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राग रामकली
भैरवी सी है रामकली, बरजे म नि आरोही।
औडव- सम्पूरन कही, सम्पूरन अवरोही।।
Hindi notes of Ramkali ragas / राग रामकली का परिचय
इसमें ऋषभ, धैवत कोमल दोनों निषाद तथा दोनों मध्यम प्रयोग किये जाते हैं। इसकी उत्पत्ति भैरव थाट से मानी गई है। वादी संवादी क्रमशः प- सा है। गायन समय दिन का प्रथम प्रहर है तथा जाति षाडव- सम्पूर्ण है।
आरोह– सा ग, म प, ध नि सां।
अवरोह– सां नि ध प, म प, ध नि ध प, ग म रे सा।
पकड़– प, म(t) प ध नि ध प, ग म रे रे सा।
थाट – भैरव थाट
वादी -सम्वादी स्वर – प- सा
जाति – षाडव- सम्पूर्ण
गायन समय – दिन का प्रथम प्रहर
राग रामकली की विशेषता–
- इसमें दोनों मध्यम तथा दोनों निषादों का प्रयोग होता है, तीव्र मध्यम का प्रयोग आरोह में पंचम के साथ जैसे- सा ग म प, ध ध प, म(t) प ध नि ध प, किन्तु कभी ग म(t) प प्रयुक्त नहीं होता, कोमल नि का वक्र प्रयोग अवरोह में धैवत के साथ होता है जैसे- प म(t) प, ध नि ध प, ग म नि ध प। तीव्र म और कोमल नि रामकली को भैरव से अलग करते है।
- इस राग में केवल दो बार भैरव के समान रे और ध पर आंदोलन किया जाता है। दोनों में यह अंतर है कि भैरव का आंदोलन गंभीर और कई बार, किन्तु रामकली का आंदोलन अपेक्षाकृत चंचल किन्तु कम होता है।
- यह प्रात: कालीन संधिप्रकाश राग है। नियम यह है कि प्रात कालीन संधिप्रकाश रागों में रे कोमल और ग शुद्ध होने के साथ साथ म भी शुद्ध होना चाहिये। इसमें दोनों मध्यम अवश्य लगते है किन्तु तीव्र म की अपेक्षा शुद्ध म प्रधान है।
- कुछ विद्वान इसकी जाति सम्पूर्ण मानते हैं, किन्तु आरोह में ऋषभ अति अल्प रखते है, बहुधा उसे भी छोड़ देते हैं और नि सा ग म प-म(t) प प्रयोग करते हैं। कभी कभी नि सा ग म रे, रे ग म प ग म रे रे सा। प्रयोग कर लेते है।
न्यास के स्वर– सा और प।
समप्रकृति राग– भैरव।
विशेष स्वर संगतियाँ–
- प म(t) प ध नि ध प,
- ग म नि ध प,
- सां नि ध नि ध प,
- म(t) प, ग म रे रे सा,
- ग म प, ध – ध प, म(t) प,
Raag parichay of all raags in Indian Classical music..
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