजन्ता, एलोरा आदि मूर्ति कलाओं से नृत्य सम्बन्धी जानकारी, नृत्य में इनकी उपयोगिताएं तथा इनसे नृत्य की महत्ता का स्पष्टीकरण।
  • रस एवं भाव का विस्तृत एवं तुलनात्मक अध्ययन, इनमें पारस्परिक सम्बन्ध, नृत्य में इनका महत्व और इनकी उपयोगिताएं। रस और भाव का जीवन से सम्बन्ध। विभिन्न रसों का विभिन्न रंगों तथा देवताओं आदि से सम्बन्ध।
  • पाश्चात्य नृत्य का इतिहास तथा उनके तत्व। पाश्चात्य देशों के भिन्न.भिन्न स्थानों के नृत्यों का संक्षिप्त परिचय। पाश्चात्य और भारतीय नृत्यों में (Orcherta) का स्थान और उनके रूप। पाश्चात्य नृत्य के ताल तथा उनकी गतियां। पाश्चात्य नृत्य में रस और भाव का स्थान और महत्व। पाश्चात्य देशों के प्रमुख नृत्यकारों का संक्षिप्त परिचय।
  • नृत्य शास्त्र सम्बन्धी विषयों पर लेख लिखने की पूर्ण क्षमता।

द्वितीय प्रश्नपत्र

  • सप्तम वर्ष के पाठ्यक्रम में दिये गए प्रथम प्रश्न पत्र के अनुच्छेद एक में निर्धारित नृत्य सम्बन्धी समस्त पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत व्याख्या के अतिरिक्त निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत व्याख्या, उनका स्पष्टीकरण तथा उनका तुलनात्मक एवं आलोचनात्मक ज्ञान- थाप, घुमरिया, अराल, अल्पदम, अलीढ़, कुट्टन, अत्प्लावन, उपकंठ, उठान, उपांग, किंकिणी, भ्रमरी, उत्प्लावन भ्रमरी, संवाद भ्रमरी, कुंचित, कुंचित भ्रमरी, चक्र भ्रमरी, अनुवृत दृष्टि, आलोकित दृष्टि, अवलोकित दृष्टि, प्रलोकित दृष्टि, मीलित दृष्टि, सम दृष्टि, साची दृष्टि, चक्रमण, चलांचल, चलनचारी, तृयस्त्र, धरू, धम्मिल, पदरी, पाणि, पाद, विन्यास, प्रत्यंग, प्रपद, मोहित, रंग, सरा, सर्पयान, सम्पुट, तिरष्चीव ग्रिवा, परिवर्तित ग्रिवा, प्रकम्पित ग्रिवा, सुन्दरी ग्रिवा, उरमई, सुलप, उरप, तिरप, गुद्ध मुद्रा, धिलाग, थर्र, जमनका, स्तुति, प्रमिलू, पुहुप, पुजरी, गति, चलन, फिरन, शेमा, पिंडी आदि।
  • नृत्य सम्बन्धी समस्त मुद्राआ का विस्तृत ज्ञान एवं विभिन्न नृत्यों में उनका प्रयोग, विभिन्न मुद्राओं का रस और भाव से संबन्ध।
  • ‘मंडल’ शब्द की व्याख्या, इसके भेदों का विस्तृत, आलोचनात्मक तथा प्रयोगात्मक ज्ञान। विभिन्न नृत्यों में मंडल का स्थान और इसकी उपयोगिताएं। रस तथा भाव के साथ मंडल का सम्बन्ध।
  • ‘चारी’ शब्द की व्याख्या। इसके भेदों का विस्तृत आलोचनात्मक तथा प्रयोगात्मक ज्ञान। विभिन्न नृत्यों मे चारी का स्थान तथा इसकी उपयोगिताए। रस और भाव के साथ चारी से सम्बन्ध।
