गोपिकाबसन्त राग आसावरी थाट जन्य माना जाता है। इसमें गंधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल लगते है। ऋषभ वर्ज्य होने की वजह से इसकी जाति षाडव है। वादी मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय दिन का दूसरा प्रहर है।
ग ध नि स्वर कोमल रहे, मानत म स संवाद।
प्रात समय गुनिजन गावत, रखियत आसावरी थाट।।
Gopika Basant Raag
How To Read Sargam Notes
- “.” is used for mandra saptak swars eg-(.प , .ध )
- “*” is used for Taar saptak swar
- “(k)” is used for komal swars.eg – ( रे(k) , ग(k) , ध(k) , नि(k) ) (Note – You can write ( रे , ग , ध , नि ) in this manner in exams . )
- म(t) here “(t)” is used for showing teevra swar म(t) . (Note – You can write ( म॑ ) in this manner in exams . )
- “-” is used for stretching the swars according to the song.
- Swars written “रेग” in this manner means they are playing fast or two swars on one beat.
- (रे)सा here “रे” is kan swar or sparsh swar and “सा” is mool swar. (Note – You can write ( रेसा ) in this manner in exams . )
- [ नि – प ] here this braket [ ] is used for showing Meend from “नि” swar to “प” . (Note – You can write ( नि प ) making arc under the swars in this manner in exams . )
- { निसां रेंसां नि } here this braket {} is used for showing Khatka in which swars are playing fast .
गोपिका बसन्त राग परिचय
आरोह- सा, ग(k) म प नि(k) ध(k) नि(k) सां।
अवरोह- सां नि(k) नि(k) ध(k) प, म ग(k) सा।
पकड़- ग(k) म प, ग(k) म ध(k) नि(k) सां, नि(k) ध(k) प म,ग(k) म ग(k) सा।
थाट – थाट आसावरी
वर्जित स्वर – रे
वादी -सम्वादी स्वर – म सा
जाति – षाडव- षाडव (6,6)
गायन समय – दिन के दूसरे प्रहर (9 am to 12 pm)
विशेषता:-
1. यह कर्नाटक पद्धति का राग है जिसका प्रचार अब उत्तरी संगीत में काफी हो गया है। ग(k) ध(k) और नि(k) स्वर कोमल होने से इसे आसावरी वर्ग में रखा गया है। स्वर की दृष्टि से इसे भैरवी थाट में भी रखा जा सकता है किन्तु स्वर की अपेक्षा चलन अधिक महत्वपूर्ण होने के कारण इसे आसावरी थाट में रखा गया है।
2.इस राग में मालकोश और जौनपुरी राग का सुंदर मिश्रण है, पूर्वांग में मालकोश और उत्तरांग में जौनपुरी है। कुछ विद्वान इसमें मालकोश और भैरवी का मिश्रण मानते हैं।
3.आसावरी अंग की चलन होने के कारण धैवत पर निषाद का आभास लेते है और ध(k) म की संगति बार-बार दिखाते हैं। ध(k) म और सां म की संगति की बहुतायत है।
4.मोटे तौर से भैरवी राग में ऋषभ वर्ज्य कर देने से इस राग की उत्पत्ति हो जाती हैं।
5.उत्तरांग प्रधान होने के बावजूद इसकी चलन तीनों सप्तकों में होती है।
6.यह ख्याल अंग का राग है इसमें ठुमरी नहीं गाई जाती।
7.कुछ गुनिजन इसमें प वादी और सा संवादी मानते है।
न्यास के स्वर- म और प।
समप्रकृति राग- पूर्वांग में मालकोश और उत्तरांग में जौनपुरी व भैरवी।
•पूर्वांग में जब मालकोश अधिक बढने लगता है तो पंचम पर न्यास करते है और जब जौनपुरी की छाया बढने लगती हैं तो ग(k) म ध(k) नि(k) स्वर-समूह प्रयोग करते हैं और आरोह में पंचम प्रयोग करते हुये मध्यम पर न्यास करते है।
•चलन आसावरी प्रधान और ऋषभ वर्ज्य होने से भैरवी राग की छाया नहीं आती। सा ग(k) म प ग(k) म स्वरों से भैरवी की छाया आती है, किन्तु उसके बाद ग(k) सा के प्रयोग से भैरवी का आभास समाप्त हो जाता हैं। ग(k) सा के बाद ध(k) ध(k) सा लेने से मालकोश का भ्रम दूर हो जाता है।
•उत्तरांग में ग(k) म प ध(k) ध(k) नि सां या ग(k) म ध(k) नि(k) सां प्रयोग करते है। ग म प ध(k) ध(k) नि(k) सां से भैरवी की छाया आती है तो सां ध(k) नि(k) ध(k) म प्रयोग करते है तो मालकोश दिखाई पडने लगता है और जब मालकोश का भ्रम होने लगता है तो पंचम प्रयोग उसका भ्रम दूर करता है। आरोह में निषाद वर्ज्य करने.से आसावरी की छाया आने लगती है। अंत में सा म के प्रयोग से राग गोपिकाबसन्त स्पष्ट हो जाता है।
Gopika Basant Raag Details
गोपिका बसन्त राग के आरोह अवरोह पकड़ क्या हैं ?
आरोह- सा, ग(k) म प नि(k) ध(k) नि(k) सां।
अवरोह- सां नि(k) नि(k) ध(k) प, म ग(k) सा।
पकड़- ग(k) म प, ग(k) म ध(k) नि(k) सां, नि(k) ध(k) प म,ग(k) म ग(k) सा।
गोपिका बसन्त राग की जाति क्या है ?
जाति – षाडव- षाडव (6,6)
गोपिका बसन्त राग का गायन समय क्या है ?
गायन समय – दिन के दूसरे प्रहर (9 am to 12 pm)
गोपिका बसन्त राग में कौन से स्वर लगते हैं ?
आरोह- सा, ग(k) म प नि(k) ध(k) नि(k) सां।
अवरोह- सां नि(k) नि(k) ध(k) प, म ग(k) सा।
पकड़- ग(k) म प, ग(k) म ध(k) नि(k) सां, नि(k) ध(k) प म,ग(k) म ग(k) सा।
गोपिका बसन्त राग का थाट क्या है ?
आसावरी थाट
गोपिका बसन्त राग के वादी संवादी स्वर कौन से हैं ?
वादी -सम्वादी स्वर – म सा
गोपिका बसन्त राग का परिचय क्या है ?
गोपिका बसन्त राग आसावरी थाट जन्य माना जाता है। इसमें गंधार, धैवत और निषाद स्वर कोमल लगते है। ऋषभ वर्ज्य होने की वजह से इसकी जाति षाडव है। वादी मध्यम और संवादी षडज है। गायन समय दिन का दूसरा प्रहर है।
गोपिका बसन्त राग के वर्जित स्वर कौन से हैं ?
वर्जित स्वर – रे