Swar Sadhana in Music in Hindi is described in this post available on saraswati sangeet sadhana
Swar Sadhana in Music in Hindi
स्वर साधना
संगीत के प्रत्येक विद्यार्थी ने अपने गुरु की यह वाणी अवश्य ही सुनी होगी कि रियाज़ खूब किया करो । रियाज से गाने में चमक आती है । रियाज़ उर्दू भाषा का शब्द है । इसे हिन्दी में अभ्यास कहते हैं । स्वर और लय संगीत रूपी भवन के दो स्तम्भों का अभ्यास संगीत साधना कहलाती है । गायन में स्वर का प्रमुख स्थान है अतः कण्ठ को अधिक उपयोगी या गाने योग्य बनाने को स्वर साधना कहते हैं ।
कण्ठ का सुरीला होना बहुत अंश तक ईश्वरीय है , किन्तु गायन को इधर – उधर तथा ऊपर – नीचे ले जाना पड़ता है । अतः कण्ठ का ईश्वरीय प्रदत्त होना ही पर्याप्त नहीं , अभ्यास द्वारा उसे अधिकाधिक सुरीला और गाने योग्य बनाया जा सकता है । नित्य प्रति नियमित अभ्यास इसके लिए परम आवश्यक है । स्वर – साधन करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिये ।
१ ) श्वसन क्रिया –
गायन में श्वाँस का बड़ा महत्व है । किस प्रकार और किस समय श्वाँस लेनी चाहिए ये दोनों बातें गायन को रंजक बनाने में बहुत सहायक होती हैं । कुछ लोगों की आदत जोर से साँस लेने की पड़ जाती है और जब गाने के बीच में जोर से साँस लेते हैं तो सुनने में बुरा लगता है । कभी – कभी तो साँस लेते ही ताल निकल जाता है । स्वर साधना के द्वारा स्वर को अधिक से अधिक लम्बा करने की क्षमता उत्पन्न की जाती है । जितने समय तक साँस प्रक्रिया रोकी जा सकती है , उतने समय तक स्वर लम्बा किया जा सकता है । इसलिये गायक का स्वास्थ्य अच्छा होना आवश्यक है । दमा का रोगी अच्छा गायक नहीं बन सकता ।
( २ ) सुरीलापन –
स्वरों को सदैव अपने निश्चित स्थान पर लगाना सुरीलापन कहलाता है । संगीत के विद्यार्थी को इस बात पर अत्यधिक ध्यान रखना चाहिये । जिस प्रकार का नित्य अभ्यास होगा , उसी प्रकार का गायन परीक्षा में अथवा किसी संगीत – सभा में होगा । यह बात सम्भव नहीं है कि प्रतिदिन के अभ्यास में बेसुरा होने को यों ही टाल दिया जाय और परीक्षा में सोंचे कि कहीं बेसुरे न हो । वास्तविकता यह है कि इस तरह के अभ्यास से कहीं – कहीं बेसुरे होने का नित्य गलत अभ्यास ही होता है । अतः संगीत के प्रत्येक साधक को सदैव बेसुर की छाया मात्र से बचने की कोशिश करनी चाहिये । अपनी क्षमता से अधिक कठिन कार्य करने की कोशिश न करनी चाहिये , क्योंकि ऐसी अवस्था में भी बेसुरा होना स्वाभाविक है ।
( ३ ) मधुरता –
संगीत को आकर्षक बनाने में केवल सुरीलापन पर्याप्त नहीं है । इसके साथ – साथ गायन में मधुरता भी होनी चाहिये । ऐसे अनेक गायक है जो सुरीले अवश्य हैं , किन्तु उनमें मधुरता नहीं है । कण्ठ की मधुरता ईश्वरीय देन अवश्य है , किन्तु दैनिक अभ्यास द्वारा इसकी कमी की पूर्ति की जा सकती है । अस्वाभाविक ढंग से स्वर लगाना , स्वर में लड़खड़ाहट , तीखापन आदि दुर्गुण न होने से स्वर में मधुरता बढ़ती है । अतः इनसे दूर रहना चाहिये । अभ्यास करते समय इन बातों को ध्यान में अवश्य रखना चाहिये ।
( ४ ) स्वर – मर्यादा-
हम पीछे बता चुके हैं कि सप्तक तीन हैं और गायन का अधिकांश भाग मध्य सप्तक में होता है । यद्यपि मन्द्र और तार सप्तकों की आवश्यकता कम पड़ती है तथापि इनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती हैं । गायक धीरे – धीरे मन्द्र और तार सप्तकों में अपना कंठ अधिक से अधिक दूर ले जाने की कोशिश करता है । मन्द्र सप्तक के स्वरों में अभ्यास करने को खरज साधन कहते हैं । खरज – साधन से स्वरों में स्थिरता तथा स्वरों की मर्यादा बढ़ती है . किन्तु गलत अभ्यास करने से कण्ठ में बहुत से दोष भी आ जाते हैं । अतः प्रारम्भ में किसी अच्छे गुरू के समक्ष अभ्यास करना चाहिए । स्वरों का फैलाव धीरे – धीरे ऊपर – नीचे बढ़ाना चाहिये और अपनी आवाज के साथ जबरजस्ती नहीं करनी चाहिये ।
Swar Sadhana in Music in Hindi is described in this post
Click here for Kathak Terms And Definitions in english
स्वर साधना क्या है ? स्वर साधना कैसे केरें ?
संगीत के प्रत्येक विद्यार्थी ने अपने गुरु की यह वाणी अवश्य ही सुनी होगी कि रियाज़ खूब किया करो । रियाज से गाने में चमक आती है । रियाज़ उर्दू भाषा का शब्द है । इसे हिन्दी में अभ्यास कहते हैं । स्वर और लय संगीत रूपी भवन के दो स्तम्भों का अभ्यास संगीत साधना कहलाती है । गायन में स्वर का प्रमुख स्थान है अतः कण्ठ को अधिक उपयोगी या गाने योग्य बनाने को स्वर साधना कहते हैं ।
कण्ठ का सुरीला होना बहुत अंश तक ईश्वरीय है , किन्तु गायन को इधर – उधर तथा ऊपर – नीचे ले जाना पड़ता है । अतः कण्ठ का ईश्वरीय प्रदत्त होना ही पर्याप्त नहीं , अभ्यास द्वारा उसे अधिकाधिक सुरीला और गाने योग्य बनाया जा सकता है । नित्य प्रति नियमित अभ्यास इसके लिए परम आवश्यक है । स्वर – साधन करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिये ।