Kathak Mudra in Hindi Notes Names Types & uses are described in this post . Kathak shastra notes available on saraswati sangeet sadhana
Kathak mudra in Hindi
कथक मुद्रा :-
मुद्रा शब्द कई अर्थो में प्रयोग किया जाता हैं। साधारण व्यवहार में मुद्रा से सिक्का समझा जाता है। वेद पाठ में मुद्रा का अर्थ हाथों के द्वारा संकेत समझा जाता है।
नृत्य में भावों को प्रकट करने के लिए शरीर की एक विशिष्ट स्थिति को मुद्रा कहा गया है। नृत्य में मुद्रा का बडा महत्व है। इसे नृत्य की भाषा कहा गया है।
विभिन्न प्रकार के हाथों के संचालन से मुद्रा की रचना होती है। प्राचीन शास्त्रों में मुद्रा को हस्त या हस्ताभिनय कहा गया है।
हाथ संचालन की दृष्टि से मुद्रा दो प्रकार की होती हैं
- संयुक्त मुद्रा (2) असंयुक्त मुद्रा
1 संयुक्त मुद्रा –
दोनों हाथों के संयोग से जो स्थिति बनती हैं उसे संयुक्त मुद्रा कहते है, जैसे – शंख, कमल, हंस, कपोत आदि।
2.असंयुक्त मुद्रा –
एक हाथ से जो स्थिति बनती हैं उसे असंयुक्त मुद्रा कहते है, जैसे – पताका, अर्धचन्द्र आदि।
- हस्त मुद्राऐं 24 मानी गई है। इसके प्रमाण में पं० शारंगदेव द्वारा लिखित संगीत रत्नाकर का निम्न उदाहरण प्रस्तुत है –
हस्तपताको मुद्राख्या कटको मुष्टिरित्यपि।
कर्तरीमुख संज्ञश्च शुकतुण्ड कपित्थकः।।
हंसपक्षश्च शिखरों हन्सास्य पुनरन्जति ।
अर्धचन्द्रश्च मुकरो भ्रमरः सूचिकामुख:।।
पल्लव रित्रपताकश्च मृगशीर्ष ह्रदयस्तथा।
पुनः सर्पशिरः संज्ञो वर्धमानक इत्यपि।।
अराल उणनाभश्च मुकुल कटकामुखः ।
चतुर्विश तिरित्यैव कर शास्त्राज्ञ सम्मताः।।
अर्थात हस्तपताका, मुद्राक्ष, कटक, मुष्टि, कर्तरीमुख, शुकतण्ड, कपित्थक, हंसपक्ष, शिखर, हन्सास्य, अंजली, अर्धचंद्र, मुकुर, भ्रमर, सूचीमुख, पल्लव, त्रिपताका, मृगशीर्ष, वर्धमानक, अराल, उर्णनाभ, मुकुल और कटकामुख, ये चौबीस मुद्राऐं है। इन मुद्राओं का स्वरूप और इनके द्वारा व्यक्त भावों का स्पष्टीकरण आगे दिया जा रहा है–
Kathak Mudra Names & Uses
पताका –
झन्डा, सुर्य, राजा, महल, शीत, ध्वनि आदि।
त्रिपताका
- सुर्यास्त, शरीर, सम्बोधन, भिक्षा मांगना आदि।
हन्सपक्ष –
मित्र, पर्वत, चन्द्र, वायु, केश, पुकारना आदि।
मुद्राक्ष –
सागर,स्वर्ग, मृत्यु, ध्यान, स्मृति, सम्पूर्ण आदि।
अर्धचन्द्र –
क्यों, कहा, आकाश, ईश्वर, प्रारंभ आदि।
मुकुर –
किरण, मक्खी, चूडी, वेद आदि।
सूचीमुख –
भौहं, दुम, कूदना, संसार, महीना आदि।
हन्साश्य –
दृष्टि, उज्जवल, लाल, काला, पंक्ति आदि।
शिखर –
मार्ग, नेत्र, पैर, चलना, खोजना आदि।
ऊर्णनाभ –
चीता, घोड़ा, कमल, बर्फ आदि।
कर्त्तरीमुख –
पुरूष, गृह, पाप, ब्राह्मण, शब्द, शुद्धता आदि।
मुकुल –
वानर, भैडिया, कोमल आदि।
शुकतुण्ड –
पक्षी।
मृगशीर्ष –
हिरण।
अंजली –
अग्नि, घोड़ा, शेर, क्रोध, वर्षा, डाली आदि।
वर्धमानक –
कानों का कुण्डल, कुआँ, महावत, योगी।
पल्लव –
भैंस, प्रमाण, शर्त, धुआं,दूरी, वज्र आदि।
कपित्थक –
स्पर्श करना, जाल, संदेह,घूमना, पृष्ठ आदि।
सर्पशीर्ष –
सर्प।
कटकमुख –
बांधना, तीर से बांधना।
कटक-
कृष्ण, विष्णु, स्वर्ण, दर्पण, नारी आदि।
भ्रमर-
हाथी के कान, छाता, पर, भय आदि।
मुष्टि-
आज्ञा, मंत्री, ओषधि, वरदान, आत्मा आदि।
अराल-
वृक्ष, मूर्ख, दुष्ट।
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