Vocal Senior Diploma 6th Year Syllabus In Hindi
गायन
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-150
शस्त्र – 50 ,
क्रियात्मक – 100
शास्त्र
प्रथम प्रश्न पत्र
- प्रथम से षस्टम वर्ष तक के सभी रागों का विस्तृत, तुलनात्मक और सूक्ष्म परिचय । उनके आलाप-तान आदि स्वरलिपि में लिखने का पूर्ण ज्ञान । समप्रकृतिक रागों में समता-विभिन्नता का ज्ञान होना ।
- विभिन्न रागों में अल्पत्व-बहुत्व और अन्य रागों की छाया आदि दिखाते हुए आलाप-तान स्वरलिपि में लिखना ।
- कठिन लिखित स्वर समूहों द्वारा राग पहचानना ।
- दिए हुए रागों में सरगम बनाना । दी हुई कविता को राग में ताल-बद्ध करने का ज्ञान ।
- गीतों की स्वरलिपि लिखना, धमार और ध्रुपद को दुगुन, तिगुन, चौगुन, और आड़ आदि लयकारियों में लिखना ।
- ताल के बोल को विभिन्न लयकारियों में लिखना ।
- लेक – जीवन में संगीत की आवश्यकता, महफ़िल की गायकी, शास्त्रीय संगीत का जनता पर प्रभाव, रेडियो और सिनेमा-संगीत, पृष्ठ संगीत , हिन्दुस्तानी संगीत और वृंदवादन, हिन्दुस्तानी संगीत की विशेषताये, स्वर का लगाव, संगीत और स्वरलिपि आदि ।
- हस्सू-हद्दू खां, फैयाज़ खां, अब्दुल करीम खां, बड़े गुलाम अली और ओंकारनाथ ठाकुर का जीवन परिचय और कार्य ।
द्वितीय प्रश्न पत्र
- मध्य कालीन तथा आधुनिक संगीतज्ञों के स्वर स्थानों की आन्दोलन-संख्याओं की सहायता तथा तार की लम्बाई की सहायता से तुलना , पाश्चात्य स्वर-सप्तक की रचना , सरल गुणान्तर और शुद्ध स्वर संवाद के नियम, पाश्चात्य स्वरों की आन्दोलन-संख्या । हिन्दुस्तानी स्वरों में स्वर संवाद, कर्नाटकी ताल पद्धति और हिन्दुस्तानी ताल पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन । संगीत का संक्षिप्त क्रमिक इतिहास, ग्राम, मूर्छना (अर्थ में क्रमिक परिवर्तन), मूर्छना और आधुनिक थाट, कलावंत, पंडित, नायक, वाग्गेयकार, बानी (खंडार, डागुर, नौहार, गोबरहार), गीत , गीत के प्रकार, गमक के प्रकार, हिन्दुस्तानी वाद्यों के विविध प्रकार. (तत, अवनद्ध, घन, सुषरी) आदि ।
- निम्नलिखित विषयों का ज्ञान – तानपुरे से उत्पन्न होने वाले सहायक नाद, पाश्चात्य स्वर-सप्तक का सामान स्वरान्तर में परिवर्तित होने का कारन व विवरण, मेजर, माईनर और सेमिटोन, पाश्चात्य आधुनिक स्वरों के गुण-दोष, हारमोनियम पर एक आलोचनात्मक दृष्टि, तानपुरे से निकलने वाले स्वरों के साथ हमारे आधुनिक स्वर-स्थानों का मिलान । प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक राग-वर्गीकरण, उनका महत्त्व, और उनके विभिन्न प्रकारों को पारस्परिक तुलना । संगीत-कला और शास्त्र का पारस्परिक सम्बन्ध । भरत की श्रुतियाँ सामान या असमान -इस पर विभिन्न विद्वानों के विचार और तर्क । सारणा चतुष्टई का अध्ययन, उत्तर भारतीय संगीत को ‘संगीत पारिजात’ की देन । हिन्दुस्तानी और कर्नाटकी संगीत-पद्धतियों की तुलना, उनके स्वर, ताल और रागों का मिलन करते हुए पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धति का साधारण ज्ञान, संगीत के घरानों का संक्षिप्त ज्ञान, रत्नाकर के दस विधि राग वर्गीकरण-भाषा, विभाषा इत्यादि ।
- भातखंडे और विष्णु दिगंबर स्वर-लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन और उनकी त्रुटीयां और उन्नति के सुझाव ।
- लेख – भावी संगीत के समुचित निर्माण के लिए सुझाव, हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति के मुख्या सिद्धांत । प्राचीन और आधुनिक प्रसिद्ध संगीतज्ञों का परिचय तथा उनकी शैली, संगीत का मानव जीवन पर प्रभाव, संगीत और चित्त , स्कूलों द्वारा संगीत शिक्षा की त्रुटियों और उन्नति के सुझाव, संगीत और स्वर साधन ।
- पिछले सभी वर्षों के शास्त्र सम्बंधित विषयों का सूक्ष्म तथा विस्तृत अध्ययन ।
क्रियात्मक
- राग पहचान में निपुणता और अल्पत्व-बहुत्व, तिरोभाव-आविर्भाव और समता-विभिन्नता दिखाने के लिए पूर्व वर्षों के सभी रागों का अध्ययन ।
- गायन की तैयारी, आलाप-तान में सफाई , प्रदर्शन में निपुणता ।
- ठप्पा, ठुमरी, तिरवट और चतुरंग का परिचय, इनमे से किन्हीं दो गीतों की जानकारी आवश्यक ।
- राग – रामकली, मियाँ मल्हार, परज, बसंती, राग श्री, पूरिया धनाश्री, ललित, शुद्ध कल्याण, देशी और मालगुन्जी रागों में एक-एक बड़ा-ख्याल और छोटा ख्याल पूर्ण तैयारी के साथ ।
- किन्हीं दो रागों में एक-एक धमार, एक-एक ध्रुपद और एक-एक तराना
- किसी एक राग में चतुरंग (प्रथम वर्ष से षष्ठम वर्ष एस के रागों में से)।
- काफी, पीलू, पहाड़ी, झिंझोटी, भैरवी तथा खमाज इनमे से किन्हीं दो रागों में दो ठुमरी तथा किसी एक में टप्पा ।
- ताल – लक्ष्मी ताल, ब्रह्म ताल तथा रूद्र ताल – इनका पूर्ण परिचय तथा सभी लयकारियों में हाथ से ताली देने का ज्ञान ।
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