Kathak Praveen 7th Year Syllabus In Hindi Prayag Sangeet Samiti

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Kathak Praveen 7th Year Syllabus In Hindi

कत्थक

शास्त्र पाठ्यक्रम

 प्रथम प्रश्नपत्र
  • नृत्य में प्रयुक्त होने वाले समस्त पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत एवं आलोचनात्मक ज्ञान।
  • नृत्य एवं अभिनव के भेद, कत्थक नृत्य के अवयव, थाट लक्षण, नृत्यांग, जाति शून्य, भाव रंग, इष्टपद, गतिभाव, तराना, रूप सौन्दर्य का प्रसाधन आदि का विस्तृत ज्ञान।
  • कत्थक नृत्य की विभिन्न परिभाषा, कत्थक शब्द के लिए पर्यायवाची शब्द और उनके अर्थ, कत्थक नृत्य का क्रमिक इतिहास, इसकी शैलियां, विशेषताएं, भाव.भंगिमा, वेशभूषा, मेकअप आदि का अवलोचनात्मक अध्ययन।
  • पंजाब और हरियाना, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार के लोक नृत्यों का परिचय, उनकी विविध वेशभूषा, कला.कौशल एवं ताल प्रबन्ध का अध्ययन।
  • नृत्य के कुछ प्राचीन अंग जैसे उरमई, सुलप, उरप, तिरप, शुद्ध मुद्रा, लाग, डाट, घिलांग, थर्र, जमनका, स्तुति, प्रमिलू, पुहुपुंजरी आदि की व्याख्या।
  • नायक.नायिका भेद, स्वकीया, परकीया, सामान्य आदि के भेदों का पूर्ण अध्ययन।
  • एकाकी नृत्य युगल नृत्य  सामूहिक नृत्य आदि का परिचय, उनकी महत्वपूर्ण बातें तथा उनको प्रस्तृत करने के नियम आदि का ज्ञान।
  • कत्थक नृत्य में गत, भाव, कवित्त्र, ठुमरी आदि का स्थान, उनके प्रस्तुतिकरण के नियम तथा उनको प्रस्तुत करते समय ध्यान में रखने योग्य बातों का अध्ययन।
  • आरोही अंग, अवरोही अंग, चंचल गति, प्रवाह गति, खण्ड गति, भ्रमर गति, गमन, आगमन, क्रीड़ा, चक्र, अताल स्वभाव, ललित स्वभाव, चक्र के प्रकार (चक्र, विपरीत चक्र, अर्द्ध चक्र), भाव मुद्रा, अनुकरण मुद्रा आदि का सूक्ष्म अध्ययन।
  • नृत्य में घुंघरु का महत्व, घुंघरु कितने होने चाहिए, घुंघरु गूँथने एवं बांधने के नियन, दैनिक अभ्यास एवं प्रदर्शन के घुंघरु, रंगमंच व्यवस्था, प्रकाश, ध्वनि प्रसार यंत्र आदि की विस्तृत जानकारी।
  • कत्थक नृत्य सम्बन्धी नये नये सुन्दर एवं कठिन टुकड़े, तोड़े आदि रचने तथा ताललिपि में लिखने का पूर्ण अभ्यास।
  • चतुस्त्र, तिस्त्र, मिश्र, खंड और संकीण जातियों के भेद, विभिन्न तालों का जातियों से सम्बन्ध, कर्नाटक ताल पद्धति तथा भारतीय ताल पद्धति की तुलना आदि का पूर्ण अध्ययन।
  • रंगमंच की रचना का इतिहास, प्रारम्भ से लेकर आधुनिक काल तक की अवधि में रंगमंच की रचना के विभिन्न रूप तथा उनकी उपयोगिता तथा रंगमंच की आवश्यकता। प्रकाश ;स्पहीजद्ध का नृत्य और रंगमंच से सम्बन्ध। प्रारम्भ से लेकर वर्तमान तक की अवधि में नृत्य तथा रंगमंच के लिए प्रकाश की विभिन्न व्यवस्थाऐं, आवश्यकताएँ तथा उपयोगिताएं।
  • नृत्य में वेशभूषा की आवश्यकता तथा इनका महत्व, वेशभूषा और भाव का पारम्परिक सम्बन्ध, प्रारम्भ से लेकर वर्तमान काल तक की अवधि में वेशभूषा में विभिन्न परिवर्तन एवं उनके औचित्य पर आलोचनात्मक दृष्टि। वेशभूषा और मेकअप सम्बन्धी विभिन्न सुझाव।
  • नाट्य, नृत्य और नृत्य का विस्तृत और तुलनात्मक अध्ययन नाट्य की उत्पत्ति। नाट्य, नृत और नृत्य का जीवन से सम्बन्ध तथा जीवन में उनकी उपयोगिताएं।
  • प्रारम्भ से लेकर वर्तमान काल तक के अवधि में प्रचलित विभिन्न प्रकार के नृत्यों का स्थूल, सूक्ष्म और तुलनात्मक अवलोकन।
  • ताण्डव और लास्य नृत्यों का विस्तृत अध्ययन, इनके विभिन्न भेद, इन दोनों की प्रथक.प्रथक प्रकृतियाँ तथा इन दोनों नृत्यों का ऐतिहासिक तथा रचनात्मक महत्व।
  • नृत्य में कुतप  का स्थान और महत्व। कुतप रचना के सिद्धान्त। नृत्य में कुतप की आवश्यकता तथा इस पर विभिन्न सुझाव।
  • पार्श्व संगीत की व्याख्या, इसका महत्व, नृत्य के साथ इसका सम्बन्ध तथा विभिन्न नृत्यों में इसका स्थान।
  • आधुनिक नृत्य  की व्याख्या, उनकी विभिन्न मुद्रायें। आधुनिक नृत्य के लिए रंगमंच, वेषभूषा, प्रकाश, कुतप आदि की विस्तृत जानकारी। आधुनिक नृत्यों में रस तथा भाव का स्थान। समाज में आधुनिक नृत्य का स्थान। आधुनिक नृत्य का क्रमिक इतिहास तथा इसके आचार्यां का परिचय।
  • नृत्य शास्त्र संबन्धी विषयों पर लेख लिखने की पूर्ण क्षमता।

