purvang uttarang in music in hindi

Purvang Uttarang in Music in Hindi पुर्वांग उत्तरांग क्या है

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Purvang Uttarang in Music in Hindi लक्षण गीत किसे कहते हैं is described in this post . Learn indian classical music theory in hindi .

Purvang Uttarang in Music in Hindi

पुर्वांग उत्तरांग  –

पूर्वाग- उत्तरांग –

जिस राग का पूर्वाग अधिक प्रधान होता है वह 12 बजे दिन से 12 बजे रात्रि तक की अवधि में और जिस राग का उत्तरांग अधिक प्रबल होता है वह 12 बजे रात्रि से 12 बजे दिन तक की अवधि में किसी समय गाया बजाया जाता है उदाहरणार्थ भूपाली,केदार, दरबारी, कान्हडा, भीमपलासी आदि पूर्वाग प्रधान राग दिन के पूर्व अंग में तथा सोहनी,बसन्त,हिन्डोल,बहार,जौनपुरी आदि उत्तरांग प्रधान राग दिन के उत्तर अंग में गाये बजाये जाते है। इन्हें क्रमशः पूर्व राग और उत्तर राग भी कहते है।

  • इस सिद्धांत के भी कुछ राग अपवाद स्वरूप है, जैसे- राग हमीर। स्वरूप की दृष्टि से यह उत्तरांग प्रधान राग है,किन्तु दिन के पूर्व अंग में गाया जाता है।

 वादी संवादी स्वर  

जिस प्रकार दिन के दो भाग किये गये उसी प्रकार सप्तक के भी दो भाग किये गये है – उत्तरांग- पूर्वाग। संख्या की दृष्टि से सा, रे, ग, म पूर्वाग और प,ध,नि, सां उत्तरांग मे आते है।

सर्वप्रथम शास्त्रकारों ने यह नियम बनाया होगा कि जिन रागों का वादी स्वर सा, रे, ग और म में से हो उनका गायन समय दिन के पहले हिस्से के भीतर और जिन रागों का वादी स्वर प, ध, नि, सां में से हो उनका गायन दिन के दूसरे हिस्से के भीतर होना चाहिये।

उपर्युक्त नियम बनाने के बाद हमारे शास्त्रकारों ने कुछ अपवाद भी पाये होंगे। अतः उन्हें इस नियम में संशोधन करना आवश्यक हो गया होगा। उदाहरणार्थ भीमपलासी राग में वादी मध्यम और संवादी षडज है। सप्तक का पूर्वाग स से म तक मानने से दोनों वादी- संवादी सप्तक के पूर्वाग मे आ जाते है, किन्तु यह उचित नहीं।

राग का दूसरा नियम यह भी है अगर वादी स्वर सप्तक के पूर्व अंग से है तो संवादी स्वर उत्तर अंग से होगा। अगर वादी स्वर उत्तर अंग से है तो संवादी स्वर पूर्व अंग से होगा। इस दृष्टि से भीमपलासी राग और भैरवी राग इस नियम के प्रतिकूल है दोनों रागों मे वादी म और संवादी सा है। उपर्युक्त नियमानुसार भैरवी भी भीमपलासी के समान पूर्वाग प्रधान राग होना चाहिये और उसका गायन समय 12 बजे दिन से 12 बजे रात्रि के भीतर किसी समय होना चाहिये, किन्तु जैसा कि हम सभी जानते है कि भैरवी प्रातः कालीन राग है। ठीक इसी प्रकार की कठिनाई अनेक प्रकार के रागों में देखने को मिलती हैं। इस कठिनाई को दूर करने के लिये उपर्युक्त नियम में यह संशोधन किया गया कि सप्तक के दोनों अंगों के क्षेत्र को बढा दिया गया। पूर्वाग सा से प तक और उत्तरांग म से तार सा तक माना गया इस प्रकार म और प दोनों अंगों में समान रूप से माने गये। इससे यह लाभ  हुआ कि जिन रागों में सा म अथवा म सा वादी- संवादी  है उनका एक स्वर पूर्वाग मे और दूसरा उत्तरांग में माना गया।

वादी संवादी दोनों सप्तक के एक हिस्से से नहीं होने चाहिए। राग का यह नियम है कि वादी स्वर सप्तक के पूर्वाग में आता है तो उसका गायन समय दिन के पूर्व अंग में होगा और अगर उत्तरांग में आता है तो उसका गायन समय दिन के उत्तर अंग में होगा।

स्वरों में पूर्वाग- उत्तरांग क्या है ?

संख्या की दृष्टि से सा, रे, ग, म पूर्वाग और प,ध,नि, सां उत्तरांग मे आते है।

वादी संवादी स्वरों से राग का समय व पूर्वाग- उत्तरांग प्रधान राग क्या है ?

सर्वप्रथम शास्त्रकारों ने यह नियम बनाया कि जिन रागों का वादी स्वर सा, रे, ग और म में से हो उनका गायन समय दिन के पहले हिस्से के भीतर और जिन रागों का वादी स्वर प, ध, नि, सां में से हो उनका गायन दिन के दूसरे हिस्से के भीतर होगा ।

Purvang Uttarang in Music

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