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Hindi notes of Megh Malhar raag / राग मेघ मल्हार का परिचय
Megh Malhar raag description / information in detail-
राग मेघ मल्हार की विशेषता:-
- इस राग को काफी थाट जन्य माना गया है। गंधार और धैवत वर्ज्य होने से इसकी जाति ओडव है। वादी मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है। निषाद कोमल और शेष स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं।
आरोह– सा, सा रे म, रे प, म प नि सां।
अवरोह– सां प नि प म, म रे – सा ।
- यह राग मल्हार का एक प्रकार है। वर्षा ऋतु में इसे हर समय गाते बजाते है। इसकी रचना के विषय में यह किवदंती है कि जब तानसेन ने दीपक राग गाया था तो उनके शरीर की प्रचन्ड गर्मी इसी राग द्वारा समाप्त की गई। कुछ विद्वानों का विचार है कि उनकी पुत्री ने मेघ राग गाया था और कुछ का विचार है कि उनकी पत्नी ने इसे गाया था।
- इसके ऋषभ पर सदैव मध्यम का कण लगाया गया है। रे प की संगति मल्हारांग का सूचक है। इसमें मध्यम खूब चमकता है। कुछ विद्वान कोमल गंधार का अल्प प्रयोग करते है। इस राग का गायन तीनों सप्तकों में समान रूप से होता है। मेघ मल्हार मध्यमाद सारंग के बहुत समीप हैं।
स्वरूप– सा, सा नि सा नि सा, प़ नि प म़ प़, नि म प म रे, म रे, सा नि सा नि सा नि सा म रे म रे, रे म रे, म रे प म, म रे रे सा ऩि सा ऩि सा प ऩि प, म़ प़ सा। म रे रे प, म प म नि प, म प नि म प म प नि म प, निनि पमप म नि प, म, रे म रे सा नि सा नि सा, म प प नि प नि नि सां, सां रे सां नि सां नि सां, मं रें मं रें नि सां, रें सांनिसां, प नि प, म प नि म प, रें म रें, म रे पम रे, सा नि नि सा।
Raag parichay of all raags in Indian Classical music..
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