sangeet-padhati-in-indian-music

Hindustani Sangeet paddhati in Hindi Uttari Sangeet Paddhati & Dakshini Sangeet Paddhati in Indian Music

4.7/5 - (4 votes)

Hindustani Sangeet paddhati in Hindi I Uttari & Dakshini Sangeet Paddhati in indian classical music in hindi Sangeet Shastra

Hindustani Sangeet paddhati in Hindi is described in this post of Saraswati sangeet sadhana .Learn indian classical music in simle steps…

Hindustani Sangeet paddhati in Hindi

भारत वर्ष में मुख्य दो प्रकार का संगीत प्रचार में है जिन्हें संगेट पद्धति कहते हैं । उनके नाम उत्तरी अथवा हिंदुस्तानी संगीत पद्धति  और दंक्षिणी अथवा कर्नाटक   संगीत पद्धति कहते हैं

  • उत्तरी अथवा हिंदुस्तानी संगीत पद्धति
  • दंक्षिणी अथवा कर्नाटक संगीत पद्धति

Uttari sangeet paddhati / उत्तरी संगीत पद्धति  –

इसको हिंदुस्तानी संगीत पद्धति भी कहते  हैं यह पद्धति उत्तरी हिंदुस्तान में – बंगाल , बिहार , उड़ीशा , उत्तर प्रदेश ,हरियाणा , पंजाब , गुजरात , जम्मू-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रान्तों में प्रचलित है ।   

Dakshini sangeet paddhati  / दंक्षिणी संगीत पद्धति –

इसे कर्नाटक संगीत पद्धति भी कहते हैं । यह तमिलनाडू,मैसूर ,आंदरा , आदि दंक्षिण के प्रदेशों में प्रचलित है ।

ये  दोनों पद्धतियाँ अलग होते हुये भी इनमे बहुत कुछ समानता है ।

Types of sangeet paddhati

उत्तरी और दक्षिणी संगीत – पद्धतियां

  • प्राचीन काल से सम्पूर्ण भारत में संगीत की केवल एक पद्धति थी, किन्तु आज हम देखते हैं कि संगीत की दो पद्धतियां हो गई हैं।
  • कुछ विद्वानों का मत है कि उत्तरी संगीत पर अरब और फारस की संगीत का प्रभाव पड़ा जिससे उत्तरी संगीत दक्षिणी संगीत से अलग हो गया। उनका कहना है कि ग्यारहवीं शताब्दी से भारत में मुसलमानों का आना शुरू हुआ और वो धीरे धीरे उत्तर भारत के शासक हो गये। अतः उनकी संस्कृति और सभ्यता ने संगीत पर अमिट छाप डाली। दक्षिणी भारतीय संगीत पर कोई वाद्य प्रभाव नहीं पडा।
  • अत: वहाँ का संगीत लगभग अपरिवर्तित रहा। इस तरह दोनों संगीत पद्धतियों का मूल आधार एक ही है नींचे दोनों पद्धतियों की तुलनात्मक विवेचना की जा रही है।

