Nana Panse Biograph

नाना पानसे जीवन परिचय Nana Panse Biography In Hindi

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  • संगीत-जगत में नाना पानसे का नाम बडी आदर और श्रद्धा से लिया जाता है।
  • पखावज-वादन में उन्हीं के नाम से एक घराना चल पड़ा है। जिससे उनकीविद्वता, साधना और मौलिकता का परिचय मिलता है।
  • उनके जैसा लयकार, मधुर वादक और ताल-गणित में निपुण उस समय कोई दूसरा पखावज-वादक मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में नही था।
  • जिस प्रकार उत्तर भारत में कुदऊ सिंह को पखावज कला में लोहा माना जाता था उसी प्रकार नाना पानसे की मान्यता मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कुछ प्रांतों में थी ।
  • अध्यापक – बाबू जोध सिंह

Nana Panse Biography In Hindi



प्रारंभिक जीवन-

  • नाना पानसे को पखावज की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से मिली। बचपन से ही वे मन्दिरों में भजन-कीर्तन की सुन्दर संगति किया करते थे।
  • सौभाग्य से एक बार उन्हें अपने पिता के साथ कीर्तन-भजन की संगति के लिये काशी जाना पड़ा।
  • वहां वे बाबू जोध सिंह से मिलने उनके घर गये। उस समय बाबू जोध सिंह साधना रत थे।
  • उनका पखावज सुनकर वे आत्म विभोर हो गये और उनसे सीखने के लिये उनके चरण पकड़ लिये।
  • एक योग्य शिष्य पाकर बाबू जोध सिंह ने बारह वर्षों तक उनकी विधिवत शिक्षा दी और नाना पानसे ने बड़ी आदर-श्रद्धा के साथ संगीत विद्या ग्रहण की।

आजीविका –

  • नाना पानसे काशी से इन्दौर चले गये। इन्दौर नरेश ने आपको अपने दरबार में नियुक्त कर लिया।
  • वे आपके पखावज-वादन, विद्वता और सरल स्वभाव से बडें प्रभावित थे और आपको हृदय से चाहते थे |
  • एक बार तत्कालीन ग्वालियर नरेश जियाजी राव इन्दौर पधारे। उन्होंने जब नाना पानसे का वादन सुना तो बड़े प्रभावित हुये और उनको अधिक वेतन पर ग्वालियर दरबार में नियुक्त करने का प्रस्ताव किया।
  • इन्दौर नरेश एक ओर नाना. पानसे को छोड़ना नही चाहते थे तो दूसरी ओर अपने मित्र को नाराज नहीं करना चाहते थे, इसलिये इसके निर्णय का भार इन्दौर नरेश ने नाना पानसे पर छोड़ दिया।
  • उन्होंने इन्दौर छोड़ने में अपनी असमर्थता प्रकट की और जीवन भर वहीं रहे।
  • नाना पानसे ने इन्दौर में रहकर अपनी कला को निखारा।
  • संगीत के आधुनिक और प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन किया और गणित की दृष्टि से अपनी विद्या को सजाया-सवारा।
  • अनेक तालों के नये ठेके बनाये और परन की नई-नई रचनायें कीं। वे स्वभाव के बड़े सरल, विनम्र और मृदुभाषी थें।
  • अपनी विद्या और साधना का उन्हें तनिक भी अभिमान नही था। प्रत्येक कलाकार की, चाहे छोटा हो या बडा वे प्रशंसा किया करते थे और कभी किसी का अपमान नही करते।
  • तत्कालीन संगीतज्ञों मे आपका परम स्थान था। वे विद्या दान में बड़े उदार थे, इसलिये उन्होंने कई के ख्याति प्राप्त कलाकारों का निर्माण किया जैसे-
  • पं० सना राम बुआ आगले
  • बलवन्त राव पानसे
  • शंकर भैया पानसे
  • पं० शंकर राव अलकुटकर
  • वे पखावज के साथ-साथ तबला तथा नृत्य में भी पारंगत थे। युवा पुत्र निधन से वे बड़े दुखी रहने लगे और उन्नीसवी शताब्दी के उत्तरार्ध में संगीत जगत की सेवा करते-करते स्वर्ग सिधार गये।
  • मौत की तिथि – उन्नीसवी शताब्दी

नाना पानसे के शिक्षक कौन थे ?

नाना पानसे के शिक्षक बाबू जोध सिंह थे .

नाना पानसे की मृत्यु किस शताब्दी में हुई थी ?

नाना पानसे की मृत्यु उन्नीसवी शताब्दी में हुई थी

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