Vocal Praveen 7th Year Syllabus In Hindi Prayag Sangeet Samiti

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Vocal Praveen 7th Year Syllabus In Hindi

प्रयाग संगीत समिति सप्तम वर्ष सिलैबस –

  • क्रियात्मक परीक्षा 200 अंको की होगी जिसमें 100 अंक प्रश्नमूलक प्रयोगात्मक परीक्षा के लिए और 100 अंक मंच प्रदर्शन के लिए होंगे।
  • शास्त्र के दो प्रश्नपत्र 50-50 अंक के होंगे। उत्तीर्ण होने के लिए 36प्रतिशत अंक आवश्यक है।
  • प्रथम से षष्ठम वर्ष तक का सम्पूर्ण पाठ्यक्रम भी इस परीक्षा में सम्मिलित है।

क्रियात्मक

  • निम्नलिखित 15 रागों का विस्तृत अध्ययन-

शुद्ध सारंग, मारु बिहाग, नन्द, हंसध्वनि, मलुहा केदार, जोग, मधुमाद सारंग, नारायणी, अहीर भैरव, पूरिया कल्याण, आभोगी कान्हडा, सूर मल्हार, चंद्रकौस, गुर्जरी तोड़ी और मधुवन्ती।

  • . गायन के परिक्षार्थियों के लिये उपर्युक्त सभी रागों में विलम्बित और द्रुत ख्याल को विस्तृत रूप से गाने की पूर्ण तैयारी। इनमें से कुछ रागों में ध्रुपद, धमार, तराना, चतुरंग आदि कुशलतापूर्वक गाने का अभ्यास। परिक्षार्थियों की पसंद के अनुसार किन्हीं भी रागों में ठुमरी, भजन अथवा भावगीत सुन्दर ढंग से गाने की तैयारी।

.तन्त्र वाद्य तथा सुषिर वाद्य के परिक्षार्थियों के लिये उपर्युक्त सभी रागों में सुन्दर आलाप – जोड़, विलम्बित( ख्याल या मसीतखानी)तथा द्रुत( छोटा ख्याल या रज़ाखानी) गतों को विस्तृत रूप से बजाने की पूर्ण तैयारी। तीनताल के अतिरिक्त  कुछ अन्य कठिन तालों में भी इनमें से कुछ रागों में बंदिशें बजाने का पूर्ण अभ्यास। परिक्षार्थियों की पसंद के अनुसार किन्हीं भी रागों में धुन अथवा ठुमरी अंग का बाज सुन्दरतापूर्वक बजाने का अभ्यास ।

(3) निम्नलिखित 15 रागों का पूर्ण परिचय, आलाप द्वारा इनके स्वरूप का स्पष्ट रूप से प्रदर्शन तथा इनमें से कोई भी एक एक बंदिश गाने अथवा बजाने का अभ्यास। इन बंदिशों को विस्तार रूप से गाने- बजाने की आवश्यकता नहीं है।

बंगाल भैरव, रेवा, हंसकिंकिणि, जलधर केदार, जैत( मारवा थाट), धनाश्री( काफी थाट), भीम, शहाना, भूपाल- तोड़ी, आनंद- भैरव, सरपरदा, गारा, धानी, जयंत मल्हार, गोपिका बसंत।

(4)प्रथम तथा षष्ठम वर्षों तक के और इस वर्ष के सभी रागों को गाये तथा बजाये जाने पर पहचानने में निपुणता।

(5) प्रचलित तालों को ताली देकर विभिन्न लयकारियों में बोलने का पूर्ण अभ्यास तथा उनके ठेकों को तबले पर  बजाने का साधारण अभ्यास।

(6) निम्न तालों का पूर्ण परिचय तथा इन्हें ताली देकर लयकारियों में बोलने का अभ्यास- पश्तो, फरोदस्त, खेमटा, गणेश।

मंच प्रदर्शन

  • मंच प्रदर्शन में परिक्षार्थियों को सर्वप्रथम उपर्युक्त विस्तृत अध्ययन के 15 रागों में से अपनी इच्छानुसार किसी भी एक राग में विलम्बित और द्रुत ख्याल अथवा गत लगभग 30 मिनट तक अथवा परीक्षक द्वारा निर्धारित समय में पूर्ण गायकी के साथ गाना या बजाना होगा, तत्पश्चात थोड़ी देर किसी राग की ठुमरी अथवा भजन या भाव गीत भी सुनाना होगा या ठुमरी अंग की कोई चीज या धुन को बजाना होगा।
प्रथम प्रश्न पत्र(शुद्ध सिध्दांत)

