त्रिवेणी राग को पूर्वी थाट जन्य माना जाता है। इसमें रिषभ और धैवत कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। मध्यम सर्वथा वर्ज्य होने से इसकी जाति षाडव है। इसकी चलन वक्र है। वादी स्वर कोमल रिषभ है और संवादी पंचम है। इसे दिन के चौथे प्रहर में गाते हैं(3 pm to 6 pm)।
Triveni Raag
How To Read Sargam Notes
- “(k)” is used for komal swars.eg – ( रे(k) , ग(k) , ध(k) , नि(k) ) (Note – You can write ( रे , ग , ध , नि ) in this manner in exams . )
- म(t) here “(t)” is used for showing teevra swar म(t) . (Note – You can write ( म॑ ) in this manner in exams . )
- “-” is used for stretching the swars according to the song.
- Swars written “रेग” in this manner means they are playing fast or two swars on one beat.
- (रे)सा here “रे” is kan swar or sparsh swar and “सा” is mool swar. (Note – You can write ( रेसा ) in this manner in exams . )
- [ नि – प ] here this braket [ ] is used for showing Meend from “नि” swar to “प” . (Note – You can write ( नि प ) making arc under the swars in this manner in exams . )
- { निसां रेंसां नि } here this braket {} is used for showing Khatka in which swars are playing fast .
Triveni Raag Parichay
आरोह – सा, रे(k) सा ग प रे(k) – सा, रे(k)प ध(k) प, नि ध(k) सां ।
अवरोह – सां, नि ध(k) प, ग प, ग रे(k) सा ।
थाट – पूर्वी थाट
वादी -सम्वादी स्वर – ग नि
वर्जित स्वर- म
जाति – षाडव- षाडव(6,6)
गायन समय – दिन के चौथे प्रहर (3 pm to 6 pm)।
विशेषता –
- यह एक अप्रचलित राग है जो श्री अंग से गाया जाता है। रे(k)प की संगति श्री राग के समान इसमें भी महत्वपूर्ण हैं।
- ये दोनों स्वर वादी-सम्वादी माने गए हैं। इसमें न तो षडज-मध्यम और न षडज-पंचम भाव स्थापित होता है। मध्यम के अभाव में ग-प, की संगति होती है।
- इस स्थान पर जैत राग से बचाने की आवश्यकता होती है। यह राग अवरोही वर्ण में अच्छा लगता है। यह ख्याल शैली का राग है।
- इसमें ठुमरी नहीं गाई जाती। यह सायंकाल का संधिप्रकाश राग है।
स्वरूप –
सा सा, नि रे(k) ग रे(k) सा, नि रे(k)ग, ग प ग रे(k) ग रे(k) रे(k) प – प ग रे(k) ग रे(k)ग, ग, रे(k) सा, सा रे(k) रे(k) सा, ग प ग रे(k) ग रे(k) सा । गप, ग प ध(k) ध(k) प, पनि रें(k) नि ध(k)प, नि ध(k)प, निध(k)प, ग प ग रे(k) सा, रे(k) रे(k) प ग रे(k) ग रे(k) सा । प प ग रे(k) ग प सां, सां रें(k) सां, रें(k) सां रें(k) सां रें(k) नि ध(k) नि ध(k) प, प नि ध(k) प, प ध(k) प रें(k) नि ध(k)नि ध(k)प, ग प ग रे(k) रे(k) प, ग रे(k) ग रे(k) सा ।
त्रिवेणी राग प्रश्न उत्तर –
त्रिवेणी राग के आरोह अवरोह पकड़ क्या हैं ?
आरोह – सा, रे(k) सा ग प रे(k) – सा, रे(k)प ध(k) प, नि ध(k) सां ।
अवरोह – सां, नि ध(k) प, ग प, ग रे(k) सा ।
त्रिवेणी राग की जाति क्या है ?
जाति – षाडव- षाडव(6,6)
त्रिवेणी राग का गायन समय क्या है ?
गायन समय – दिन के चौथे प्रहर (3 pm to 6 pm)।
त्रिवेणी राग में कौन से स्वर लगते हैं ?
आरोह – सा, रे(k) सा ग प रे(k) – सा, रे(k)प ध(k) प, नि ध(k) सां ।
अवरोह – सां, नि ध(k) प, ग प, ग रे(k) सा ।
त्रिवेणी राग का थाट क्या है ?
थाट – पूर्वी थाट
त्रिवेणी राग के वादी संवादी स्वर कौन से हैं ?
वादी -सम्वादी स्वर – ग नि
त्रिवेणी राग के वर्जित स्वर कौन से हैं ?
वर्जित स्वर- म
त्रिवेणी राग का परिचय क्या है ?
त्रिवेणी राग को पूर्वी थाट जन्य माना जाता है। इसमें रिषभ और धैवत कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। मध्यम सर्वथा वर्ज्य होने से इसकी जाति षाडव है। इसकी चलन वक्र है। वादी स्वर कोमल रिषभ है और संवादी पंचम है। इसे दिन के चौथे प्रहर में गाते हैं(3 pm to 6 pm)।