Avirbhav Teerobhav in Hindi is described in this post available on saraswati sangeet sadhana
तिरोभाव – आविर्भाव –
तिरोभाव – आविर्भाव – संगीत का मुख्य उद्देश्य रंजकता है, अतः एक ओर जहां राग – नियमों का पालन आवश्यक ही नहीं अनिवार्य माना गया है, वहाँ दूसरी ओर राग का एक नियम यह भी है कि अगर मधुरता में वृद्धि होती है तो राग के नियमों में शिथिलता भी स्वीकार की गई है । कभी – कभी मूल राग के स्वरूप को थोड़ा छिपा देने से अथवा उसके समप्रकृति राग की छाया लाने से राग की मधुरता बढ़ जाती है जिसे संगीत में तिरोभाव कहते हैं । तिरोभाव के बाद जब पुनः मुख्य राग में आते हैं तो उसे आविर्भाव कहते हैं । राग – विस्तार में पहले तिरोभाव दिखाया जाता है और बाद में आविर्भाव । अतः तिरोभाव – आविर्भाव कहा जाना चाहिए न कि आविर्भाव – तिरोभाव ।
तिरोभाव क्रिया निम्न दशा में दिखाई जानी चाहिए –
( 1 ) मूल राग का स्वरूप ठीक प्रकार से स्थापित हो जाय , नहीं तो सुनने वालों को कभी कुछ राग तो कभी दूसरा राग मालूम पड़ेगा ।
( 2 ) तिरोभाव – आविर्भाव का मुख्य उद्देश्य राग की मधुरता में वृद्धि है । केवल इसलिये तिरोभाव न करना चाहिए कि वह इसे करने में समर्थ है । अतः तिरोभाव उसी समय की जानी चाहिए जबकि राग की मधुरता बढ़े ।
( 3 ) तिरोभाव क्रिया कम से कम समय के लिए दिखाया जाना चाहिए । अधिक समय तक करने से मूल राग को क्षति पहुंचेगी । नीचे तिरोभाव – आविर्भाव का एक उदाहरण हमीर राग में दिया जा रहा है
( अ ) सा , रे सा ग म ध नि ध सां , नि ध प – मूल राग ( हमीर )
( ब ) म(t) प ध प म , प म – रे सा – तिरोभाव ( केदार ) ( म(t) is teevra swar )
( स ) ग म ध – नि ध सां , नि ध प – आविर्भाव ( हमीर )
Shudha Chayalag & Sankirn in Hindi is described in this post
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