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Hindi notes of Samant sarang raag / राग सामंत सारंग का परिचय
Samant sarang raag description / information in detail-
राग सामंत सारंग की विशेषता:-
- इसे काफी थाट जन्य माना गया है। आरोह में गंधार और धैवत तथा अवरोह में केवल गंधार स्वर वर्जित हैं। इसलिये इसकी जाति ओडव-षाडव है। ऋषभ वादी और पंचम संवादी माना जाता है। गायन समय मध्याह्न काल है। दोनों निषाद तथा शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है।
आरोह– सा रे म प नि सां।
अवरोह– सां नि ध प म रे सा।
- यह सारंग का एक अप्रचलित राग है। इस राग में सारंग और देश रागों का मिश्रण विद्वानों ने माना है। अवरोह में धैवत का अल्प प्रयोग होता है। सूर मल्हार के यह बहुत निकट है। अंतर यह है कि इसे सारंग अंग से गाया जाता है और सूर मल्हार को मल्हार अंग से गाया जाता है।
- इसके आरोह में शुद्ध और अवरोह में कोमल नि प्रयोग किया जाता है।
स्वरूप– सा, ऩि सा रे, म प नि प, नि प म प नि ध प, म रे ऩि सा। रे म प, म नि ध प, रे म प नि प, म नि प, म रे – प, म – नि प, म नि ध प, म रे सा। म प नि सां, रें मं – रें सां, नि प, म नि ध प, म प, म रे, सा।
Raag parichay of all raags in Indian Classical music..
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