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Classification of Ragas-Raag raagni vargikaran in hindi Music theory

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Classification of Ragas-Raag raagni vargikaran in hindi Music theory

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Raag raagni vargikaran 

         राग रागनि वर्गीकरण

  • मध्य काल में कुछ रागों को स्त्री मानकर और कुछ रागों को पुरूष मानकर रागों की वंशावली बनाई गई जिसे राग-रागिनी पद्धति कहते हैं।
  • इसके मुख्य चार मत हो गये थे। चारों में समानता यह थी कि प्रत्येक में 6-6 राग माने गये जिनसे रागों की वंशावली प्रारंभ हुई।
  • प्रथम दो मतानुसार प्रत्येक राग की 6-6 तथा अंतिम दो मतानुसार प्रत्येक की 5-5 रागिनियां मानी गई।
  • 8-8 पुत्र चारों मतों द्वारा माने गये। इस प्रकार प्रथम दो अर्थात शिव और कृष्ण मत द्वारा 6 राग और 36 रागिनियाँ तथा भरत और हनुमत मत द्वारा 6 राग और 30 रागिनियां मानी गई।

शिव अथवा सोमेश्वर तथा कृष्ण अथवा कल्लिनाथ मतानुसार

  श्री,बसंत, पंचम,भैरव, मेघ और नटनारायण 6 मुख्य राग माने जाते थे। प्रत्येक राग की6-6 रागिनियाँ, 8-8 पुत्र और पुत्र वधुएं भी मानी गई।

भरत और हनुमत मतानुसार  भैरव, मालकंश,हिंडोल, दीपक, श्री और मेघ राग, प्रत्येक की 5-5 रागिनियाँ,8-8 पुत्र और पुत्र वधुएं मानी गई। ये भरत,नाटय शास्त्र के महर्षि भरत से भिन्न हैं।

  • यह बताना मुश्किल है कि राग- रागिनी पद्धति में स्वर अथवा स्वरूप किसका ध्यान रखा गया था, क्योंकि मध्यकालीन राग- रागिनियों के स्वर आधुनिक स्वर से भिन्न थे।
  • पटना के मुहम्मद रजा़ ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘ नगमाते आसफ़ी’ में सन 1813 में राग रागिनी की आलोचना की। उसे अवैज्ञानिक तो सिद्ध किया, किन्तु स्वयं राग- रागिनी पद्धति से बाहर नहीँ जा सके। उन्होंने राग रागिनी के स्वरों में समता के आधार पर हनुमत मत से मिलते जुलते 6 राग 30 रागिनियों की एक नई पद्धति की रचना की। उनकी राग रागिनी पद्धति केवल कुछ समय के लिए प्रचलित रही। थोड़े दिनों के बाद लोग उसे भूल गये।

राग रागिनी पद्धति की आलोचना

  • किसी को राग, किसी को रागिनी तथा किसी को पुत्रराग मानने की कोई कसौटी न थी। केवल कल्पना के आधार पर माना गया।
  • प्रत्येक राग की 6-6 अथवा5-5 रागिनियाँ क्यों मानी गई? न कम न ज्यादा।
  • 5 अथवा 6 रागिनियाँ भी मानी गई तो कुछ विशिष्ट रागिनियाँ किसी अमुक राग की ही क्यों मानी गई? जैसे उदाहरण के लिए हनुमत मत के अनुसार भैरव की रागिनियाँ भैरवी, बंगाली,वैरारी,मधुमाधवी,सिंधवी ही क्यों मानी गई? अन्य नही।
  • इन राग रागिनियों के पूर्वज कौन है? पता नहीं। आगे के वंशज भी अज्ञात है।
  • मध्य काल के लिये राग- रागिनी पद्धति भले ही वैज्ञानिक और न्याय संगत रही हो, किन्तु आज इस पद्धति में अवैज्ञानिकता और असंगत की भरमार दिखाई पडती है।शायद इसका कारण यह हो कि मध्यकालीन राग आधुनिक राग से पूर्णतया भिन्न थे और पहले शुद्ध थाट काफी माना जाता था और आजकल बिलावल माना जाता है।
  • वर्तमान समय में राग रागिनी पद्धति प्रचार में नहीं है। केवल राग के नाम के आधार पर कुछ संगीतज्ञ कुछ रागों को जैसे भैरवी,बागेश्वरी,रागेश्री आदि रागों को रागिनी कहकर पुकारते हैं। हमारे सभी पाठक जानते होंगे कि आजकल थाट-पद्धति की मान्यता है और थाटों की संख्या दस मानी जाती है।

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