Vocal & Instrumental Music Sangeet Bhaskar Part 1 Syllabus In Hindi Pracheen Kala Kendra

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Vocal & Instrumental Music Sangeet Bhaskar Part 1 Syllabus

गायन और तन्त्र वाद्य

परीक्षा के अंक

पूर्णाक : ४००

शास्त्र – २००

प्रथम प्रश्न पत्र – १००

द्वितीय प्रश्न पत्र – १००

क्रियात्मक – १२५

मंच प्रर्दशन-७५

शास्त्र

प्रथम प्रश्न पत्र
  • प्रथम से पंचम वर्ष तक के सभी पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान।
  • प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक कालीन रागों के वर्गीकरण का महत्व और उनके विभिन्न प्रकारों की पारस्परिक तुलना ।
  • हिन्दुस्तानी और कर्नाटक गायन तथा वादन शैलियों का ज्ञान। उनके स्वर, ताल सहित।
  • प्राचीन काल, मध्यकाल और आधुनिक काल में प्रचलित थाट पद्धति का आलोचनात्मक अध्ययन।
  • राग वर्गीकरण, जाति गायन, ग्राम, राग, राग रागिनी पद्धति, थाट राग, मेलकर्ता, रागांग पद्धति इत्यादि ।
  • प्राचीन और आधुनिक गीत रचनाएं और उनके प्रकार ।
  • आविर्भाव, तिरोभाव, ग्राम, मुर्छना, सारंणा चतुष्टयी, श्रुति-स्वर विभाजन, प्राचीन और आधुनिक आलाप गायन पद्धति, षड़ज- पंचम और षड़ज-मध्यम भाव, सहायक नाद और संगीत की उत्पत्ति का ज्ञान।
  • विभिन्न रागों में रस, स्थाई, संचारी भाव, आविर्भाव और तिरोभाव का स्थान।
  • भारतीय वृन्द संगीत पद्धति के ऊपर पाश्चात्य वाद्यों का प्रभाव ।
  • हिन्दुस्तानी संगीत पर पाश्चात्य संगीत का प्रभाव
  • तन्त्र वाद्य में आकर्ष प्रहार, अपकर्ष प्रहार, खटका, पीट अनुलोम विलोम, जोड़, झाला आदि के सम्बनध में विशेष अध्ययन
  • संगीत के विभिन्न घरानों का परिचय एवं संगीत के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में उनका विशेष योगदान
  • वाद्य वर्गीकरण, वाद्य के पार्श्व तत्व और स्वयंभूस्वरों का जान
  • तानपुरे के स्वरों के साथ आधुनिक स्वर स्थान की तुलना ।
  • आधुनिक वाद्यों की त्रुटियां और संशोधन के उपाय।
द्वितीय प्रश्न पत्र
  • वाद्य के जन्म का इतिहास तथा विद्यार्थी द्वारा चयन किये गये वाद्य की वादन शैली का ज्ञान।
  • संगीत की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विशेष ज्ञान।
  • भारतीय और पश्चात्य स्वर लिपि पद्धतियों का ज्ञान, भारतीय संगीत में पाश्चात्य स्वर लिपि पद्धति अपनाने के लाभ और हानियां,
  • भारतीय वाद्यों का इतिहास और उनका ग्रंथों के अनुसार विकास।
  • गायन और वादन शैलियों का ऐतिहासिक विकास।
  • भारतीय गायन एवं वादन शैली का तुलनात्मक अध्ययन।
  • घरानों की गायकी की विशेषताएं, घरानों के पतन का कारण और उसके उत्थान के सम्बन्ध में विचार ।
  • प्रथम से षष्ठम वर्ष तक निर्धारित सारे रागों का विशेष अध्ययन रागों की समानता – विभिन्नता, अल्पत्व-बहुत्व, आविर्भाव- तिरोभाव एवं न्यास स्वर के प्रयोग का विशेष ज्ञान। रागों के आलाप, ताल लिखने का अभ्यास । मसीतखानी और रजाखानी गत, विभिन्न ल में तोड़ा और झाला लिखने का अभ्यास।
  • उत्तर भारतीय तालों को कर्नाटक ताल पद्धति में लिखने अभ्यास ।
  • भातखंडे और विष्णु दिगम्बर स्वरलिपि पद्धति में पाठ्यक्रम विभिन्न गीतों के प्रकार एवं वाद्यों की गत लिखने का अभ्यास
  • प्रथम से षष्ठम वर्ष तक निर्धारित सभी तालों के ठेके लयकारियों में लिखने का अभ्यास।
  • पाश्चात्य स्वर लेखन पद्धति का विशेष अध्ययन एवं भारतीय लिपि पर इसका प्रभाव।
  • निबन्ध –

