Tabla & Pakhawaj Sangeet Bhaskar Final Syllabus In Hindi Pracheen Kala Kendra

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Tabla & Pakhawaj Sangeet Bhaskar Final Syllabus

तबला और पखावज

परीक्षा के अंक

पूर्णाक : ४००

शास्त्र – २००

प्रथम प्रश्न पत्र – १००

द्वितीय प्रश्न पत्र – १००

क्रियात्मक – १२५

शास्त्र

प्रथम प्रश्न पत्र

(1).ताल की उत्पत्ति इसके दस प्राण तथा संगीत में ताल की महत्वता का वर्णन ।

(2).शास्त्रीय संगीत, सरल संगीत और यन्त्र संगीत में जितने प्रकार की लयकारी और वादन शैली प्रयुक्त होती है, उनका विवरण।

(3).विभिन्न घरानों (तबला अथवा पखावज) वादन शैली का तुलनात्मक अध्ययन।

(4).पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धति का (Staff Notation ) पूरा ज्ञान और भारतीय संगीत में उनकी उपयोगिता ।

(5).स्वर और ताल का पूर्ण अध्ययन।

(6).तबला अथवा पखावज की वादन शैली का विकास।

(7).तबला अथवा पखावज वादन शैली की परम्परागत तथा आधुनिक शैली के विषय में ज्ञान ।

(8).संगीत शिक्षालय तथा संगीत शिक्षण ।

(9).गुरू शिष्य परम्परा का महत्व।

(10).अवन्द्ध वाद्यों में तबला तथा परखावज का स्थान।

(11).संगीत में अधारभूत तत्त्व, उनका विवेचन, महत्व एवं उनकी उपयोगिता पर प्रकाश ।

(12).रस सिद्धांत, व्याख्या, ताल एवं लय का रस के साथ संबंध

(13).ध्वनि उत्पति का ज्ञान, अपने वाद्य में ध्वनि उत्पति उसके तत्व

(14).स्वतंत्र वादन एवं साथ संगति का अन्तर। इनके विभिन्न चरणों ज्ञान एवं प्रस्तुति संबंधी नियम।

(15).भारतीय संगीत के वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर दृष्टिपात। विभिन्न मुख्य सांगीतिक संस्थाओं एवं उनके कार्यकलापों की जानकारी|

(16).दक्षिणी (कर्नाटक) ताल पद्धति के विकास क्रम की पूर्ण जानकारी।

(17).विभिन्न सांगीतिक समस्याओं पर सूक्ष्म, मौलिक विवेचन |

द्वितीय  प्रश्न

(1).निम्नलिखित तालों को कठिन लयकारियों में लिखनें का अभ्यास ।

(2).प्रथम से सप्तम वर्ष तक के पाठ्यक्रम में निर्धारित सभी तालों में रेला, टुकड़ा, परण आदि ताल लिपि में (Notation) लिखने का अभ्यास (तबला पखावज ) – कुम्भ, लक्ष्मी, विष्णु और फरोदस्त।

(3).चक्रदार परण, कमाली परण, फरमाईशी परण, दुपल्ली, तिपल्ली इत्यादि लिखनें का अभ्यास।

(4).पाठ्यक्रम के सभी तालों में जिस किसी मात्रा से तिहाई लिखने का अभ्यास।

(5).15वीं शताब्दी के बाद पंजाब में तबले की स्थिति का वर्णन ।

(6).संगीत से संबधित विषयों पर निबन्ध लिखने की क्षमता।

(7).विभिन्न परम्परा (घरानों) के अन्तर्गत विकसित वादन शैलियों की विशेषताओं का अध्ययन एवं उनकी पारंपरिक मौलिक बंदिशों का ज्ञान तथा मूल संस्थापक के नाम एवं वर्तमान में उस परंपरा के संवाहक की जानकारी ।

(8).दिये गये बोलों के आधार पर रचना करना तथा उनको लिपिबद्ध करना।

(9).भारतीय एवं पाश्चात्य प्रकारों तथा ताल वायों की जानकारी उनका तुलनात्मक अध्ययन

(10).समस्त प्रकार की गायन-वादन मैलियों का अध्ययन उनके साथ प्रयुक्त की विवेचनात्मक जानकारी।

(11).पाठ्यक्रमीय तालों की रचनाओं को लिपिवद्ध करना।

(12).  छंद – लय निर्मित लयकारी का जातिगत आधार पर  विश्लेषण |

(13).विभिन्न परंपराओं (घरानों) के प्रमुख व्यक्तियों के विषय में विस्तृत जानकारी एवं उनका सांगीतिक योगदान।

(14).,प्राचीन, मध्य और आधुनिक कालीन ग्रन्थों में वर्णित ताल वादयों केविकास का ज्ञान ।

क्रियात्मक

(1).निम्नलिखित तालों को बजानें के विषय में साधारण ज्ञान- कुम्भ, विष्णु, लक्ष्मी, जगदम्बा, ब्रह्म, शिखर।

(2).निम्नलिखित तालों में बजाने की विशेष दक्षता एवं नवहक्का कमाली, फरमाईशी इत्यादि विभिन्न प्रकार की परण बजानें का अभ्यास- त्रिताल, झपताल, झूमरा, दीपचन्दी, धमार, सूलताल, एकताल, चारताल, आड़चारताल, गजझम्पा और पंजाबी ठेका।

(3).निम्नलिखित तालों में संक्षिप्त विस्तार के साथ वादन, अष्टमंगल, धमार, सूलताल।

(4).पश्तों और कव्वाली ताल में संगत की दक्षता ।

(5).कंठ और वादन के साथ विशेष प्रवीणता युक्त संगत की क्षमता।

(6).विभिन्न घरानों की वादन शैली के प्रदर्शन का ज्ञान।

(7).हाथ पर ताली खाली दिखलाकर पाठ्यक्रम में निर्धारित सभी तालों को विभिन्न लयकारीयो में बोलने का अभ्यास

(8).तीन ताल का सर्वागीण प्रदर्शन।

मंच प्रदर्शन –

30 मिनट (षष्टम और सप्तम वर्ष के किसी ताल में)

टिप्पणी – पूर्व वर्षो का पाठ्यक्रम संयुक्त रहेगा।

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