Raag description parichay of raag-Rageshwari in Indian classical music in hindi is described in this post . Learn indian classical music in simple steps.
राग रागेश्वरी
द्वै गंधार वादी म, षाडव सम्पूरन जाति।
आरोहन में प वर्जित कर, गावत गुनि- जन रात्रि।।
Hindi notes of Rageshwari / राग रागेश्वरी का परिचय
Rageshwari Raag description in detail-
राग रागेश्वरी खमाज थाट से उत्पन्न माना गया है। इसमें कोमल निषाद प्रयुक्त होता है। पंचम स्वर बिल्कुल वर्ज्य है और आरोह में ऋषभ वर्ज्य है। इसलिये इसकी जाति औडव- षाडव है। इसमें गंधार वादी तथा निषाद संवादी है। गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है।
आरोह– सा ग, म ध, नि सां।
अवरोह–सां नि ध, म ग, रे सा।
पकड़– ध नि सा ग, म ग रे सा।
वर्ज्य – स्वर – आरोह में ऋषभ वर्ज्य और पंचम स्वर बिल्कुल वर्ज्य है
थाट – खमाज थाट
वादी -सम्वादी स्वर – ग – नि
जाति – औडव- षाडव
गायन समय -रात्रि का द्वितीय प्रहर
राग रागेश्वरी की विशेषता–
- रागेश्वरी का एक दूसरा प्रकार है जिसके आरोह में शुद्ध और अवरोह में कोमल निषाद प्रयोग किया जाता है, किन्तु मंद्र सप्तक में सदैव कोमल नि प्रयोग किया जाता है। कोमल निषाद की रागेश्वरी अधिक प्रचलित है।
- इसमें ध ग की संगति बडी मनोरंजक है।
- अवरोह में कभी कभी ग स्वर वक्र प्रयोग किया जाता है यथा- नि ध ग म रे सा।
न्यास के स्वर– ग, म और ध।
समप्रकृति राग–मालगुन्जी और बागेश्वरी।
विशेष स्वर संगतियाँ–
- ध नि सा ग, म ग रे सा।
- म ध नि सां, नि ध म ग।
- म ग, म ग रे सा, नि ध।
- ग म ध नि ध, म ग।
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