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Sangeet Mein Taal Ka Mahatva in Hindi
संगीत में ताल का महत्व-
• स्वर और लय संगीत रूपी भवन के दो आधार स्तम्भ है। स्वर से राग बने और लय से ताल। लय नापने के लिये मात्रा की कल्पना की गई। साधारण तौर से दो तालियों के बीच के समय को एक मात्रा कहते हैं।
• लय के अनंत प्रवाह में असंख्य मात्रायें हो सकती है। सुविधा के लिये थोडी-थोड़ी मात्राओं के कुछ समूह बनाये गये, जिन्हें ताल कहा गया। प्रत्येक ताल के कुछ हिस्से किये गये, जिन्हें विभाग कहा गया।
• तबला अथवा पखावज पर बजाने के लिये प्रत्येक ताल के कुछ निश्चित बोल भी स्वीकार किये गये। इससे यह सुविधा हुई कि गायक यह जान सके कि वह किसी भी समय ताल के किस मात्रा पर है।
• संगीत गायन, वादन और नृत्य की त्रिवेणी है। इन तीनों में ताल का बड़ा महत्व है। गायक-वादक को हमेशा ताल का ध्यान रखना पड़ता है। वह नई-नई कल्पना करता है, किन्तु ताल से बाहर नहीं जाता है। जितनी सुन्दरता से वह ताल से मिलता है, वह उतना ही उच्चकोटि का कलाकार समझा जाता है.
• दूसरी ओर अगर वह ताल में कच्चा रहता है तो बेताला समझा जाता है। इस प्रकार एक अच्छे कलाकार के लिये ताल में कुशल होना आवश्यक है।
• आलाप के अतिरिक्त संगीत की सभी चीजें तालबद्ध होती हैं। इसीलिये आलाप के समाप्त होते ही ताल शुरू हो जाता है और जब तक गायन समाप्त नहीं होता, ताल चलता रहता है।
• स्थाई अन्तरा, बोल-तान, तान, सरगम आदि सभी ताल में रहते हैं। गीत के प्रकारों के आधार पर विभिन्न प्रकार के तालों की रचना हुई।
• ख्याल के लिये तीनताल, एकताल, झपताल, झूमरा, तिलवाड़ा, रूपक आदि, ध्रुपद के लिये चारताल, शूलताल, तेवरा आदि, ठुमरी के लिये दीपचंदी जत आदि तालों की रचना की गई।
• इन तालों के बोल गीत की प्रकृति के अनुसार चुने गये। इसीलिये जब गायन अथवा वादन के साथ तबला अथवा पखावज बजाया जाता है तो अधिक आनन्द आता है।
• साधारण श्रोता को वे गीत अधिक पसन्द आते हैं जो लय-प्रधान होते हैं। इसलिये साधारण जनता में लोकगीतों तथा चित्रपट (फिल्मी) गीतों का अधिक प्रचार है।
• गायन-वादन में स्वर और लय के माध्यम से और नृत्य अंग में प्रदर्शन और लय के माध्यम से भावों को प्रकट किया जाता है। इतना ही नहीं, तबला के और टुकड़ों को भी नृत्य द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। तबले द्वारा जितनी अच्छी संगति होती है, आनन्द उतना अधिक आता है।
• हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विशेषता यह है कि समान मात्रा के कई ताल और गीत के प्रकार बनाये गये। उदाहरण के लिये तेवरा और रूपक तालों की ७ मात्रायें, झपताल और शूल अथवा सूलफाक तालों की १० मात्रायें, एकताल और चारताल की १२ मात्राये, झूमरा, आडा चारताल, दीपचंदी और धमार तालों की १४ मात्रायें और तीनताल व तिलवाडा तालों की १६ मात्रायें मानी गई हैं।
• इसी प्रकार ख्याल १०. १२ और १४ मात्रा में गाये जाते हैं तो उन्हीं मात्राओं में धूपद भी पाये जाते हैं। १४ मात्रा में ख्याल, ठुमरी और धमार (गीत का एक प्रकार) भी गाये जाते हैं, किन्तु ख्याल के साथ आडा चारताल अथवा झूमरा ताल ही बजाया जायेगा दीपचंदी ताल नहीं।
• इसी प्रकार १४ मात्रा की ठुमरी के साथ दीपचंदी ताल ही बजाई जायेगी अन्य नहीं। गीत के साथ उचित ताल का प्रयोग आवश्यक है। जिसका ज्ञान शिक्षा और अनुभव से प्राप्त होता है। उचित ताल के प्रयोग से ही संगीत में रस सृष्टि होती है और तभी आनंद प्राप्त होता है। इस प्रकार संगीत मे ताल का बड़ा महत्व है।
जैसे –
कहरवा ताल / Keherwa Taal
ताल परिचय –
मात्रा – इस ताल में 8 मात्रा होती हैं ।
विभाग – इस ताल में 4-4 मात्राओ के 2 विभाग होते हैं ।
ताली – इस ताल में पहली मात्रा पर ताली लगती है ।
खाली – इस ताल में 5 वी मात्रा खाली होती है ।
यह ताल फिल्मी गीत ,लोकगीत , भजन में प्रयोग होती है ।
एक गुन में लिखने का तरीका –
मात्रा | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | |
बोल | धा | गे | ना | ती | ना | क | धिं | – | |
चिन्ह | x | 0 |
इस ताल को दुगुन में लिखने के लिए दो बोल को एक मात्रा पर लिखना होगा ।
जैसे –
मात्रा | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | |
बोल | धा गे | नाती | नाक | धिं | धागे | नाती | नाक | धिं | |
चिन्ह | x | 0 |
Keherwa taal in Tigun –
मात्रा | 1 | 2 | 3 | 4 |
बोल | धा गेना | ती नाक | धिं– धा | गेनाती |
चिन्ह | x |
5 | 6 | 7 | 8 |
ना क धिं | धा गे | ना ती ना | क धिं – |
0 |
Keherwa taal in Chaugun –
मात्रा | 1 | 2 | 3 | 4 |
बोल | धा गेना ती | नाक धिं– | धा गेना ती | नाक धिं– |
चिन्ह | x |
5 | 6 | 7 | 8 |
धा गेना ती | नाक धिं– | धा गेना ती | नाक धिं– |
0 |
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