Raag description & information , parichay of Jait Kalyan raag in Indian classical music in hindi is described in this post . Learn indian classical music in simple steps.
राग जैत कल्याण
थाट कल्याण मानत गुनि जन, पस संवाद अनुप।
ओडव सम्पूरन प्रथम रात्रि,श्याम कल्याण स्वरुप।।
Hindi notes of Jait Kalyan raag / राग जैत कल्याण का परिचय
Jait Kalyan Raag description / information in detail-
इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी गई है। सभी स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते है। मध्यम और निषाद वर्ज्य होने से इसकी जाति ओडव मानी जाती है। वादी पंचम और संवादी ऋषभ है। गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है।
पकड़– रे म॑प, ध प म॑प, ग म रे, ग नि सा।
थाट – कल्याण थाट
वर्ज्य स्वर – आरोह में गंधार और धैवत वर्ज्य है
जाति – औडव-औडव
वादी – संवादी – प – रे
गायन समय -गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है।
राग जैत कल्याण की विशेषता:-
- राग जैत कल्याण, कल्याण का एक प्रकार है। आरोह में ऋषभ और धैवत अल्प है, इसलिये अल्प प्रयोग किये जाते हैं।
- इस राग में प – ग, प – रे और ध – ग की संगति राग वाचक है। जैत कल्याण राग भूपाली और देशकार से बहुत मिलता- जुलता है। चलन वक्र होने के कारण यह सरलता से भूपाली और देशकार रागों से अलग हो जाता है।
Raag parichay of all raags in Indian Classical music..
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