Jeevan mein sangeet ka mahatva

Jeevan mein sangeet ka mahatva in hindi जीवन और संगीत

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जीवन और संगीत


साहित्य संगीत कला विहीनः,
साक्षात् पशुः पुच्छ विषाण हीनः ।
भतृहरि
• जीवन का तात्पर्य मानव जीवन से है, पशु-पक्षी जीवन से नहीं और संगीत से तात्पर्य केवल शास्त्रीय संगीत ही नहीं, बल्कि नाव संगीत, चित्रपट संगीत, लोक संगीत आदि से भी है।
• भारतीय जीवन के पग-पग में संगीत व्याप्त है। जन्म से मृत्यु तक यह हमारे साथ बना रहता है। जिस क्षण बालक इस संसार से प्रथम परिचय प्राप्त करता है तो वह संगीत द्वारा (रोने के रूप में अपना आभार प्रकट करता है और जिस समय मनुष्य इस संसार से विदा लेता है तो संगीत के द्वारा उसे राम-नाम की महिमा बताई जाती है।
• इतना ही नहीं, मानव के इतिहास में जब भाषा का जन्म तक नहीं हुआ था, उस समय आपस में भावों का आदान-प्रदान संगीत द्वारा ही सम्भव था। मैक्समूलर ने ठीक ही कहा है कि संगीत का जन्म भाषा से कहीं पूर्व हुआ है। यहाँ पर संगीत का व्यापक अर्थ लिया गया है।
• भारतीय जीवन में १६ संस्कार माने गये हैं, जैसे नामकरण, कर्णछेदन, मुण्डन, विद्यारम्भ, यज्ञोपवीत (जनेऊ), विवाह आदि। इनमें से प्रत्येक का प्रारम्भ और अन्त संगीत से होता है।
• ऐसा भी कोई त्योहार नहीं है, जहाँ संगीत न हो, बल्कि संगीत के बिना त्योहार अधूरा रह जाता है। छोटा-बड़ा कोई भी उत्सव मनाया जाय उसमें संगीत आवश्यक है, चाहे संगीत प्रार्थना तक ही क्यों न सीमित हो।
• दिन भर के कठोर परिश्रम के बाद सायंकाल वंशी की एक छोटी सी धुन शरीर का सारा श्रम हर लेती है।
• गावों में फसल तैयार होती है तो उनका हर्षोल्लास होली के रूप में प्रकट होता है। वे जिस खुशी और आत्मीयता से गले मिलते, रंग छिड़कते और अबीर-बुक्का लगाते है कि देखते ही बनता है। किन्तु उनके हर्ष की चरम सीमा उस समय पहुँचती है जब वे गाँव के कोने-कोने में ढोलक लेकर अपनी-अपनी धुन में मस्त रहते हैं मानों पूरे वर्ष की सारी थकावट निकाल कर रख रहे हों।
• संगीत केवल विनोद की वस्तु नहीं, बल्कि ऐसा चिरस्थाई आनन्द है जिसमें हमें आत्मसुख मिलता है। इसीलिये संगीत भक्ति का अभिन्न अंग रहा है। जितने भी अच्छे भक्त हुये हैं, सभी संगीत के ज्ञाता और साधक थे।
• भारत का कौन ऐसा व्यक्ति होगा जिसने सूर, तुलसी, मीरा आदि का नाम न सुना हो। उनके प्रत्येक पद में ऐसा भाव है कि मनुष्य आनन्द-विभोर हो जाता है।
• भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्व० डा० राजेन्द्र प्रसाद के शब्दों में ‘हमारे साधु सन्तों की संगीत साधना का ही यह प्रभाव था कि कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, तुकाराम, नरसी मेहता ऐसी कृतियाँ कर गये जो हमारे और संसार के साहित्य में सर्वेदा ही अपना विशिष्ट स्थान रखेगी।

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