Description of Indian Lasya Dance and types of dance in hindi

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लास्य नृत्य

    गौवनस्त्री विलासिन्य: काम भाव विलक्षणाँ।

       पदङ्ग हार वैदध्यात कुर्युलास्यमदिरित:।।

अर्थात लास्य नृत्य स्त्रियों के लिए उपयुक्त है, जिसमे अंग और पद के संचलन द्वारा श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यकति की जाती है ।

कहा जाता है की भगवान शंकर द्वारा त्रिपुरासुर का वध करने की खुशी में पार्वती ने श्रृंगार रस प्रधान जो नृत्य किया था उसे ‘लास्य नृत्य’ कहते हैं । स्त्री श्रृंगार और कोमलता की प्रतिक मानी गयी है, अत: लास्य नृत्य मे श्रृंगार और कोमलता प्रधान है । कहते हैं कि पार्वती ने वाणासुर की कन्या उषा को लास्य नृत्य की शिक्षा दी । उषा ने द्वारिका मे अन्य स्त्रियों को सीखाकर लास्य नृत्य का प्रचार किया । बाद मे यह नृत्य अन्य स्थानो पर फैला । कहा जाता है कि लास्य क़ सर्वांग रूप देने के लिए भगवान कृष्ण ने ‘रास मण्डल’ प्रारम्भ किया । दक्षिण भारत मे रास को ‘हल्लीसक’ कहते हैं । कथक, भरतनाट्यम, मणिपुरी आदि नृत्य के जो प्रकार प्रचलित हैं, इन सबका जन्म ‘लास्य’ से ही माना गया है ।  लास्य मनुष्य की कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है । ऐसे तो स्त्री और पुरूष दोनों ही इस नृत्य को कर सकते हैं किन्तु यह स्त्रियों के लिए अधिक उपयुक्त है । लास्य नृत्य के तीन प्रकार हैं –

  • विकट नृत्य- जिस नृत्य को करते हुए लय, ताल भाव का प्रदर्शन किया जाता है , उसे विकट नृत्य कहते हैं।
  • विषम नृत्य- आड़ा , टेढ़ा और गोल घुमकर जो नृत्य किया जाता है, उसे विषम नृत्य कहते हैं ।
  • लघु नृत्य- घुँघुरूओं से पृथवी पर झंकार करते हुए एड़ी उठा कर लय और ताल के साथ नाचने को लघु नृत्य कहते हैं ।

आगे तीन ताल मे निबध्द लास्य अंग का एक टुकड़ा देखिये ।

ना-चत  गा-वत  गो-पा-  लला-लसखियन  संगरस  बरसा–  वतसर

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सा-वत  वा-नट  वरकी-  बां-सुरि। । या-पै-  चे-तन  हूँ-जड़  मैं—–

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त्रामतत  थेइतत  थेइ  त्रामतत  । थेइतत  थेइ  त्रामतत थेइतत

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