गायन, तन्त्र तथा सुषिर वाद्य के परीक्षार्थियों के लिए –

  • पिछले सभी वर्षों के पाठ्यक्रमों (गायन और तन्त्रवाद्य) में दिये गये सभी शुद्ध शास्त्र संबंधी विषयों तथा पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत और आलोचनात्मक अध्ययन।
  • संगीत के सिद्धांतों का वैज्ञानिक और व्यवाहरिक विश्लेषण।
  • संगीत की उत्पत्ति तथा इसके संबंध में आलोचनात्मक विचार।
  • श्रुति- समस्या, श्रुति स्वर विभाजन एवं सारणां चतुष्टयी का विस्तृत एवं आलोचनात्मक अध्ययन।
  • ग्राम, मुर्छना, आधुनिक संगीत में मुर्छनाओ का प्रयोग, जाति गायन और इसका राग गायन में विकसित होना इत्यादि पर यथेष्ट अध्ययन।
  • भारतीय संगीत के इतिहास का काल विभाजन, इसके संबंध में विभिन्न मतों के विषय में पूर्ण जानकारी।
  • प्राचीन काल में भारतीय संगीत के इतिहास तथा इसके स्वरूप पर पूर्ण रूप से विचार, वैदिक संगीत और उसके विचार, पौराणिक काल का संगीत, भरत काल का संगीत, मौर्य काल, कनिष्क काल, गुप्त काल का संगीत तथा प्रबंध गायन का काल।
  • हिन्दुस्तानी संगीत के विकास में भरत नारद, मतंग, जयदेव और शारंगदेव के योगदान का विस्तृत अध्ययन।
  • चौदहवीं शताब्दी के पूर्व के निम्न संगीत ग्रन्थों का अध्ययन और उनके निष्कर्ष तथा उनमें वर्णित श्रुति, स्वर, शुद्ध तथा विकृत स्वर,शुद्ध मेल, राग वर्गीकरण, राग स्वरूप, गायन प्रणाली आदि विषयों का विस्तृत, आलोचनात्मक, तुलनात्मक अध्ययन- (1) भरत कृत नाट्य शास्त्र,(2) मतंग कृत वृहद्देशी,(3) नारदीय शिक्षा, (4) संगीत मकरंद, (5) जयदेव कृत गीत गोविंद (6) शारंगदेव कृत संगीत रत्नाकर।
  • कर्नाटक संगीत पद्धति के स्वर, राग, ताल और गायकी के संबंध में पूर्ण जानकारी तथा उनकी विशेताए और हिंदुस्तानी संगीत पद्धति के स्वर, राग, ताल गायकी से उनकी तुलना।
  • निम्नलिखित विषयों का विस्तृत अध्ययन- स्वर- गुणांतर, स्वर सम्वाद, स्वयम्भू स्वरों का अध्ययन, हार्मोनी, मेलाडी, पाश्चात्य स्वर सप्तक का विकास, षडज- पंचम तथा षडज – मध्यम भाव से सप्तक की रचना, भारतीय स्वर सप्तक का विकास, कला और शास्त्र, संगीत कला और विज्ञान, संगीत का कला पक्ष और भाव पक्ष, गमक और इसके विभिन्न प्रकार।
  • ध्वनि शास्त्र से संबंधित निम्नांकित विषयों का विस्तृत अध्ययन- ध्वनि विज्ञान, ध्वनि की उत्पत्ति,आंदोलन, ध्वनि का वहन, ध्वनि वेग ( Velocity of sound), अतिस्वर ( Overtones), ध्वनि की थर थराहट या डोल (Beats), तारता, तीव्रता, ध्वनि की जाति अथवा गुण, ध्वनि का परावर्तन( Reflection of sound), ध्वनि का आवर्तन ( Refraction of sound), ध्वनि विवर्तन ( Diffraction of sound), अनुनाद ( Resonance), प्रति ध्वनि ( Echo), इष्ट स्वर (Consonance), अनिष्ट स्वर (Dissonance)।
  • प्रथम से षष्टम वर्षों तक के पाठ्यक्रम में दिये गये वाद्य संबंधित सभी पारिभाषिक शब्दों का विस्तृत जैसे- मींड, सूत, घसीट, गमक, कण, खटका, कृन्तन, जमजमा, लाग- डाट, लड़ी-गुत्थी, लड़गुथाव, छूट, पूकार, तार- परन, छन्द, फिकरा आदि।
  • संगीत विषयों पर लेख लिखने की विशेष क्षमता।
 द्वितीय प्रश्न-पत्र

