Alpatva Bahutva in hindi

Alpatva Bahutva in hindi Indian Music Theory अल्पत्व बहुत्व

5/5 - (2 votes)

Alpatva Bahutva in Hindi Indian Music Theory is described in this post available on Saraswati Sangeet Sadhana .

अल्पत्व  बहुत्व –

अल्पत्व

राग में प्रयोग किये जाने वाले स्वरों की मात्रा स्थूल रूप से दो शब्दों अल्पत्व और बहुत्व में व्यक्त की जा सकती है। जब किसी स्वर का अल्प प्रयोग होता है तो उस स्वर का स्थान अल्पत्व माना जाता है। इसके विपरीत जब किसी स्वर का प्रयोग बहुतायत है तो उसका स्थान बहुत्व माना जाता है।

उदाहरणार्थ केदार राग में निषाद का अल्प प्रयोग होता है, इसलिये इसका स्थान अल्पत्व होगा। दूसरी ओर  पूर्वी राग में गन्धार का प्रयोग बहुतायत से होता है, अतः इसका स्थान बहुत्व होगा।

कुछ उदाहरण और देखिये। बिहाग राग के आरोह में रे और ध स्वर वर्ज्य हैं , किन्तु अवरोह में प्रयोग किये जाते हैं। अतः इनका स्थान आरोह में लंघन अल्पत्व, किन्तु अवरोह में विशेष महत्वपूर्ण अर्थात न्यास युक्त न होने के कारण इनका स्थान अनाभ्यास अल्पत्व है।

इस प्रकार से अल्पत्व के मुख्य दो प्रकार हुये –

  • लंघन अल्पत्व
  • अनाभ्यास अल्पत्व

बहुत्व

बहुत्व की दृष्टि से भी राग में प्रयोग किये जाने वाले स्वरों के दो प्रकार हैं। प्रथम को अलंघन बहुत्व तथा द्वितीय को अभ्यास बहुत्व कहते हैं। जब कभी किसी स्वर का प्रयोग आवश्यक होता है अर्थात् बिना उसके राग का स्वरूप नहीं आता अथवा किसी समप्रकृति राग की छाया आती है तो उस स्वर का स्थान अलंघन बहुत्व होता है।

इस प्रकार से बहुत्व के मुख्य दो प्रकार हुये –
  • अलंघन बहुत्व
  • अभ्यास बहुत्व

उदाहरणार्थ जौनपुरी राग में निषाद ऐसा स्वर है जिसे न प्रयोग करने से एक ओर राग-हानि होती है और दूसरी ओर उसके समप्रकृति राग आसावरी की छाया आती है। अतः जौनपुरी राग में निषाद का स्थान अलंघन बहुत्व होगा। दूसरी ओर इसी राग में पंचम ऐसा स्वर है, जिस पर आलाप करते समय न्यास करते हैं और घूम फिर कर उस पर विश्राम किया करते हैं। ऐसे स्वर का स्थान उस राग में  अभ्यास मूलक बहुत्व माना जाता है।

• इसी प्रकार वृन्दावनी सारंग में सा, रे और प का स्थान अभ्यास मूलक बहुत्व व मध्यम और दोनों नी का स्थान अलंघन मूलक बहुत्व है। 13 वीं शताब्दी के शारंगदेव कृत ‘संगीत रत्नाकर’ में अल्पत्व – बहुत्व का वर्णन सर्वप्रथम बार मिलता है। अल्पत्व-बहुत्व का सिद्धांत सभी रागों के स्वरों के विषय में बिल्कुल ठीक नहीं आता है।

Alpatva Bahutva in Hindi is described in this post

Click here for Alpatva Bahutva in english

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top