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History And Dance Performance Of Kathak Dance In Hindi
कत्थक नृत्य
- कत्थक नृत्य उत्तर भारतीय शास्त्रीय नृत्य है। कत्थक शब्द का अर्थ कथा को नृत्य रूप से कथन करना है। प्राचीन काल मे कत्थक को कुशिलव के नाम से जाना जाता था।
- यह बहुत प्राचीन शैली है क्योंकि महाभारत में भी कत्थक का वर्णन है। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कृष्ण कथा और नृत्य से था। मुसलमानों के काल में यह दरबार में भी किया जाने लगा। यह नृत्य कहानियों को बोलने का साधन है।
इतिहास
- प्राचीन काल से कथाकास, नृत्य के कुछ तत्वों के साथ महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं से कहानियां सुनाया करते थे।
- कथाकास के परंपरा वंशानुगत थे। यह नृत्य पीढ़ी दर पीढ़ी उभारने लगा। तीसरी और चौथी सदियों के साहित्यिक संदर्भ से हमें इन कथाकास के बारे में पता चलता है।
- भक्ति आंदोलन के समय रासलीला कत्थक पर एक जबरदस्त प्रभाव पड़ा। कत्थक राधा कृष्ण की के जीवन के दास्तां बयान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
- मुगलों के युग में फ़ारसी नर्तकियों के सीधे पैर से नृत्य के कारण और भी प्रसिद्ध हो गया। पैर पर १५० टखने की घंटी पहने कदमों का उपयोग कर ताल के काम को दिखाते थे।
- इस अवधि के दौरान चक्कर भी शुरु किया गया। इस नृत्य में लचीलापन आ गया। तबला और पखवाज इस नृत्य में पुरक है।
- इसके बाद समय के साथ इस नृत्य में बहुत सारी महत्वपूर्ण हस्ती के योगदान से बदलाव आए।
नृत्य प्रदर्शन
- नृत्त – वंदना, देवताओं के मंगलाचरण के साथ शुरू किया जाता है।
- ठाट – एक पारंपरिक प्रदर्शन जहां नर्तकी सम पर आकर एक सुंदर मुद्रा लेकर खड़ी होती है।
- आमद – अर्थात ‘प्रवेश’ जो तालबद्ध बोल का पहला परिचय होता है।
- सलामी -मुस्लिम शैली में दर्शकों के लिए एक अभिवादन होता है।
- कवित् – कविता के अर्थ को नृत्य में प्रदर्शन किया जाता है।
- पड़न – एक नृत्य जहां केवल तबला का नहीं बल्कि पखवाज का भी उपयोग किया जाता है।
- परमेलु – एक बोल या रचना जहां प्रकृति का प्रदर्शनी होता है।
- गत – यहां सुंदर चाल-चलन दिखाया जाता है।
- लड़ी – बोलों को बाटते हुए तत्कार की रचना।
- तिहाई – एक रचना जहां तत्कार तीन बार दोहराया जाती है और सम पर नाटकीय रूप से समाप्त हो जाती है।
- नृत्य – भाव को मौखिक टुकड़े की एक विशेष प्रदर्शन शैली में दिखाया जाता है। मुगल दरबार में यह अभिनय शैली की उत्पत्ति हुई। इसकी वजह से यह महफिल या दरबार के लिए अधिक अनुकूल है ताकि दर्शकों को कलाकार और नर्तकी के चेहरे की अभिव्यक्त की हुई बारीकियों को देख सके।
घराना
लखनऊ घराना
- अवध के नवाब वाजिद आली शाह के दरबार में इसका जन्म हुआ। आगरा शैली के कत्थक नृत्य में सुंदरता, प्राकृतिक संतुलन होती है।
- कलात्मक रचनाएँ, ठुमरी आदि अभिनय के साथ साथ होरिस (शाब्दिक अभिनय) और आशु रचनाएँ जैसे भावपूर्ण शैली भी होती हैं।
- वर्तमान में, पंडित बिरजु महाराज (अच्छन महाराजजी के बेटे) इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।
जयपुर घराना
- राजस्थान के कच्छवा राजा के दरबार में इसका जन्म हुआ। शक्तिशाली ततकार, कई चक्कर और विभिन्न ताल में जटिल रचनाओं के रूप में नृत्य के अधिक तकनीकी पहलुएँ यहाँ महत्वपुर्ण है।
- यहाँ पखवाज का बहुत उपयोग होता है। यह कत्थक का प्राचीनतम घराना है। जयपुर घराने के प्रवर्तक भानु जी (प्रसिद्ध शिव तांडव नर्तक)।
बनारस घराना
- जानकीप्रसाद ने इस घराने का प्रतिष्ठा किया था। यहाँ नटवरी का अनन्य उपयोग होता है एवं पखवाज ,तबला का इस्तेमाल कम होता है।
- यहाँ ठाट और ततकार में अंतर होता है। न्यूनतम चक्कर दाएं और बाएँ दोनों पक्षों से लिया जाता है।
रायगढ़ घराना
- छत्तीसगढ़ के महाराज चक्रधार सिंह इस घराने कि प्रतिष्ठा की थी। विभिन्न पृष्ठभूमि के अलग शैलियों और कलाकारों के संगम और तबला रचनाओं से एक अनूठा माहौल बनाया गया था।
- पंडित कार्तिक राम, पंडित फिर्तु महाराज, पंडित कल्यानदास महांत, पंडित बरमानलक इस घराने के प्रसिद्ध नर्तक हैं।