  • ‘करण’ शब्द की व्याख्या, इसमें भेदों का विस्तृत, आलोचनात्मक तथा प्रयोगात्मक ज्ञान। विभिन्न नृत्यों में करण का महत्व और इसकी उपयोगितायें। रस और भाव के साथ करण का सम्बन्ध।
  • ‘अंगहार’ शब्द की व्याख्या। इसके भेदों का विस्तृत, आलोचनात्मक तथा प्रयोगात्मक ज्ञान। विभिन्न नृत्यों में अंगहार का महत्व और इसकी उपयोगिताएं। रस और भाव के साथ इसका सम्बन्ध।
  • शिर, नेत्र, पुततियां, पलम, भृकुटि, नासिका, कपोल, होंठ, दन्त, मुख, चिबुक, ग्रिवा, उर, पार्श्व, जठर, कटि जंघा, पंजा आदि शारीरिक अंगों तथा उपांगो के संचालन के सिद्धान्त। इसके विभिन्न प्रकारों के साथ रस एवं भाव का सम्बन्ध।
  • कत्थक नृत्य के प्रत्येक घरानों की उत्पत्ति और विकास, प्रत्येक घरानों के बोलों का विस्तृत ज्ञान, उनकी विशेषताएं एवं तत्सम्बन्धी आलोचनाएं और स्पष्टीकरण।
  • नृत्य के बोलों तथा तोड़ों की विकास विधि तथा आड़, कुआड़, बिआड़ आदि लभकारियों की पद संचालन द्वारा प्रदर्शित करने की विधि समझाना।
  • ‘लिपि’ शब्द की व्याख्या तथा नृत्य में इसका महत्व, नृत्य सम्बन्धी समस्त बोलों की सही और स्पष्ट रूप से लिपिबद्ध करने का विस्तृत ज्ञान। नृत्य सम्बन्धी एक आदर्श लिपि पद्धिति के निर्माण पर सुझाव।
  • पाठ्यक्रम में निर्धारित समस्त तालों में तथा विभिन्न रागों में लहरों (नगमों) की जानकारी तथा उन्हें लिपिबद्ध करने तथा बजाने का ज्ञान।
  • निम्नलिखित ठुमरी अंग के रागों का संक्षिप्त स्वर विस्तार सहित पूर्ण परिचय तथा इनमें से किन्हीं चार गीतों को लिपिबद्ध करने का ज्ञान- पहाड़ी, आसा, मांड, जंगला, सावनी, सोरठ, गारा तथा बिहारी।
  • कर्नाटक ताल पद्धति का पूर्ण ज्ञान, इसके तालों का विस्तृत अध्ययन, इसके विभिन्न भेद, रूप एवं इन्हें लिपिबद्ध करने की जानकारी, उत्तर भारतीय तालों से कर्नाटक तालों की तुलना।
  • एकल नृत्य  (solo dance)  और सामूहिक नृत्य की पृथक.पृथक व्याख्या, इन दोनों की भिन्नभिन्न विशेषताएं, आवश्यकताएं और महत्व।
  • पिंगल शास्त्र का ज्ञान। छन्द तथा लयकारी का विस्तृत ज्ञान तथा नृत्य में इनका महत्व। रूपपदी, विषमपदी तथा मिश्रपदी तालों का ज्ञान।
  • कत्थक नृत्य के विकास में वृन्दावन का स्थान और योगदान।
  • कत्थक नृत्य की सही और शुद्ध शैली का विस्तृत ज्ञान। वर्तमान समय में कत्थक नृत्य की स्थिति और इसका भविष्य।
  • नृत्य सम्बन्धी विषयों पर लेख लिखने की पूर्ण क्षमता।

