अड़ाना राग Adana Raag Bandish 16 Matras Allap Taan Music Notes In Hindi

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अड़ाना की उत्पत्ति आसावरी थाट से मानी गई है। इसमें ग ध कोमल और दोनों निषाद प्रयोग किये जाते है। इसका वादी स्वर तार सा और संवादी पंचम है रात्रि के तीसरे प्रहर में इसे गाया- बजाया जाता है। आरोह में गंधार वर्ज्य है और अवरोह में वक्र है इसलिये इसकी जाति षाडव- सम्पूर्ण मानी जाती हैं।

कोमल ग- ध दोउ निषाद, मानत स- प सम्वाद।

तृतीय रात्रि गावत गुनिजन,चढत न ग लगात।।

Adana Raag

How To Read Sargam Notes

  • “(k)” is used for komal swars.eg – ( रे(k) , (k) , (k) , नि(k) ) (Note – You can write ( रे , , , नि ) in this manner in exams . )
  • म(t) here “(t)” is used for showing teevra swar म(t) . (Note – You can write ( म॑ ) in this manner in exams . )
  • “-” is used for stretching the swars according to the song.
  • Swars written “रेग” in this manner means they are playing fast or two swars on one beat.
  • (रे)सा here रे” is kan swar or sparsh swar and “सा” is mool swar. (Note – You can write ( रेसा ) in this manner in exams . )
  • [ नि – प ] here this braket [ ] is used for showing Meend from “नि” swar to प” . (Note – You can write ( नि प ) making arc under the swars in this manner in exams . )
  • { निसां रेंसां नि } here this braket {} is used for showing Khatka in which swars are playing fast .

Adana Raag Parichay

आरोह- सा रे म प, ध(k) नि सां।

अवरोह- सां ध(k) नि(k) प, म प ग(k) म रे सा।

पकड़-  म प ध(k) नि सां, ध(k) नि(k) प, म प ग(k) म रे सा।

वर्ज्य – स्वर – आरोह में गंधार वर्ज्य है

थाट – आसावरी थाट

वर्जित  स्वर – ग

वादी -सम्वादी स्वर – प – सां

जाति – षाडव- सम्पूर्ण(6,7)

गायन समय -रात्रि के तीसरे प्रहर(12 am to 3 am )

विशेषता-

  • प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में इसका उल्लेख नहीं हुआ है। सर्वप्रथम मध्यकाल के लोचन कवि कृत ‘ राग तरंगिणी’ में इसका वर्णन मिलता है। इससे यह सिद्ध होता है कि इस राग का जन्म और विकास मध्यकाल में हुआ।
  • कुछ समय पहले कुछ विद्वान अड़ाना में शुद्ध धैवत का प्रयोग करते थे, किन्तु आजकल इस मत के अनुयायी लगभग नहीं के बराबर है, प्रचार में कोमल धैवत वाला अड़ाना राग है।
  • अड़ाना के अवरोह को देखने से यह मालूम पड़ता है कि आरोह में गंधार स्वर बिल्कुल वर्ज्य है,किन्तु ऐसा नहीं है। कभी कभी आरोह में भी कोमल गंधार अल्प लगता है जैसे नि (k) सा ग(k) म। किन्तु अवरोह में कोमल ग का वक्र प्रयोग होता है- जैसे- ग(k) म रे सा। अड़ाना के आरोह में ग उसी समय वर्जित किया जाता है जबकि आरोह सारंग अंग से लिया गया है । सारंग अंग का आरोह अधिक प्रचार में है।
  • कानडे के इस प्रकार को कुछ विद्वान इसे मेघ और कानडा का मिश्रित रूप मानते हैं और कुछ सुघराई कानड़ा और सारंग का।
  • शुद्ध नि आरोह में और कोमल नि अवरोह में प्रयोग किया जाता है, कभी कभी नि का प्रयोग आरोह में भी होता है जैसे- म प नि ध(k) नि(k) रे सां।
  • इसकी चलन मध्य तथा तार सप्तकों में अधिक होती है इसलिये इसकी अधिकतर चीजे मध्य सप्तक के मध्यम, पंचम, निषाद तथा तार ऋषभ सें प्रारंभ होती है।
  • यह राग उत्तरांग तथा चंचल प्रकृति का राग होने के कारण इसमें विलम्बित ख्याल कम गाये जाते है।
  • कान्हडा के 18 प्रकारों में यह भी एक प्रकार है जिसका प्रचार अन्य की अपेक्षा अधिक है।

न्यास के स्वर- प और सां।

समप्रकृति राग- दरबारी कान्हडा और नायकी कान्हडा।

दरबारी-म प नि(k) ध –  ध नि(k) [सां, ध(k)]- [नि(k) प],

अड़ाना- म प ध(k)- नि(k) सां, रें सां नि(k) सां, ध(k) नि(k)प,

विशेष स्वर संगतियाँ-

सां नि(k) ध(k) नि(k) सां,

मपनिसां मं  गं(k) मं रें सां,

सारेमप नि(k) ध(k) नि(k) ध(k)  नि (k)प,

सा रे म प नि(k) ध(k) नि सां, रें सां।

स्वरों का अध्ययन-

सा- सामान्य

रे- अलंघन बहुत्व

ग (k)- आरोह में लंघन अल्पत्व किन्तु कभी-कभी विशिष्ट स्थान पर अलंघन बहुत्व और अवरोह में अलंघन बहुत्व,

म- अलंघन बहुत्व

प- प दोनों प्रकार का बहुत्व

ध(k)- अलंघन बहुत्व (अवरोह में कभी कभी लंघन)

नि(k)- अलंघन बहुत्व

अड़ाना राग प्रश्न उत्तर –

अड़ाना राग के आरोह अवरोह पकड़ क्या हैं ?

आरोह- सा रे म प, ध(k) नि सां।
अवरोह- सां ध(k) नि(k) प, म प ग(k) म रे सा।
पकड़-  म प ध(k) नि सां, ध(k) नि(k) प, म प ग(k) म रे सा।

अड़ाना राग की जाति क्या है ?

जाति – षाडव- सम्पूर्ण(5,6)

अड़ाना राग का गायन समय क्या है ?

गायन समय -रात्रि के तीसरे प्रहर(12 am to 3 am )

अड़ाना राग में कौन से स्वर लगते हैं ?

आरोह- सा रे म प, ध(k) नि सां।
अवरोह- सां ध(k) नि(k) प, म प ग(k) म रे सा।
पकड़-  म प ध(k) नि सां, ध(k) नि(k) प, म प ग(k) म रे सा।

अड़ाना राग का थाट क्या है ?

थाट – आसावरी थाट

अड़ाना राग के वादी संवादी स्वर कौन से हैं ?

वादी -सम्वादी स्वर – प – सां

अड़ाना राग का परिचय क्या है ?

अड़ाना की उत्पत्ति आसावरी थाट से मानी गई है। इसमें ग ध कोमल और दोनों निषाद प्रयोग किये जाते है। इसका वादी स्वर तार सा और संवादी पंचम है रात्रि के तीसरे प्रहर में इसे गाया- बजाया जाता है। आरोह में गंधार वर्ज्य है और अवरोह में वक्र है इसलिये इसकी जाति षाडव- सम्पूर्ण मानी जाती हैं।

अड़ाना राग के वर्जित  स्वर कौन से हैं ?

वर्जित  स्वर – ग

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