Biography of Sadarang Adarang-Jivni in Hindi

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Biography ( Lifesketch ) of Sadarang Adarang-Jivni in Hindi is described in this post of Saraswati sangeet sadhana .

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Sadarang Adarang-Jivni

 

           सदारंग- अदारंग की जीविनी 

                             

      • सर्वत्र ख्याल का प्रचार होने से सदारंग- अदारंग का नाम सर्वविदित है, क्योंकि उन लोगों ने अनेक छोटे बडे ख्यालों की रचना की। ख्याल के साथ वे लोग भी अमर हो गये। सदारंग – अदारंग उनका उपनाम था, उनका असली नाम क्रमशः नियामत खाँ और फिरोज खाँ था। अदारंग(फिरोज खाँ) सदारंग (नियामत खाँ) के पुत्र थे। गायक तानसेन की पुत्री की दसवीं पीढी सदारंग की थी। उनका पूरा उपनाम सरदारंगीले था। उनके गीतों में अधिकतर सदारंगीले मोहमदसा लिखा हुआ पाया जाता है। वे मोहम्मदशाह के दरबार में थे। उनको प्रसन्न करने के लिए अपने गीतों में उनका नाम डाल दिया करते थे।
      • एक बार बादशाह के दिमाग में यह बात जम गई कि सारंगी के साथ नियामत खाँ की बीन भी बजे। उनकी यह इच्छा नियामत खाँ को सूचित कर दी गई। इसे सुनकर वे बडे दुखी हुये और वजीर से साफ साफ मना कह दिया कि सारंगी की संगति करना मेरी बेइज्जती है। मैं खानदानी बीनकार हूँ, कोई अताई नहीं हूँ। बादशाह की बात किसी प्रकार टाली नहीं जा सकती थी। एक  और नियामत खाँ अपनी हठ पर अड़े रहे और दूसरी ओर बादशाह, जो उसे दरबार में रखे हुये थे। वे अपनी आज्ञा  की अवहेलना किसी प्रकार सहन नहीं कर सकते थे। अतः उसने सदारंग को अपने दरबार से निकाल दिया। कुछ समय तक सदारंग अज्ञात रहे। उनका मन सदा ख्याल के प्रचार में लगा रहता।
      • अन्त में सदारंग ने ख्याल को प्रचार में लाने के लिये एक नई तरकीब निकाली। उन्होंने सोचा कि अगर गाने के शब्दों में बादशाह का नाम भी डाला जाये तो ऐसे मे गाने को सभी लोग पसंद करेंगे और गीत के साथ साथ ख्याल शैली भी प्रचलित हो जायेगी। उसने ऐसा ही किया और उसे बडी सफलता मिली। उसने अपने सभी रचित गीतों में ‘ सदा रंगीले मोमदशा’ शब्द डाल दिया। बादशाह भी ऐसे गीतों को बडे चाव से सुनता था. उसके मन में बडी उत्कृष्टता हुई कि सदारंगीले कौन है? पता लगाने पर वही नियमत खाँ निकले। बादशाह ने उनके पुराने अपराध को क्षमा कर दिया और पुनः आदरपूर्वक दरबार में रख लिया। दरबार के अन्य ध्रुपद गायक ख्याल को जनाना संगीत कहने लगे और उससें जलने लगे।
      • कहा जाता है कि सदारंगीले स्वयं तो ध्रुपद गाया करते थे, किन्तु अपने शिष्यों को ख्याल ही सिखाते। उसके गीतों में श्रृंगारिकता और बादशाह की प्रशंसा पाई जाती है। उसके रचित गीत ख्याल होने के कारण पहले निम्न कोटि के समझें जाते थे, किन्तु जैसे-जैसे प्रचलित होते गये उनका महत्व बढता गया।

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