Suha Raag

सूहा राग Suha Raag Bandish 16 Matras Allap Taan Music Notes In Hindi

4.7/5 - (3 votes)

राग सूहा को काफी थाट जन्य माना गया है। इसके गंधार और निषाद स्वर कोमल है। इसके आरोह में ऋषभ और धैवत और अवरोह में केवल धैवत वर्ज्य माना जाता है, इसलिये इसकी जाति औडव-षाडव मानी जाती है। वादी म और संवादी सा है। गायन समय मध्यान्ह काल है।

ग नि कोमल ओडव षाडव,   सूहा   राग   सुहाय।

 मध्यान्ह काल गावत गुनि जन, मस संवाद लुभाय।।

Suha Raag

How To Read Sargam Notes

  • “.” is used for mandra saptak swars eg-(.प , .ध )
  • “*” is used for Taar saptak swar
  • “(k)” is used for komal swars.eg – ( रे(k) , (k) , (k) , नि(k) ) (Note – You can write ( रे , , , नि ) in this manner in exams . )
  • म(t) here “(t)” is used for showing teevra swar म(t) . (Note – You can write ( म॑ ) in this manner in exams . )
  • “-” is used for stretching the swars according to the song.
  • Swars written “रेग” in this manner means they are playing fast or two swars on one beat.
  • (रे)सा here रे” is kan swar or sparsh swar and “सा” is mool swar. (Note – You can write ( रेसा ) in this manner in exams . )
  • [ नि – प ] here this braket [ ] is used for showing Meend from “नि” swar to प” . (Note – You can write ( नि प ) making arc under the swars in this manner in exams . )
  • { निसां रेंसां नि } here this braket {} is used for showing Khatka in which swars are playing fast .

Suha Raag Parichay

आरोह-ऩि(k) सा, ग(k) – म प, नि(k) प सां।

अवरोह- सां नि(k) प, म प, म प ग(k) – म रे सा।

पकड़:- ऩि(k) सा ग(k) म प, नि(k) प, ग(k) म रे सा।

थाट – काफी थाट

वादी -सम्वादी स्वर – म सा

जाति – औडव-षाडव

गायन समय – मध्यान्ह काल

विशेषता:-

1.राग सूहा को कान्हडे का एक प्रकार माना जाता है। इसका प्रत्येक आलाप ग(k) म रे सा से समाप्त किया जाता है जो कान्हडा अंग का सूचक है। नि(k) प की संगति, आंदोलित गंधार, और अवरोह में वक्र गंधार इस बात को सिद्ध करते है कि यह कान्हडे का एक प्रकार है।

2.कभी-कभी इसके आरोह में गंधार की अवहेलना कर दी जाती है और सा से सीधे मध्यम पर चले जाते हैं, जैसे- सा, म प, ग(k) – म रे सा। यह स्वर समूह राग बहार का है जो इसमें लिया जाता है। वास्तव मे इसके पूर्वांग में बहार और उत्तरांग में सारंग कि योग है। ध वर्ज्य कर देने से बहार राग से और वर्ज्य करने से सारंग से अलग हो जाता है।

3.अवरोह में गंधार सदैव वक्र प्रयोग किया जाता है। सदैव नि(k) पर पंचम का और ग (k)पर म का कण दिखाया जाता है। उदाहरण के लिए आरोह-अवरोह देखिये।

4.कुछ विद्वान इस राग में मेघ मल्हार और कान्हडा का, कुछ सारंग और कान्हडा का और कुछ कान्हडा, सारंग और मल्हार का और कुछ विद्वान प्रचलित प्रकार में बहार व सारंग का योग मानते है।

5.आरोह में कभी-कभी शुद्ध निषाद का प्रयोग करते हुये तार सा पर जाने का प्रचलन है। अधिकांश विद्वान केवल कोमल नि प्रयोग करते है और शुद्ध नि प्रयोग करते भी है तो प्रवेशक स्वर के रूप में। दोनों निषादों के प्रयोग से सारंग अंग स्पष्ट हो जाता है।

6.तार सा पर जाने के लिए नि(k)की अवहेलना कर देते है और पंचम से सीधे तार सा पहुँचते है, जैसे- नि(k)प सां। अवरोह में तार सा से  लौटते समय नि(k) पर प का पूर्व लगन कण लेते है जैसे, सां नि(k) प, इस प्रकार निषाद पर पंचम का कण बहुत आवश्यक है, जो राग वाचक माना जाता है।

7.यह राग उत्तरांग प्रधान होते हुए भी पूर्वांग से स्पष्ट होता है। कारण, यह कान्हडे का एक प्रकार है और इसमें कान्हडे का एक अंग प्रबल है।

8.पीछे धैवत वर्ज्य सूहा का परिचय दिया गया है। इसका एक दूसरा प्रकार भी है जिसमें कोमल धैवत प्रयोग किया जाता है जिसका प्रचार बहुत कम है।

9.कान्हडा का प्रकार होने के नाते कान्हडा के प्रकारों में गंधार जितना आंदोलित होता है, उतना इसमें नहीं होता लेकिन आंदोलित अवश्य होता है।

न्यास के स्वर- सा, ग(k) म और प।

समप्रकृति राग- नायकी, सुघराई, शहाना और देवशाख।

राग सूहा अन्य रागों की अपेक्षा नायकी और देवशाख से अधिक मिलता- जुलता है। अवरोह तो तीनों का लगभग एक है। सूहा के आरोह में ऋषभ वर्ज्य कर गंधार प्रयोग करने से यह नायकी से अलग हो जाता है और मुक्त मध्यम प्रयोग करने से यह सुघराई से अलग हो जाता है। धैवत वर्ज्य करने से यह सुघराई और शहाना से अलग हो जाता है, क्योंकि इन दोनों रागों में धैवत प्रयोग किया जाता है।

सूहा राग प्रश्न उत्तर –

सूहा राग के आरोह अवरोह पकड़ क्या हैं ?

आरोह-ऩि(k) सा, ग(k) – म प, नि(k) प सां।
अवरोह- सां नि(k) प, म प, म प ग(k) – म रे सा।
पकड़:- ऩि(k) सा ग(k) म प, नि(k) प, ग(k) म रे सा।

सूहा जाति – राग की जाति क्या है ?

जाति – औडव-षाडव

 सूहा राग का गायन समय क्या है ?

गायन समय – मध्यान्ह काल

 सूहा राग में कौन से स्वर लगते हैं ?

आरोह-ऩि(k) सा, ग(k) – म प, नि(k) प सां।
अवरोह- सां नि(k) प, म प, म प ग(k) – म रे सा।
पकड़:- ऩि(k) सा ग(k) म प, नि(k) प, ग(k) म रे सा।

सूहा राग का ठाट क्या है ?

थाट – काफी थाट

सूहा राग के वादी संवादी स्वर कौन से हैं ?

वादी -सम्वादी स्वर – मा सा

सूहा राग का परिचय क्या है ?

राग सूहा को काफी थाट जन्य माना गया है। इसके गंधार और निषाद स्वर कोमल है। इसके आरोह में ऋषभ और धैवत और अवरोह में केवल धैवत वर्ज्य माना जाता है, इसलिये इसकी जाति औडव-षाडव मानी जाती है। वादी न और संवादी सा है। गायन समय मध्यान्ह काल है।

सूहा राग के वर्जित स्वर कौन से हैं ?

वर्जित स्वर – रे  ध

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!
Scroll to Top