Bhav Sangeet Senior Diploma 4th Year Syllabus In Hindi Prayag Sangeet Samiti

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Bhav Sangeet Senior Diploma 4th Year Syllabus In Hindi

भाव संगीत

शास्त्र

(1).गीत के प्रकार – टप्पा, ठुमरी, तराना, तिरवट, चतुरंग, भजन, गीत तथा ग़ज़ल का विस्तृत वर्णन। राग.रागिनी पद्धति, आधुनिक आलाप.गायन की विधि, तान के विविध प्रकारों का वर्णन, विवादी स्वर का प्रयोग, निबद्ध गान के प्राचीन प्रकार (प्रबन्ध, वस्तु आदि), धातु, अनिबद्ध गान, अध्वदर्शक स्वर।

(2).22 श्रुतियों का स्वरों में विभाजन (आधुनिक और प्राचीन मतों का तुलनात्मक अध्ययन), खिंचे हुए तार की लम्बाई का नाद के ऊँचे.नीचेपन से सम्बन्ध।

(3).छायालय और संकीर्ण राग, परमेल प्रवेशक राग, रागों का समय चक्र, राग का समय निश्चित करने में अध्वदर्शक स्वर, वादी.सम्वादी और पूर्वाग.उत्तरांग का महत्व, दक्षिणी और उत्तरी संगीत पद्धतियों के स्वरों की तुलना।

(4).उत्तर भारतीय सप्तक के स्वरों से 32 थाटों की रचना, आधुनिक थाटों के प्राचीन नाम, तिरोभावआविर्भाव और अल्पत्व.बहुत्व।

(5).रागों का सूक्ष्म तुलनात्मक अध्ययन तथा राग पहचान।

(6).विष्णु दिगम्बर तथा भातखंडे दोनों स्वरलिपियों का तुलनात्मक अध्ययन। गीतों को दोनों स्वरलिपियों में लिखने का अभ्यास। धमार और ध्रुपद की दुगुन, तिगुन और चौगुन स्वरलिपि में लिखने का पूर्ण अभ्यास।

(7).भरत, अहोबल, ब्यंकटमखी तथा मानसिंह तोमर का जीवन चरित्र तथा इनके संगीत कार्यों का विवरण।

(8).पाठ्यक्रम के सभी तालों की दुगुन, तिगुन, चौगुन प्रारम्भ करने का स्थान गणित द्वारा निकालने की विधि। दुगुन, तिगुन तथा चौगुन के अतिरिक्त अन्य विभिन्न लयकारियों को ताललिपि में लिखने का अभ्यास।

(9).आकाशवाणी और फिल्मी संगीत का आलोचनात्मक अध्ययन और उनके सुधार के सुझाव।

(10).निबन्ध – शास्त्रीय और भाव संगीत, लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत का फिल्मी संगीत पर प्रभाव, राग और रस, भाव प्रदर्शन में विभिन्न वाद्यों का सहयोग, पृष्ट संगीत ;ठंबाहतवनक डनेपबद्ध आदि।

क्रियात्मक पाठ्यक्रम

(1).पिछले सभी वर्षों के पाठ्यक्रम का पूर्ण अध्ययन। गले की तैयारी और सफाई पर विशेष ध्यान।

(2).स्वर ज्ञान में विशेष उन्नति। कठिन स्वर समूहों की पहचान। स्वरलिपि में लिखे गीत को गाने और सरल गीत को सुनकर स्वरलिपि करने का अभ्यास।

(3).शुद्ध रूप से तानपुरा मिलाने का विशेष अभ्यास।

(4).अंकों या स्वरों के सहारे ताली देकर विभिन्न लयकारियों को दिखाना, जैसे – दुगुन (1 में 2 मात्रा), तिगुन (1 में 3 मात्रा), चौगुन (1 में 4 मात्रा), आड़ (2 में 3 मात्रा) और आड़ का उलटा (3 में 2 मात्रा)।

(4).कठिन और अधिक सुन्दर आलाप और तानों को गले से निकालना। मींड, कण, खटका, मुर्की, गिटकिरी, गमक और अन्य सूक्ष्म हरकतों आदि को गले से निकालने का पूर्ण अभ्यास।

(5).बहार, पटदीप, तोड़ी, जयजयवन्ती, कामोद, दरबारी कान्हड़ा, अड़ाना, मुल्तानी, मारवा, कालिंगड़ा, केदार और गौड़ सारंग का स्वरूप ज्ञान, स्वर विस्तार तथा प्रत्येक में एक.एक छोटा खयाल। इनमें से किन्हीं चार में मन से आलाप, तान, बोलतान लेकर गाने की तैयारी और किन्हीं दो में एक.एक बड़ा खयाल। इस वर्ष खयाल गायकी में विशेष तैयारी, मुखड़ा और बोलतानों में विशेष सुन्दरता और तबियतदारी होनी चाहिए।

(6).इस वर्ष के किसी भी दो रागों में एक.एक धमार तथा एक.एक ध्रुपद तथा किसी एक राग में एक तराना होना चाहिए।

(7).देश, पीलू, तिलंग, खमाज और भैरवी में से किन्हीं दो रागों में सुन्दर ठुमरी गाने का अभ्यास।

(8).लोकगीत, ग़ज़ल, होली आदि कुशलता पूर्वक गाने का अभ्यास।

(9).पिछले वर्षों के अतिरिक्त अन्य पाँच भजन और पाँच आधुनिक गीतों को भावयुक्त व उच्च स्तर की शैली में गाने की तैयारी।

(10).दिये हुए गीत और भजनों को सुन्दर रूप से उनके भाव के अनुसार स्वयं स्वर रचना करके गाने का अभ्यास।

(11).किसी भी गीत या भजन में संगत करने वाले अन्य वाद्यों या वृन्दवादन ;वतबीमेजतंद्ध के लिए सुन्दर छूट और तान.टुकड़ों की रचना करने का ज्ञान।

(12).झूमरा, आड़ा चारताल, सूलताल और तिलवाड़ा ताल के ठेकों का ज्ञान और उनको ताली देकर ठाह, दुगुन, तिगुन तथा चौगुन में बोलने का अभ्यास। एकताल, चारताल, झपताल, दीपचन्दी के ठेकों को तबले पर बजाने का अभ्यास।

(13).छोटे और कठिन टुकड़ों द्वारा राग पहचान।

(14).गाकर समप्रकृतिक रागों में समता तथा विभिन्नता दिखाना।

(15).दिए गए गेय काव्य अथवा गीत को उचित स्वर और तालबद्ध करने का अभ्यास।

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