Vocal Senior Diploma 4th Year Syllabus In Hindi
गायन
परीक्षा के अंक
पूर्णाक-150
शस्त्र – 50 ,
क्रियात्मक – 100
शास्त्र
- गीत के प्रकार –टप्पा, ठुमरी, तराना, तिरवट, चतुरंग, भजन, गीत, गजल आदि का विस्तृत वर्णन, राग-रागिनी पद्धति आधुनिक आलाप-गायन की विधि, तान के विविध प्रकारों का वर्णन, विवादी स्वर का प्रयोग, निबद्ध गान के प्राचीन प्रकार (प्रबंध, वास्तु आदि) धातु, अनिबद्ध गान, अध्वदर्शक स्वर ।
- बाईस (22) श्रुतियों का स्वरों में विभाजन (आधुनिक और प्राचीन मत), खींचे हुए तार की लम्बाई का नाद के ऊँचे-निचेपन से सम्बन्ध ।
- दक्षिणी और उत्तरी हिन्दुस्तानी पद्धतियों के स्वर की तुलना, रागों का समय-चक्र निश्चित करने में अध्वदर्शक स्वर, वादी-संवादी और पूर्वांग-उत्तरांग का महत्व , छायालग और संकीर्ण राग, परमेल प्रवेशक राग, रागों का समय-चक्र, ।
- उत्तर भारतीय सप्तक से ३२ थाटों की रचना, आधुनिक थाटों के प्राचीन नाम, तिरोभाव-आविर्भाव, अल्पत्व-बहुत्व ।
- रागों का सूक्ष्म तुलनात्मक अध्ययन और राग-पहचान ।
- विष्णु दिगंबर और भातखंडे दोनों स्वर्लिपियों का तुलनात्मक अध्ययन । गीतों को दोनों पद्धति में लिखने का अभ्यास । धमार और ध्रुपद को दुगुन , तिगुन व चौगुन स्वरलिपि में लिखने का अभ्यास ।
- भरत, अहोबल, व्यंकटमखि तथा मानसिंह का जीवन-चरित्र और उनके संगीत कार्यों का विवरण ।
- पाठ्यक्रम के सभी तालों की दुगुन, तिगुन, चौगुन प्रारंभ करने का स्थान गणित द्वारा निकालने की विधि । दुगुन, तिगुन तथा चौगुन के अतिरिक्त अन्य विभिन्न लयकारियों को ताल-लिपि में लिखने का अभ्यास ।
क्रियात्मक
- स्वर ज्ञान का विशेष अभ्यास । कठिन स्वर-समूहों को गाने तथा पहचाने का ज्ञान ।
- तानपुरा और तबला मिलाने का विशेष ज्ञान ।
- अंकों या स्वरों के सहारे ताली देकर विभिन्न लयों का प्रदर्शन –दुगुन (एक मात्रा में दो मात्रा), तिगुन (1 में 3 ) चौगुन (1 में 4 ), आड़ (2 में 3 ) और आड़ की उलटी (3 में 2 मात्रा बोलना), पौंगुण (4 में 3 ) तथा सवागुन (4 में 5 ) मात्राओं का प्रदर्शन ।
- कठिन और सुन्दर आलाप और तानों का अभ्यास ।
- राग – देशकार, शंकरा, जयजयवंती, कामोद, मारवा, मुल्तानी, सोहनी, बहार, पूर्वी. इन रागों में 1 – 1 विलंबित और द्रुत ख्याल तथा आलाप, तान, बोलतान सहित ।
- उपेरयुक्त रागों में से किन्हीं दो में 1-1 ध्रुपद तथा किन्हीं दो में 1-1 धमार केवल ठाह, दुगुन , तिगुन, और चौगुन सहित तथा एक तराना गाने की क्षमता ।
- ख्याल की गायकी में विशेष प्रवीणता ।
- जत और आड़ा चारताल को पूर्ण रूप से बोलने का अभ्यास। टप्पा और ठुमरी के ठेकों का साधारण ज्ञान।
- स्वर-समूहों द्वारा राग पहचान करना ।
- गायन में रागों में समता-विभिन्नता दिखाना.