Defination of raag , raag ki jaatiyan and mukhyang in indian classical music in hindi is described in this post of saraswati sangeet sadhana.
Raag / राग
कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वरों की वह सुन्दर रचना जो कानो को अच्छी लगे राग कहलती है ।
जाति
इससे राग में प्रयोग किए जाने वाले स्वरों की संख्या का बोध होता है ।
राग की जातियाँ –
किसी भी राग में कम से कम पाँच और अधिक से अधिक सात स्वर प्रयोग किए जा सकते हैं । अत: संख्या की दृष्टि से राग के मुख्य तीन प्रकार होते हैं –
- पाँच स्वर वाले राग
- छ: स्वर वाले राग
- सात स्वर वाले राग
अर्थात पाँच स्वर वाले रागों की जाति औडव , छ: स्वर वाले रागों की जाति षाडव और सात स्वर वाले रागों की जाति सम्पूर्ण कहलती है ।
राग में आरोह और आवरोह दोनों का होना आवश्यक है । आदिकांश रागों में देखा जाता है की आरोह – अवरोह में लगने वाले स्वरों की संख्या समान नहीं होती । जैसे खमाज के आरोह में 6 और अवरोह में 7 स्वर प्रयोग किए जाते हैं।
इस प्रकार राग की तीन जतियों से कुल मिलाकर 3x 3 = 9 जातियाँ हो सकती हैं ।
जिनके नाम इस प्रकार हैं –
- औडव – औडव – आरोह-अवरोह दोनों में 5-5 स्वर ।
- औडव – षाडव – आरोह में 5 और अवरोह में 6 स्वर ।
- औडव – सम्पूर्ण – आरोह में 5 और अवरोह में 7 स्वर ।
- षाडव- षाडव – आरोह – अवरोह में 6-6 स्वर ।
- षाडव – औडव – आरोह में 6 और अवरोह में 5 स्वर ।
- षाडव- सम्पूर्ण – आरोह में 6 स्वर और अवरोह में 7 स्वर ।
- सम्पूर्ण – सम्पूर्ण – आरोह – अवरोह दोनों में 7 – 7 स्वर ।
- सम्पूर्ण – षाडव – आरोह में 7 और आवरोह में 6 स्वर ।
- सम्पूर्ण – औडव – आरोह में 7 और आवरोह में 5 स्वर ।
Mukhyang in Indian classical music / मुखयांग की परिभाषा
राग का महेत्वपूर्ण अंग मुखयांग कहलता है जैसे भूपली राग का मुखयांग उसकी बंदिश होगी ।
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