  ( गायन एवं वादन के अलग अलग प्रश्न-पत्र होंगे)

  • प्रथम से षष्टम वर्षों तक के क्रियात्मक संगीत संबंधित शास्त्र का विस्तृत एवं आलोचनात्मक अध्ययन।
  • पाठ्यक्रम के सभी रागों का विस्तृत, आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन। रागों के न्यास स्वर, अल्पत्व- बहुत्व के स्वर, विवादी स्वर और उनका प्रयोग, तिरोभाव- आविर्भाव का प्रदर्शन, समप्रकृति रागों की तुलना, रागों में अन्य रागों की छाया आदि विषयों के संबंध में विस्तृत ज्ञान। विगत वर्षों के सभी रागों का भी पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है।
  • भारतीय वाद्यो का वर्गीकरण, प्राचीन, मध्यकालीन तथा आधुनिक तन्त्रवाद्यो का परिचय। वाद्यो द्वारा उत्पन्न होने वाले स्वयं भू- स्वरों का यथेष्ठ ज्ञान।
  • गायन तथा तंत्रवाद्यों की गायन अथवा वादन शैलियो के विभिन्न प्रकारों का विस्तृत, आलोचनात्मक और तुलनात्मक अध्ययन।
  • पाश्चात्य स्वर लिपि पद्धतियां जैसे सोलफा पद्धति, चीव्ह पद्धति, न्यूम्स पद्धति, तथा स्टाफ नोटेशन पद्धति का विशेष, आलोचनात्मक तथा तुलनात्मक ज्ञान। कार्ड्स (Chords) एवं उनका प्रयोग, पाश्चात्य स्वरलिपि पद्धिति के गुण एवं दोष।
  • गायन अथवा तन्त्र वादन के विभिन्न घरानों का जन्म, इतिहास, उनका विकास तथा उनकी वंश परम्पराओं का पूर्ण ज्ञान। उनकी गायन अथवा वादन शैलियों का परिचय, उनकी विशेषताओं का विस्तृत, आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन।
  • देश में प्रचलित स्वरलिपि पद्धतियों का विस्तृत, आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन। भारतीय संगीत के भावी विकास संबंधित सुझाव तथा इस दृष्टिकोण से लिपि पद्धति का समीक्षात्मक अध्ययन।
  • (क) विभिन्न प्रकार के गीतों तथा उनकी गायकी को विभिन्न लयकारियों में लिखने का पूर्ण ज्ञान।

(ख) तन्त्र वादन में जोड़ आलाप, गत, तान तोड़े, झाला आदि को विभिन्न लयकारियों में लिपिबद्ध करने का पूर्ण ज्ञान।

(9) बीसवीं शताब्दी के सुप्रसिद्ध गायक अथवा तन्त्र वादकों की जीवनियाँ, संगीत में उनका योगदान तथा गायन अथवा वादन शैलियों की विशेषताओं का विशेष अध्ययन।

(10) तानसेन और उनके वंशज तथा सेनी घराने की शिष्यपरंपरा की पूर्ण जानकारी। इस घराने के गायको अथवा तन्त्र वादको की गायन अथवा वादन शैलियों का विस्तृत अध्ययन।

(11) पिछले सभी पाठ्यक्रमों में निर्धारित सभी तालों का पूर्ण ज्ञान तथा उन्हें विभिन्न प्रकार की कठिन लयकारियों में लिपिबद्ध करने का पूर्ण ज्ञान।

(12) क्रियात्मक संगीत संबंधी विषयों पर लेख लिखने की पूर्ण क्षमता।

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