Definition Of Ras & Bhav In Hindi
रस
(1).रस वह गुणवत्ता है जो कलाकार और दर्शककार के बीच समझ उत्पन्न करती है। शब्दो के स्तर पर रस का मतलब वह है जो चखा जा सके या जिसका आनंद लिया जा सके।
(2).जिस प्रकार लोग स्वादिष्ट खाना, जो कि मसाले, चावल और अन्य चीज़ो का बना हो, जिस रस का अनुभव करते है और खुश होते है उसी प्रकार स्थायी भाव और अन्य भावों का अनुभव करके वे लोग हर्ष और संतोष से भर जाते है।इस भाव को तब ‘नाट्य रस’ काहा जाता है।
भाव
(1).भाव दर्शक को अर्थ देता है। उसे भाव इसिलिए कहते हैं क्योकि यह कविता का विषय, शारीरिक क्रिया और मानसिक भावनाओं दर्शको तक पहुँचाता है।
(2).भाव ‘भविता’ ‘वसिता’ और ‘प्रक्रिता’ जैसे शब्दों से निर्मित है जिसका अर्थ है होना |
विभाव या निर्धारक तत्व
(1).विभाव वजह या कारण या प्रेरणा होता है। उसे इसीलिए विभाव कहते हैं क्योंकि यह वचन शरीर, इशारों और मानसिक भावनाओं का विवरण करते हैं। विभाव दो प्रकार का होता हे :
- आलंबन विभाव या मौलिक निर्धारक
- उद्दीपन विभाव या उत्तेजक निर्धारक
आलंबन विभाव
(1).यह भाव की निर्माण का मुख्य कारण होता है। जब भाव एक आदमी या वस्तु या कर्म की वजह से आकार लेता हे उसे आलंबन विभाव कहते हैं।
उद्दीपन विभाव
(1).जब किसी वस्तु भावना को उत्तेजित करता हे जैसे गुण, कार्रवाई, सजावट, वातावरण आदि
अनुभाव
(1).जिसका उद्भव वाक्य और अंगाभिनय से होता हैं, उसे अनुभाव कहते हैं। यह विभाव का परिणामी है।
(2).यह एक व्यक्ति द्वारा महसूस अभिव्यक्ति भावनात्मक भावनाएं हैं। विभाव के तीन अंग होते हैं कायिक, वाचिक एवम मानसिक।
स्थायी भाव
(1).स्थायी भाव से रस का जन्म होता हे | जो भावना स्थिर और सार्वभौम होती है उसे स्थायी भाव कहते हैं।
(2).विभाव अनुभव और व्यभिचार स्थायी भावों का अधीन होते हैं। इसीलिए स्थायी भाव मुख्य बनता है। स्थायी भाव भावनाओं से बनता है और व्यभिचार एंसिलरी होती हे |
(3).जब स्थायी व्यभिचारी विभाव और अनुभव से संयोजन होता है तब रस बनता है| इस प्रकार से स्थायी भाव, रस के नाम से प्रसिद्ध हे | स्थायी भाव 8 होता है –
- रति (प्रेम)
- उत्साह (ऊर्जा)
- शोक
- हास
- विसम्या
- भय
- जुगुप्सा
- क्रोध
- आश्चर्य
- निर्वेद
कुछ लोग ‘ सम’ भी इसके साथ जोड़ते हे |
संचारी भाव
(1).रस की और वस्तु या विचार का नेतृत्व करते हे उसे संचारी भाव कहते हे।
सात्विक भाव
(1).आश्रय की शरीर से उसके बिना किसी बाहरी प्रयत्न के स्वत: उत्पन्न होने वाली चेष्टाएँ सात्विक अनुभाव कहलाती है इसे ‘अयत्नज भाव’ भी कहते है.। सात्विक भाव आठ तरह के होते है –
- स्तम्भ
- स्वेद
- स्वरभंग
- वेपथु (कम्पन)
- वैवर्ण्य
- अश्रुपात
- रोमांस
- प्रलय