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राग– हिंडोल
जहां ऋषभ पंचम नहीं, तीवर मध्यम जान।
धग वादी सम्वादी ते, हिंडोल राग पहचान।।
Hindi notes of Hindol ragas / राग– हिंडोल का परिचय
इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई है। इसमें मध्यम स्वर तीव्र और अन्य शेष शुद्ध लगते है। ऋषभ और पंचम स्वर वर्ज्य होने से इसकी जाति औडव-औडव है। वादी धैवत और संवादी गंधार है । इसका गायन समय दिन का प्रथम प्रहर है।
आरोह– सा ग, म(t) ध नि ध, सां।
अवरोह– सां, नि ध, म(t) ग, सा ।
पकड़– सां, ध म(t) ध सां।
थाट – कल्याण थाट
वर्ज्य स्वर – ऋषभ और पंचम स्वर
जाति -औडव-औडव
गायन समय – दिन का प्रथम प्रहर है।
राग– हिंडोल की विशेषता–
- यह एक प्राचीन राग है जिसका उल्लेख प्राचीन सभी ग्रन्थों में मिलता है। राग- रागिनी पद्धति में से भरत और हनुमान मतानुसार यह राग मुख्य 6 रागों में से एक है।
- इसमे निषाद वक्र तथा अल्प है। आरोह में इसे वक्र रखते है और अवरोह में इसे सोहनी से बचाने के लिए या तो नि को लंघन कर जाते है और या तार सा से ध को आते समय नि का कण लेते है।
- हिंडोल गंभीर प्रकृति का राग है। अतः ध्रुपद के लिए अधिक उपयुक्त है।
- ग से सा को तथा सां से ध को आते समय अधिकतर मींड प्रयोग करते है।
- यह उत्तरांग प्रधान राग है, अतः इसकी चलन मध्य सप्तक के उत्तरांग या तार सप्तक में अधिक होती है।
- निषाद अल्प होने की वजह से कुछ पुराने गायक इसे चार स्वरों का राग कहते है।
न्यास के स्वर– ग, ध और सां।
समप्रकृति राग– सोहनी
हिंडोल– सां ध म(t) ग, म(t) ग सा।
सोहनी– सां- नि ध नि ध, म(t) ग ग म(t) धग म(t) ग, रे सा।
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