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History Of Natyashastra In Hindi
नाट्यशास्त्र
- नाटकों के संबंध में शास्त्रीय जानकारी को नाट्यशास्त्र कहते हैं। इस जानकारी का सबसे पुराना ग्रंथ भी नाट्यशास्त्र के नाम से जाना जाता है जिसके रचयिता भरत मुनि थे।
- भरत मुनि का जीवनकाल ४०० ईसापूर्व से १०० ई के मध्य किसी समय माना जाता है।संगीत, नाटक और अभिनय के सम्पूर्ण ग्रंथ के रूप में भारतमुनि के नाट्य शास्त्र का आज भी बहुत सम्मान है।
- उनका मानना है कि नाट्य शास्त्र में केवल नाट्य रचना के नियमों का आकलन नहीं होता बल्कि अभिनेता, रंगमंच और प्रेक्षक इन तीनों तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन होता है।
परिचय
- नाट्य और नृत्त, दृश्य काव्य के ये दो भेद हैं। नट-नटी द्वारा किसी अवस्थाविशेष की अनुकृति नाट्य है – ‘नाट्यते अभिनयत्वेन रूप्यते- इति नाट्यम्’। ताल और लय की संगति से अनुबद्ध अनुकृत को नृत्त कहते हैं।
- ये दोनों ही अभिनय के विषय हैं और ललित कला के अंतर्गत माने जाते हैं। नाट्य के प्रमुख अंग चार हैं – वाचिक, सात्विक, आंगिक और आहार्य।
- भावप्रदर्शन के लिए हाथ, पैर, नेत्र, भ्रू, एवं कटि, मुख, मस्तक आदि अंगों की विविध चेष्टाओं की अनुकृति आंगिक अभिनय है।
- अभिनय के अनुरूप स्थान को नाट्यगृह कहते हैं जिसके प्रकार, निर्माण एवं साजसज्जा के नियमों का प्रतिपादन भी नाट्यशास्त्र का ही विषय है।
- नाट्य संबंधी नियमों की संहिता का नाम ‘नाट्यशास्त्र’ है। भारतीय परंपरा के अनुसार नाट्यशास्त्र के आद्य रचयिता स्वयं प्रजापति माने गए हैं और उसे ‘नाट्यवेद’ कहकर नाट्यकला को विशिष्ट सम्मान प्रदान किया गया है।