सुघराई राग की उत्तपत्ति काफी थाट से मानी गई है। गंधार और निषाद कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। इसके आरोह में धैवत वर्ज्य और अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते हैं, इसलिये इसकी जाति षाडव- सम्पूर्ण है। वादी पंचम और संवादी षडज है। गायन समय दिन का दूसरा प्रहर है।
Sughrai Raag
Sughrai Raag Parichay
आरोह- .नि(k) सा रे म ग(k) – म प, नि(k) सां।
अवरोह- सां ध नि(k) प म प म ग(k) – म रे सा।
थाट – काफी थाट
वादी -सम्वादी स्वर – प सा
जाति – षाडव- सम्पूर्ण
गायन समय – दिन का दूसरा प्रहर
विशेषता:-
राग सुघराई, कान्हडा का एक प्रकार है, इसलिये कुछ विद्वान इसे सुघराई कान्हडा भी कहते है। इसमें सारंग और कान्हडा अंगों का मेल है। इसलिये दोनों रागों की छाया आनी स्वभाविक है। जब सारंग अंग बढने लगता है तो धैवत और गंधार प्रयोग करते है और कान्हडांग दिखाते है। प्रत्येक आलाप की समाप्ति कान्हडांग म ग(k) – म रे सा, से करते है।
आरोह में कभी-कभी सूहा अंग भी लेते है, जैसे .नि(k) सा ग(k) म, किन्तु शीघ्र ही धैवत प्रयोग करने से सूघराई स्पष्ट होता है।
यह राग सूहा, शहाना और नायकी रागों से बहुत मिलता- जुलता है। सुघराई राग के आरोह में .नि(k) सा ग(k) म, और सुघराई में .नि(k) सा रे म प्रयोग किया जाता है। सूहा और सहाना में मध्यम और सुघराई में पंचम प्रबल है। नायकी और सूहा में धैवत वर्ज्य होने से भी सुघराई इनसे अलग हो जाता है। शहाना का धैवत सुघराई की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। इसके धैवत पर कोमल नि का और गंधार पर मध्यम का कण दिया जाता है। यह गायन शैली का राग है जो तीनों सप्तकों में गाया बजाया जाता है।
सुघराई राग प्रश्न उत्तर –
सुघराई राग के आरोह अवरोह पकड़ क्या हैं ?
आरोह- .नि(k) सा रे म ग(k) – म प, नि(k) सां।
अवरोह- सां ध नि(k) प म प म ग(k) – म रे सा।
सुघराई राग की जाति क्या है ?
जाति – षाडव- सम्पूर्ण
सुघराई राग का गायन समय क्या है ?
गायन समय – दिन का दूसरा प्रहर
सुघराई राग में कौन से स्वर लगते हैं ?
आरोह- .नि(k) सा रे म ग(k) – म प, नि(k) सां।
अवरोह- सां ध नि(k) प म प म ग(k) – म रे सा।
सुघराई राग का ठाट क्या है ?
थाट – काफी थाट
सुघराई राग के वादी संवादी स्वर कौन से हैं ?
वादी -सम्वादी स्वर – प सा
सुघराई राग का परिचय क्या है ?
सुघराई राग की उत्तपत्ति काफी थाट से मानी गई है। गंधार और निषाद कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। इसके आरोह में धैवत वर्ज्य और अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते हैं, इसलिये इसकी जाति षाडव- सम्पूर्ण है। वादी पंचम और संवादी षडज है। गायन समय दिन का दूसरा प्रहर है।