(क) शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत

(ख) राग और रस।

(ग) भाव, रस तथा लय।

(घ) संगीत विज्ञान।

क्रियात्मक

  • निम्नलिखित रागों में (पूर्ण गायकी के साथ) बड़ा ख्याल और छोटा ख्याल जानना आवश्यक है-पाठ्यक्रम में निर्धारित राग-
  • देवगिरी बिलावल, यमनी बिलावल, श्याम कल्याण, गोरख कल्याण, अहीर भैरव, आभोगी कान्हड़ा, कौशी कान्हड़ा, चन्द्र कौंस, भटियार, गुर्जरी तोड़ी, विलासखानी तोड़ी, मधुवन्ती और बिहागड़ा। (धुपद गायन के परीक्षार्थियों के लिए ठाह, दुगुन, तिगुन, चौगुन, आड़, बिआड़ और कुआड़ लयकारी के साथ धुपद गायन जानना आवश्यक है) (लक्ष्मी और पंचम सवारी (पन्द्रह मात्रा) ताल में कम से कम एक रचना।)

-वाद्य विभाग के परीक्षार्थियों को पूर्ण वादन शैली सहित मसीतखानी और रजाखानी गत जानना अनिवार्य ।

  • निम्नलिखित राग समूहो  में मात्र छोटा ख्याल जाना आवश्यक धुपद गायन
  • के  परीक्षार्थियों के लिए केवल पुष्ट गायन वाद्य विभाग के  परीक्षार्थियों के लिए केवल रजाखानी  गत भैरव – बहार, गुण्काली, भूपाल लोड़ी, ललित पच्चम, नन्द, आनन्द भैरव और दरवा
  • निम्नलिखित राग समूहों के राग रूप प्रदर्शन की क्षमता, रागों की अलाप या जोड़ आलाप द्वारा (झाला सहित) स्वर विस्तार करना- (ख्याल, धुपद या गत की आवश्यकता नहीं है- )शुक्ल बिलावल, नट बिलावल, खम्बावती, गन्धारी, भीम, नट, हंस ध्वनि, धनाश्री, बागेश्री और कान्हड़ा।
  • इस वर्ष के निर्धारित रागों में से किसी राग में विभिन्न लयकारियों के साथ
  • दो धुपद और दो धमार जानना आवश्यक है-ध्रुपद गायन के परीक्षार्थियों के लिए विभिन्न लयकारियों के साथ दो धमार और दो होरी।
  • किन्हीं पांच रागों में ठुमरी ।
  • दो तराना, एक टप्पा, चतुरंग और एक त्रिवट जानना आवश्यक है। पूर्ण गायकी के साथ एक भजन दो ठुमरी तथा एक दादरा जानना
  • आवश्यक है।
  • पाठ्यक्रम में निर्धारित समस्त रागों में समानता – विभिन्नता, अल्पत्व-बहुत्व और आविर्भाव-तिरोभाव प्रदर्शन की क्षमता।
  • कठिन स्वर सुनकर राग निर्णय की क्षमता।
  • निर्धारित तालों की विभिन्न लयकारियों को ताली खाली दिखाकर बोलने का अभ्यास ।

निर्धारित तालें- गजझम्पा, ब्रह्म, फरोदस्त और जत ताल।

टिप्पणी- पूर्व वर्षो का पाठ्यक्रम संयुक्त रहेगा।

मंच प्रदर्शन-

(क) इस वर्ष के निर्धारित रागों में से किसी भी एक राग को परी गायकी के साथ अथवा वादन शैली के साथ एक 40 मिनट गाना अथवा बजाना होगा।

(ख) किसी भी राग में ठुमरी या धुन वादन।  या

एक धुपद या धमार या तराना या टप्पा या त्रिवट पूर्ण गायकी के साथ।

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