Tabla & Pakhawaj Sangeet Bhushan Final Syllabus In Hindi Pracheen Kala Kendra

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Tabla & Pakhawaj Sangeet Bhushan Final Syllabus In Hindi

तबला और पखावज

परीक्षा के अंक

पुर्णांक : १५०

शास्त्र- ५०

क्रियात्मक – १००

शास्त्र

(1).निम्नलिखित पारिभाषिक शब्दों का अध्ययन – जाति (पांच प्रकार) ग्रह और उसके चार प्रकार, पेशकार, तबला के मोहरा, मुखड़ा, रेला, लग्गी, लडी, कुआड़, गत, बाट, चक्करदार वर्ण, दमदार तिहाई तथा बेदमदार तिहाई ।

(2).ताल और उसके दस प्राण।

(3).साधारण गायन एवं वादन शैली का ज्ञान – ध्रुपद, धमार, ठुमरी, ख्याल, मसीतवानी और रज़ारवानी गत

(4).समान मात्रा के ताल समूहों का तुलनात्मक अध्ययन।

(5).तबला और पखावज के इतिहास का ज्ञान।

(6).तबला और पखावज  को स्वर में मिलाने की विधि।

(7).तबला और पखावज  वादक के गुण एवं दोष।

(8).भातखंडे तथा विष्णु दिगम्बर की ताल पद्धतियों का अध्ययन और दोनों पद्धतियों में कायदा, टुकड़ा, परन, पेशकार आदि लिखने का अभ्यास ।

(9).प्रथम से तृतीय वर्ष तक निर्धारित सब तालों के ठेकों की ठाह, दुगुन, तिगुन, चौगुन और आड लयकारी लिखने का अभ्यास ।

(10).तबला वादकों के प्रमुख व्यक्तियों में उस्ताद अहमद जान थिरकवा, पं अनोखेलाल, हिववुदीनखां, पं. सामता प्रसाद, पं. किशन महाराज, उस्ताद करामततुल्ला खां, ‘हिरेन गांगुली के कलात्मक साधना का अध्ययन तथा उनका योगदान।

(11).संगीत विषयक निबन्ध।

(12).कायदा, पेशकार, रेला की स्वतंत्र वादन में भूमिका।

(13).लय एंव लयकारी में अंतर, विषम लयकारी के अन्तर्गत पौनगुन, आड़, तिगुन को लिपिबद्ध करना तथा इनकी प्रायोगिक प्रस्तुति ।

(14).तबला एंव पखावज की विभिन्न परम्पराओं (घराना) का ज्ञान तथा उनके संस्थापकों के विषय में जानकारी।

(15).ताल वाद्य हेतू लहरा की आवश्यकता, महत्व तथा निर्धारित तालों में लहरों का ज्ञान।

(16).तबला एव पखावज वादन के विभिन्न बाजों का ज्ञान ।

क्रियात्मक

(1).आडाचारताल, धमार, झूमरा, पंजाबी ठेका, जतताल, सवारी (15 मात्रा) गजझम्पा, मत और रूद्र ताल के ठेकों की ठाह, दुगन, तिगुन एवं चौगुन लयकारी में परणे, टुकड़े एवं लयवाट बजाने का अभ्यास ।

(2).एकताल, चारताल, आड़ाचारताल एव झूमरा ताल में पेशकार, कायदा, टुकड़ा, चक्करदार परन बजाने का अभ्यास। धमार तथा तीवरा ताल में पांच टुकड़े तथा तीन तिहाई बजाने का अभ्यास ।

(3).तबला और पखावज  को स्वर में मिलाने का अभ्यास ।

(4).कण्ठ संगीत और यन्त्र संगीत के साथ संगत करने की क्षमता।

(5).दादरा और कहरवा ताल में कठिन लग्गी एवं लड़ी बजाने का अभ्यास एंव तिहाई बजाकर समाप्त करने का अभ्यास ।

(6).त्रिताल और झपताल में लहरा बजाना ।

(7).धमार, तीवरा और सूलफांक ताल में गत, परन एवं चक्करदार परन बजाने का अभ्यास ।

(8).रूपक, झपताल, एकताल, आड़ाचारताल में पेशकार, तीन कायदे, दो रेला, तिहाई सहित, पांच साधारण टुकड़े, चक्करदार टुकड़े, तीन सादा परन, तीन चक्करदार परन बजाने का अभ्यास।

(9).उपर्युक्त तालों में मुखड़ा, मोहरा का ज्ञान

(10).पखावज हेतू:- तीवरा, सूलताल, चारताल, धमार, दीपचन्दी, रूपक में पांच सादा परन, पांच चक्करदार परन, पांच तिहाई सादा, पांच चक्करदार तिहाईयों का ज्ञान साथ ही इनमे रेले का ज्ञान।

(11).किसी भी गायक/ वादक और नर्तक के साथ संगत करने के लिए तबला वादक को जिन बातों का ध्यान रखना चाहिए उनका विस्तृत ज्ञान ।

टिप्पणी– पूर्व वर्षो का पाठक्रम सयुक्त रहेगा।

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