क्रियात्मक पाठ्यक्रम

  • प्रथम से षष्टम वर्ष के लिए निर्धारित सभी क्रियात्मक विषयों की विशेष तैयारी। उनमें निर्धारित सभी तालों में नये, कठिन और सुन्दर लयकारी युक्त टुकड़े, आमद, तोड़े परणें चक्करदार परणें, कवित्र, छन्द, गत, गतभाव आदि के साथ नृत्य करने की पूर्ण क्षमता।
  • पद संचालन में विशेष तैयारी, विभिन्न लयों को पदाघात क्रिया द्वारा प्रदर्शित करने का पूर्ण अभ्यास। सिर, नेत्र, पलक, पुतलियाँ, भ्रमरि नासिमा, कलोल, होंठ, दन्त, मुख, चिबुन, ग्रिवा, हस्ता, उर, पार्श्व, जठर, कटि, जंघा, पंजा आदि शारीरिक अंगों, प्रत्यंगों तथा उपांगों की सुन्दर ढंग से संचालित करने का विशेष अभ्यास।
  • नाचने से पूर्व नृत्य के बोलों, तोड़ों परणें, आदि को हाथ से ताली देकर बोलने (पढ़न्त) का पूर्ण अभ्यास।
  • निम्नांकित 12 तालों में से किन्हीं भी 3 प्रचलित तथा 3 अप्रचलित तालों में नृत्य सम्बन्धी सभी क्रियाओं के साथ सम्पूर्ण कत्थक नृत्य कला प्रदर्शन की पूर्ण तैयारी – तीवरा, बसंत (नौ मात्रा), सूलताल, कुम्भ अथवा चन्द्रमयी ताल (ग्यारह मात्रा), चारताल, जयमंगल अथवा मंडिका ताल (तेरह मात्रा), धमार, चन्द्रकला अथवा आड़ापक्ष (पन्द्रह मात्रा), तीनताल, शिखर अथवा चूड़ामणी (सत्रह मात्रा), जगदम्बा अथवा त्रिवेणी (उन्नीस मात्रा), कौशिक ताल (अठारह मात्रा)। उपरोक्त 12 तालों में से परीक्षक द्वारा कहे गये अन्य तालों में भी नृत्य करने की क्षमता।
  • पाठ्यक्रम में निर्धारित प्रत्येक ताल में नृत्य सम्बन्धी सभी क्रियाओं एवं तोड़े और परणों के प्रदर्शन की पूर्ण तैयारी, जैसे – थाट, आमद, सलामी, तोड़ो, टुकड़ा, परण, गतभाव, अनुभाव, ततकार, घुमरिया, पल्टा, कवित्र, पढन्त, निकास, तिहाई, प्रमिलू के तोड़े, बढैया की परणें, फरमाइशी चक्करदार परणें, आड़ी.कुआड़ी लय की परणें, चक्करदार नौहक्का, शिव परण, गणेश परण आदि।
  • ताण्डव तथा लास्य नृत्यों में पृथक-पृथक प्रयोग होने वाली मुद्राओं का प्रयोग तथा इनके विभिन्न भेदों का प्रदर्शन।
  • नायक और नायिका के विभिन्न भावों का प्रदर्शन।
  • मंडल, चारी, करण, अंगहार आदि के विभिन्न भेदों का प्रदर्शन तथा इनसे सम्बन्धित रसों और भावों को दर्शाने का अभ्यास।
