Roop Saundarya in Kathak in Hindi is described in this post . Kathak shastra notes available on saraswati sangeet sadhana
Roop Saundarya in Kathak in Hindi
Roop Saundarya in Kathak in Hindi
रूप सौन्दर्य
वस्त्र और आभूषण के साथ –
साथ नर्तक को रूप सौन्दर्य ( मेकअप ) का भी ध्यान रखना पड़ता है । आजकल मेकअप की अनेक सामग्रियों उपलब्ध हैं , जिनसे एक ओर रूपसज्जा अच्छी होती है और दूसरी ओर श्रोताओं पर अच्छा प्रभाव पड़ता है , किन्तु मेकअप ऐसी न होनी चाहिये कि नर्तक का व्यक्तित्व छिप जाय और अस्वाभाविक लगे । भरत ने नाट्यशास्त्र में रूप – सौन्दर्य पर विस्तार से प्रकाश डाला है और शरीर के विभिन्न अंगों की सुन्दरता बढ़ाने के साधन बताये हैं । नीचे शरीर के विभिन्न अंगों के रूप – सौन्दर्य पर संक्षेप में प्रकाश डाला जा रहा है।
चेहरा-
चेहरे को हल्के गरम पानी से धोकर कपड़े से पोंछिये । इसके बाद हल्का तेल लगाकर पुनः चेहरे को साबुन से धोइये । इसके बाद चेहरे को अच्छी तरह से पोंछकर स्नो या फाउन्डेशन क्रीम लगाइये और उसके ऊपर पावडर लगाइये । फाउन्डेशन क्रीम लगाने पर पसीना से पावडर नहीं बहता । पफ से पावडर लगाना चाहिये । चेहरे के अतिरिक्त गर्दन , नाक तथा आँख के चारों और पावडर लगाना चाहिये । पावडर अधिक समय तक नहीं चलता , अतः 2-2 घन्टों के बाद पुनः लगा लेना चाहिये ।
होंठ-
सर्वप्रथम होंठ को किसी वस्त्र से पोंछ लीजिये और उस पर हल्की क्रीम लगाइये । इसके बाद लिपिस्टिक बुश द्वारा होठों के ऊपर नीचे रेखा बना लीजिये और इन रेखाओं के बीच लिपिस्टिक लगाइये । लिपिस्टिक के कई प्रकार मिलते हैं । नर्तक अपनी – अपनी रूचि के अनुसार शेड चुनते हैं । लिपिस्टिक लगाने के बाद होठों को जीभ से चाटना नहीं चाहिये ।
केश-
सर्वप्रथम बालों को शैम्पू या रीठे से धो लेना चाहिये । इससे बाल मुलायम हो जाते हैं । कुछ नर्तकियाँ जूड़े बनाती हैं और कुछ चोटी । बालों में सफेद फूल लगाती हैं । कुछ माथे पर बालों को घुमाव दे देती हैं । कमर से नीची चोटी अच्छी लगती है , अत : जिनकी चोटी छोटी होती हैं वे नाइलोन के बालों द्वारा अथवा काले धागे की चोटी द्वारा उसे बढ़ा लेती हैं ।
आँख-
नेत्रों में हल्का काजल लगाते हैं । पेन्सिल से भी की गति बनाते हैं । भौहें पतली होनी चाहिये जो स्वाभाविक लगे ।
कपोल-
गालों के बीच हल्की लाली लगाकर उसे अँगुलियों से रगड़कर पावडर से मिलाना चाहिये जिससे लाली अस्वाभाविक न लगे । लाली अच्छे स्वास्थ की परिचायक हैं ।
नाखून-
हाथ के बढ़े हुये नाखून नर्तक की शोभा बढ़ाते हैं , किन्तु इन्हें भी सँवारने की आवश्यकता होती है । नाखून पर नेल पालिश लगाते हैं । लिपिस्टिक की तरह नेल – पालिश के भी कई प्रकार ( शेड ) मिलते हैं । नर्तक अपनी इच्छा के अनुसार शेड चुन लेता है । नेल पालिश लगाने के पहले नाखून को साबून से अच्छी तरह धोकर कपड़े से पोंछ लेना चाहिये और सावधानी से ब्रुश द्वारा नेल पालिश लगानी चाहिये । बहुत अधिक पालिश नहीं लगानी चाहिये पालिश द्वारा नाखून पर विभिन्न डिजाइनें भी बनाते हैं , किन्तु सादी डिजाइन अधिक प्रचार में है । सुन्दरता के लिये नर्तक हाथ के नाखून बढ़ाते हैं और बढ़ी हुई नाखून को नोकदार काटते हैं । नाखून की लम्बाई अँगुलियों की लम्बाई के अनुपात में होनी चाहिये । लम्बी अँगुलियों के साथ लम्बे नाखून शोभा नहीं देंगे ।
मेंहदी का प्रयोग-
लाल रंग आँखों को अच्छा लगता है और शुभ भी माना जाता है । नर्तक हाथ और पैर के तलुवे में मेंहदी लगाते हैं । कभी – कभी मेंहदी के स्थान पर सुर्ख लाल रंग प्रयोग करते हैं । हाँथ की हथेली अथवा बाजू पर मेंहदी द्वारा विभिन्न डिजाइनें भी बनाते हैं।
घुघरू-
भारत के प्रत्येक नृत्य में घुँघरूओं का प्रयोग होता है । अन्य किसी भी विदेशी नृत्य में इनका प्रयोग नहीं होता । साधारण विद्यार्थी के लिये प्रत्येक पैर में सौ – सौ घुँघरू होने चाहिये । बाद में ढाई – ढाई सौ तक हो सकते हैं । नंदिकेश्वर ने ‘ अभिनय दर्पण ‘ ग्रंथ में बताया है कि घुँघरू कांसे की बनी होनी चाहिये , किन्तु आजकल पीतल के घुँघरूओं का अधिक प्रचार है ।
घुँघरू समान आकार के तथा सुन्दर होने चाहिये । इनकी ध्वनि भी लगभग समान होनी चाहिये । अतः घुँघरूओं को खरीदते समय सावधानी की आवश्यकता होती है ।
नृत्य के शास्त्रकारों ने घुँघरुओं को धागे में बाँधे जाने का विधान बताया है और धागे का रंग नीला बताया है । उन्होंने बताया कि एक – एक अंगुल की दूरी पर धागे में गाँठ लगाकर घुँघरू फँसा देना चाहिये । कभी – कभी कुछ घुँघरूओं में नोक निकले रहते हैं , उन नोकों को घिस कर चिकना कर लेना चाहिये । पैरों में घुँघरू मजबूती से बाँधे जाने चाहिये । ऐसा न हो कि नृत्य करते समय घुँघरू खुलने लगे और या इतनी सख्ती से बँधा हो कि पैर कटने लगे । खुलने के ही डर से विद्यार्थियों के लिये अब चमड़े की पट्टी में लगे हुए घुँघरू बनाये जाने लगे हैं ।
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