gram murchana in indian music

Gram murchana in indian classical music in hindi Music theory

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Gram murchana  theory in indian classical music in hindi Music theory

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What is Gram Murchana..

 

 मूर्छना

क्रमयुक्ता: स्वरा: सप्त मूर्छनास्त्वभिसंहिता ।

                                                          – नाटयशास्त्र

  • भरत के अनुसार क्रम से सप्त स्वरों का आरोह- अवरोह करने से मूर्छना की रचना होती हैं, किन्तु प्रश्न यह उठता है कि किन सात स्वरों का आरोह अवरोह किया जाये। उत्तर यह है कि ग्राम के ही स्वरों को आरोह अवरोह करने से मूर्छनायें बनती हैं। ग्राम चाहे षड़ज ग्राम हो अथवा मध्यम ग्राम, दोनों से समान रूप सें समान रूप से मूर्छनाओं की रचना होती हैं।
  • ‘संगीत रत्नाकर’ में कहा गया है ‘ग्राम स्वर-समूह: स्यातमूर्च्छनादे: समाश्रय:’ अर्थात ग्राम के ही स्वरों पे मूर्छना आधारित हैं।
  • ग्राम के किसी भी स्वर को (स्वरित) आधार मानकर उसके ही स्वरों पर आरोह अवरोह करने से मूर्छना की रचना होती हैं। उदाहरणार्थ षड़ज ग्राम के रिषभ को आधार मानकर मूर्छना प्रारंभ करने से गंधार रिषभ हो जायेगा,मध्यम गंधार हो जायेगा, इत्यादि इत्यादि। इसी प्रकार ग्राम के शेष स्वरों से ही आरोह- अवरोह करने से मूर्छना की रचना होती हैं।
  • एक ग्राम में सात स्वर होते है। अतः प्रत्येक ग्राम से सात मूर्छनाओं की रचना संभव है। अतः षड़ज, गंधार और मध्यम ग्रामों से कुल 7×3= 21 मूर्छानायें बनती हैं।

मूर्छना और आधुनिक थाटो की तुलना

  • सर्वप्रथम षडज ग्राम की मूर्छनाओं की तुलना आधुनिक थाट से करेंगे। इस.ग्राम के सातों स्वर क्रमशः4,3,2,4,3,2 श्रुतियों की दूरी पर स्थित हैं
  • पहली मूर्छना षडज से प्रारंभ होगी। अतः 4थी पर सा,7 वी.पर रे, 9 वी पर ग,13वी पर म,17 वी पर प,20 वी पर  ध, 22 वी श्रुति पर.नी.आयेगा। इसमे गंधार और निषाद पिछले स्वर रिषभ और धैवत से दो – दो श्रुति उँचे है। अतः ये दोनों स्वर कोमल हो जायेंगे और ये मूर्छना आधुनिक काफी थाट के समान होगी। यहाँ पर यह जानना आवश्यक है कि दो श्रुतियों से अर्ध स्वर (सेमीटोन) और तीन अथवा चार श्रुतियों से पूर्ण स्वर (होलटोन) होता है।
  • द्वितीय मूर्छना में मन्द्र नि को सा मानकर षडज ग्राम के स्वरों पर क्रमिक आरोह अवरोह करेंगे। इसलिये सातों स्वर क्रमशः 2,4,3,2,4,4 और 3 श्रुतियों के अन्तर पर होंगे। यह आधुनिक थाट बिलावल होगी, क्योंकि इसका कोई भी स्वर कोमल नहीं है, केवल मध्यम की दो श्रुतियां है, अतः नियमानुसार म को कोमल होना चाहिये,किन्तु मध्यम कोमल नहीं होता। वास्तव मे कोमल म को ही शुद्ध म कहते है।
  • तीसरी मूर्छना में मन्द्र धैवत को सा मानकर आरोह-अवरोह करेंगे। अतः सातों स्वर क्रमशः 3,2,4,3,2,4 और 4 श्रुतियों के अन्तर पर होंगे। इसमें रे कोमल और पंचम स्वर तीव्र मध्यम हो जायेगा, क्योंकि रे और प अपने निकटवर्ती स्वरों से दो दो श्रुतियां ऊचे है। रे कोमल होने से 4 श्रुतियों का गंधार भी शुद्ध न होकर कोमल हो जायेगा, इसी प्रकार ध और नि भी शुद्ध न होकर कोमल हो जायेंगे। तीव्र म से 4 श्रुति ऊचा कोमल ध और कोमल ध से 4 श्रुति ऊचा स्वर कोमल नि हो जायेगा। अतः इस मूर्छना में रे ,ग, ध, और नि स्वर कोमल तथा दोनों मध्यम और पंचम वर्ज्य होने से यह मूर्छना उत्तर भारतीय किसी भी थाट के समान नहीं होगी।
  • चौथी मूर्छना मन्द्र के पंचम से प्रारंभ होगी। अतः इसके सातों स्वर 4,3,2,4,3,2 और 4 श्रुत्यांतरो पर होंगे। इसके गंधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल हो जायेंगे। इसलिये यह मूर्छना आसावरी थाट के समान होगी।
  • पाँचवीं मूर्छना मन्द्र के मध्यम से प्रारंभ होने से सातों स्वर क्रमशः 4,4,3,2,4,3 और 2 श्रुत्यांतरो पर होंगे। इसमें केवल निषाद स्वर कोमल होगा क्योंकि पीछे हम बता चुके है कि दो श्रुतियों के अन्तर से अर्धस्वर होता है। म और नि की दो दो श्रुतियाँ है। म कोमल नहीं होता, अतः निषाद स्वर कोमल हो जायेगा। यह मूर्छना खमाज थाट के समान होगी।
  • छठी मूर्छना मन्द्र ग से प्रारंभ होगी। उसके स्वर 2,4,4,3,2,4,3 श्रुत्यांतरो पर होंगे जो कल्याण थाट के समान होगी।
  • सातवीं मूर्छना मन्द्र रिषभ से प्रारंभ होगी और उसके स्वर क्रमशः 3,2,4,4,3,2 और 4 श्रुतियों के अन्तर पर होंगे। इसमें रे ,ग ,ध और नि स्वर कोमल होंगे। यद्यपि ग भी चार श्रुति ऊचा है कोमल रे से इसलिये ग भी कोमल हो जायेगा। इसी प्रकार ध भी दो श्रुति होने के कारण कोमल हो जायेगा और धैवत के कोमल होने से नि भी कोमल हो जायेगा। यह मूर्छना भैरवी थाट के समान होगीं।

Indian classical music theory in hindi..

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