उत्तरी और दक्षिणी संगीत – पद्धतियां की समता

  • दोनों संगीत पद्धतियों में लगभग 12 स्वर प्रयोग किये जाते है और उनके स्वर स्थान भी लगभग समान है।
  • जिस प्रकार यहाँ थाट- राग वर्गीकरण की मान्यता है उसी प्रकार दक्षिण भारत अथवा कर्नाटक में भी मेल- राग वर्गीकरण सर्वमान्य है। मेल और थाट एक दूसरे के पर्यावाची शब्द है। थाट के समान मेल से भी राग उत्पन्न माने गए है।
  • दोनों संगीत पद्धतियों में स्वर के साथ साथ लय और ताल का महत्वपूर्ण स्थान है।
  • दोनों पद्धतियों के कुछ ताल भी समान हैं। हिन्दुस्तानी चारताल अथवा एकताल कर्नाटक की चतस्त्र जाति के अठ ताल और हमारा तेवरा ताल वहाँ की तिस्त्र जाति के त्रिपुट ताल के समान हैं।
  • जिस प्रकार उत्तर भारतीय संगीत में ताल देते समय विभाग की प्रथम मात्रा पर ताली अथवा खाली दी जाती हैं,उसी प्रकार कर्नाटक संगीत में भी विभाग की प्रथम मात्रा पर ताली दी जाती हैं।
  • दोनों पद्धतियों के कुछ राग भी स्वर की दृष्टि से समान हैं जैसे – मालकोश – हिंदोलग,दुर्गा- शुद्ध सावेरी, मधुमाद सारंग- मध्यमावती,बिलावल-धीर शंकराभरण, काफी-खरहरप्रिया,भैरवी-हनुमत तोड़ी,भीमपलासी-आभेरी, सोहनी-हंसानंदी, राग भूपाली-मोहनम आदि। कुछ राग नाम की दृष्टि से भी समान है किन्तु स्वर की दृष्टि से नहीं जैसे- श्री,सोहनी, केदार,हिंडोल आदि। दूसरे शब्दों में यह नाम दोनों पद्धतियों में पाये जाते है। हंसध्वनि राग दोनों पद्धतियों में जन्य राग और समान स्वर वाला है।अड़ाना, धनाश्री,श्रीरंजनी आदि राग दोनों पद्धतियों में पाये जाते है,किन्तु दोनों पद्धतियों में इनके स्वर भिन्न हैं।
  • दोनों पद्धतियों में गायक को अपनी कल्पना से गाने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है,किन्तु आचार विचार का अन्तर होने के कारण कल्पना करने का ढंग पृथक है।

उत्तरी और दक्षिणी संगीत – पद्धतियां की विभिन्नता

  • यद्यपि दोनों पद्धतियों में 12 स्वर होते है, फिर भी कुछ स्वरों के नाम भिन्न हैं। हमारा कोमल रे और ध उनका शुद्ध रे और ध, हमारा शुद्ध रे और ध उनका चतु:श्रुति रे और ध है। हमारे तीव्र म को प्रति म, कोमल नि को  षट श्रुति ध अथवा कैशिक नि, कोमल ग को साधारण ग षट श्रुति या पंच श्रुति रे कहते है तथा शुद्ध नि को काकली निषाद कहते हैं। सा ,म, प के स्थान दोनों पद्धतियों में समान है।
  • हिन्दुस्तानी संगीत में स्वर का सबसे नीचा रूप कोमल और कर्नाटक संगीत में शुद्ध कहलाता है।
  • उत्तर भारतीय संगीत में 10 और कर्नाटक संगीत में 19 थाट माने जाते है।
  • हिन्दुस्तानी संगीत में ताल देने के लिए तबला और कर्नाटक संगीत में मृदंगम प्रयोग होता है।
  • वहाँ बंदिश की मौलिकता पर विशेष ध्यान दिया जाता हैं। कोई भी गायक किसी भी बंदिश में तनिक भी परिवर्तन नहीं करता,किन्तु यहाँ इतना कठोर बंधन नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार गीत की बंदिश में परिवर्तन कर लेता है।
  • कर्नाटक संगीत में स्वर की कम्पन और चंचलता पर और हिन्दुस्तानी संगीत में स्वर की गंभीरता और विभिन्नता पर विशेष ध्यान दिया जाता हैं।
  • कर्नाटक संगीत में यह प्राचीन नियम है कि गायक अपने गाने के बीच मृदंगम बजाने वाले को अपनी कला साधना दिखाने का अवसर देता हैं और वह थोड़े समय तक के लिए शांत हो जाता है,किन्तु हिन्दुस्तानी संगीत में ऐसा नहीं होता। यहाँ तबला-संगति का यह अभिप्राय समझा जाता है कि संगति से गायन अधिक सुन्दर हो। तबला को कला परिचय देने के लिए बिल्कुल अलग समय दे दिया जाता हैं जिसे स्वतंत्र वादन (तबला सोलो) कहते है।

Indian classical music theory in hindi..

What is sangeet paddhati in indian classification music in hindi Music theory is described in this post of Saraswati Sangeet Sadhana..

Click here For english information of this post ..   

Some post you may like this…

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top