क्रियात्मक पाठ्यक्रम

  • प्रथम से षष्टम वर्ष के लिए निर्धारित समस्त क्रियात्मक पाठ्यक्रम की विशेष तैयारी। उनमें निर्धारित सभी तालों में नये, कठिन और सुन्दर लयकारी युक्त टुकड़े, आमद, तोड़े परणें चक्करदार परणें, कवित्र, छन्द, गत, गतभाव आदि के साथ नृत्य करने की पूर्ण क्षमता।
  • पद संचालन में पूर्ण तैयारी। विभिन्न लयों को पदाघात क्रिया द्वारा प्रदर्शित करने का विशेष अभ्यास। सिर, नेत्र, पलक, पुतलियाँ, भ्रकुटि नासिका, कपोल, होंठ, दन्त, मुख, चिबुन, ग्रिवा, हस्ता, उर, पार्श्व, जठर, कटि, जंघा, पंजा आदि शारीरिक अंगों, प्रत्यंगों तथा उपांगों की सुन्दर ढंग से संचालित करने का विशेष अभ्यास।
  • नाचने के पूर्व नृत्य के बोलों, तोड़ों, परणों, आदि को हाथ से ताली देकर बोलने (पढ़न्त) का पूर्ण अभ्यास।
  • निम्न 12 तालों में से किन्हीं भी तीन प्रचलित तथा तीन अप्रचलित तालों में नृत्य सम्बन्धी सभी क्रियाओं के साथ सम्पूर्ण कत्थक नृत्य कला प्रदर्शन की पूर्ण तैयारी – रूपक, झपताल, एकताल, आड़ा चारताल, पंचम सवारी (15 मात्रा), हेमवती अथवा मल्लताल (21 मात्रा), अष्ट मंगल ताल (22 मात्रा), मगध ताल (23 मात्रा), कलानिधि ताल (25 मात्रा), पशुपति ताल (26 मात्रा), कुसुमाकर ताल (27 मात्रा), ध्रुवताल (29 मात्रा),
  • सप्तम वर्ष के पाठ्यक्रम में प्रश्नमूलक क्रियात्मक परीक्षा के अनुच्छेद पांच में निर्धारित नृत्य सम्बन्धी सभी क्रियाओं एवं चीजों की पूर्ण तैयारी होनी चाहिए। बिआड़ी एवं महाकुआड़ी आदि तालों की परणें, कमाली चक्करदार परण, कृष्ण परण, दुर्गा परण, विष्णु परण, सरस्वतीपरण, सिंहावलोकन परण, काली परण, गज परण, नवरतों के ऊपर तथा ऋतुओं के ऊपर रचित परणें, रसखानी परण, शतरंजी परण, रास परण, महारास परण, बिवली परण, लंक विजय परण, देव स्तुति, सरस्वती स्तुति आदि।
  • परीक्षाक द्वारा गये अन्य तालों में भी पूर्ण तैयारी, रस और भाव के साथ नृत्य करने की क्षमता।
  • नृत्य सम्बन्धी समस्त मुद्राओं का समुचित प्रदर्शन।
  • गणेश अथवा शंकर में से किसी एक की स्तुति से नृत्य प्रारम्भ करने का अभ्यास।
  • विभिन्न रसों और उनके भावों को प्रदर्शित करने का पूर्ण अभ्यास।
  • नृत्य सम्बन्धी विभिन्न प्रकार के अभिनय का प्रदर्शन।
  • कत्थक नृत्य के विभिन्न घरानों में पारस्परिक भेद तथा हर एक की विशेषताओं का क्रियात्मक रूप से दर्शाना।
  • निम्नलिखित किन्हीं भी दस कथानकों के आधार पर नृत्य प्रदर्शित करने की पूर्ण क्षमता- मारीच वध, मदन दहन, भीलनी भक्ति, लक्ष्मण शक्ति, सुलोचना मेघनाद चरित, राधा.कृष्ण की कथा, अनिरूद्ध.उषा की कथा, गणेश जन्म, शंकर विवाह, भीष्म प्रतिज्ञा, दानवीर कर्ण की कथा, दधीचि तप, धनुष यज्ञ, युधिष्ठिर बनवास, नारद मोह, हनुमान जन्म, वाली वध, कंस वध, निषाद भक्ति, रूक्मिणी हरण, सुभद्रा हरण, पार्वती तप, सावित्री.सत्यवान कथा।
  • निम्न किन्हीं भी चार रागों में ठुमरी, भजन अथवा होरी गाकर भाव प्रदर्शित करने का अभ्यास। पहाड़ी आसा, मांड, जंगला, सावनी, सोरठ, गारा तथा बिहारी।
  • निम्न चार नृत्य शैलियों में से किसी भी एक शैली के नृत्य का अभ्यास – भरत नाट्यम, मणिपुरी नृत्य, कथकली, ओड़िसी नृत्य।
  • निम्न चार प्रकार के नृत्यों में से किसी भी एक नृत्य की तैयारी – रास नृत्य, आधुनिक नृत्य, शान्ति निकेतन नृत्य, उदय शंकर नृत्य –
  • निम्न प्रदेशों में से किसी भी चार प्रदेशों के एक.एक लोकनृत्य की जानकारी तथा उन्हें प्रदर्शित करने का अभ्यास – जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, नागा प्रदेश, मध्य भारत, केरल, मद्रास, आन्ध्र प्रदेश, मेंसूर।
  • पाठ्यक्रम में निर्धारित समस्त तालों के ठेकों की सीधी तथा विभिन्न कठिन लयकारियों में ताली देते हुए बोलना और उन्हें नृत्य द्वारा प्रदर्शित करने का पूर्ण अभ्यास।
  • समस्त निर्धारित तालों में विभिन्न प्रकार की और विभिन्न मात्राओं की तिहाइयों को ताली देकर बोलना तथा नृत्य द्वारा प्रदर्शित करने का अभ्यास।
  • समस्त निर्धारित तालों में विभिन्न लयकारियों में ततकार करने का पूर्ण अभ्यास एवं तत्कार के विभिन्न पल्टे और दरजे भी होने चाहिए।
  • समस्त निर्धारित तालों में उनकी इच्छानुसार किसी भी वाद्य पर विभिन्न रागों में लहरा (नगमा) बजाने का अभ्यास।

मंच प्रदर्शन

  • मंच प्रदर्शन में निम्न पांच तालों परीक्षार्थी को उनकी इच्छानुसार किन्हीं भी दो तालों में कम.से.कम आधा घंटा पूर्ण तैयारी के साथ अपनी सम्पूर्ण नृत्य कला का प्रदर्शन करना होगा। तत्पश्चात, तीनताल में अधिक.से.अधिक 20 मिनट तक पूर्ण तैयारी के साथ नृत्य करना होगा – बसंत ताल (नौ मात्रा), कुम्भ अथवा चन्द्रमणि ताल (11 मात्रा), जैमंगल अथवा मष्ठिका ताल (13 मात्रा), आड़ा चारताल (14 मात्रा), पंचम सवारी (15 मात्रा)।
  • परीक्षक को अधिकार होगा कि यदि वे चाहें तो निर्धारित समय से पूर्व भी परीक्षार्थी का नृत्य समाप्त करा सकते हैं।
  • मंच प्रदर्शन के समय परीक्षाकक्ष में दर्शक भी नृत्य देखने हेतु उपस्थित रह सकते हैं।

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