  • गुए और सरस्वती में से किसी एक की स्तुति से नृत्य प्रारम्भ करने का अभ्यास।
  • निम्नलिखित किन्हीं भी दस कथनकों के आधार पर नृत्य प्रद्रर्शित करने की पूर्ण क्षमता – मारीच वध, मदन दहन, द्रोपदी चरी हरण, भीलनी भक्ती, लक्ष्मण शक्ति, त्रिपुरासुर वध, वामन अवतार, अहिल्या उद्धार, शकुन्तला दुष्यन्त चरित्र, विश्वामित्र मेनका की कथा, पुष्पवाटिका मे सीता और राम के दर्शन, कृष्णा सुदामा की कथा, नल दमयन्ती की कथा, गंगावतरण, भस्मासुर वध, अमृत मंथन, होली लीला, गोपी विरह, मटकी नृत्य, घूंघट नृत्य, पनघट की छेड़छाड़, काली तान्डव, गोवर्धन नृत्य, मुरली नृत्य।
  • कम.से.कम पांच कवित्त को याद करना और परीक्षक के पूछे जाने पर सुनाना।
  • निम्न किन्हीं चार रागों में ठुमरी, भजन अथवा होरी गाकर भाव प्रदर्शित करने का अभ्यास – खमाज, काफी, देश, भैरवी, पीलू, तिलक कामोद, तिलंग तथा झिंझोटी ।
  • निम्नलिखित नृत्य शैलियों में से किसी भी एक शैली की जानकारी और उसे नृत्य द्वारा प्रदर्शित करने का अभ्यास – मणिपुरी नृत्य, ओड़िसी नृत्य
  • निम्नलिखित प्रदेशों मे ंसे किन्हीं भी चार प्रदेशों के एक.एक लोक नृत्य की जानकारी तथा उनको प्रदर्शित करने का अभ्यास – पंजाब और हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बंगाल, उड़ीसा, बिहार।
  • पाठ्यक्रम में निर्धारित समस्त तालें के ठेके को सीधी तथा विभिन्न कठिन लयकारियों में ताली देते हुए बोलना तथा उन्हें नृत्य द्वारा भी प्रदर्शित करने का पूर्ण अभ्यास।
  • समस्त निर्धारित तालों में विभिन्न प्रकार की और विभिन्न मात्राओं की तिहाइयों को ताली देकर बोलना तथा नृत्य द्वारा दिखाना।
  • समस्त निर्धारित तालों में विभिन्न लयकारियों का प्रर्शदन करते हुए विभिन्न तत्कार का प्रदर्शन करना। तत्कार के विभिन्न पल्टे और दरजे भी होने चाहिए।
  • समस्त निर्धारित तालों के ठेके और उनमें बंधे कुछ बोलों की तबले पर बजाने का अभ्यास।
  • समस्त निर्धारित तालों में अपनी इच्छानुसार किसी भी वाद्य पर विभिन्न रागों में नगमा (लहरा) बजाने का अभ्यास।

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