Instrumental music syllabus of Sangeet Bhaskar Part-l (Sixth Year) in Hindi Pracheen kala kendra is described in this post of Saraswati sangeet sadhana .
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संगीत भास्कर ( प्रथम खण्ड
Sangeet Bhaskar Part-l (Sixth Year)
ख्याल, ध्रुपद तथा तंत्र वाद्य
(Khayal, Dhrupad, Instrumental)
पूर्णाक:४०० शास्त्र–२००,प्रथम प्रश्न पत्र–१००
द्वितीय प्रश्न पत्र–१०० ,क्रियात्मक–१२५ , मंच प्रदर्शन-७५
शास्त्र(Theory
प्रथम प्रश्न पत्र
(१)प्रथम से पंचम वर्ष तक के सभी पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान।
(२) प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक कालीन रागों का वर्गीकरण एवं महत्व और उनके विभिन्न प्रकारों की पारस्परिक तुलना।
(३) हिन्दुस्तानी और कर्नाटक गायन तथा वादन शैलियों का ज्ञान। उनके स्वर ताल सहित।
(४) प्राचीन काल, मध्य काल और आधुनिक काल में प्रचलित थाट पद्धति का आलोचनात्मक अध्ययन।
(५) राग वर्गीकरण, जाति गायन, ग्राम, राग, राग रागिनी पद्धति,मेलकर्ता, रागांग पद्धति इत्यादि।
(६) प्राचीन और आधुनिक गीत रचनाएँ और उनके प्रकार।
(७) आविर्भाव, तिरोभाव, ग्राम, मूर्छना, सारणां चतुष्टयी, श्रुति–स्वर,विभाजन,प्राचीन और आधुनिक आलाप गायन पद्धति,षड़ज–पंचम,और षड़ज–मध्यम भाव ,सहायक नाद और संगीत की उत्पत्ति व ज्ञान।
(८) विभिन्न रागों मे रस,स्थाई, संचारी भाव,आविर्भाव और तिरोभाव का स्थान।
(९) भारतीय वृन्द संगीत पद्धति के ऊपर पाश्चात्य वाद्यो का प्रभाव।
(१०) हिन्दुस्तानी संगीत पर पाश्चात्य संगीत का प्रभाव।
(११) तन्त्र वाद्य में आकर्ष प्रहार,अपकर्ष प्रहार,खटका,मुर्की, घसीट,अनुलोम, विलोम,जोड़,झाला आदि के सम्बंध में विशेष अध्ययन।
(१२) संगीत के विभिन्न घरानों का परिचय एवं संगीत के प्रचार और प्रसार के क्षेत्र में उनका विशेष योगदान।
(१३) वाद्य वर्गीकरण ,वाद्य के पार्श्व तत्व और स्वयंभूस्वरो का ज्ञान।
(१४) तानपुरे के स्वरो के साथ आधुनिक स्वर स्थान की तुलना।
(१५) आधुनिक वाद्यों की त्रुटियां और संशोधन के उपाय।
द्वितीय प्रश्न पत्र ( Second Paper)
- वाद्य के जन्म का इतिहास तथा विद्यार्थी द्वारा चयन किये गये वाद्य की वादन शैली का ज्ञान।
- संगीत की उत्पत्ति के सम्बंध में विशेष ज्ञान।
- भारतीय और पाश्चात्य स्वर लिपि पद्धतियों का ज्ञान,भारतीय संगीत में पाश्चात्य स्वर लिपि पद्धति अपनाने के लाभ और हानियां।
- भारतीय वाद्यो का इतिहास और उनका ग्रंथों के अनुसार विकास।
- गायन और वादन शैलियों का ऐतिहासिक विकास।
- भारतीय गायन एवं वादन शैली का तुलनात्मक अध्ययन।
- घरानों की गायकी की विशेषताएं,घरानों के पतन का कारण और उसके उत्थान के सम्बंध में विचार।
- प्रथम से षष्ठम वर्ष तक निर्धारित सारे रागों का विशेष अध्ययन, रागों की समानता–विभिन्नता,अल्पत्व–बहुत्व,आविर्भाव –तिरोभाव एवं न्यास स्वर के प्रयोग का विशेष ज्ञान।रागों के आलाप, ताल मे लिखने का अभ्यास। मसीतखानी और रजा़खानी गत,विभिन्न लयों मे तोडा. और झाला लिखने का अभ्यास।
- उत्तर भारतीय तालों को कर्नाटक पद्धति में लिखने का अभ्यास।
- भातखंडे और विष्णु दिगम्बर स्वरलिपि पद्धति में पाठ्यक्रम,विभिन्न गीतों के प्रकार एवं वाद्यो की गत लिखने का अभ्यास।
- प्रथम से षष्ठम वर्ष तक निर्धारित सभी तालों के ठेके विभिन्न लयकारियों में लिखने का अभ्यास।
- पाश्चात्य स्वर लेखन पद्धति का विशेष अध्ययन एवं भारतीय स्वर लिपि पर इसका प्रभाव।
- निबंध:-
- शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत।
- राग और रस।
- भाव, रस तथा लय।
- संगीत विज्ञान।
- जीवनी–पं. अहोबल,मियां शोरी तथा उस्ताद अमीर खां
क्रियात्मक( Practical)
- निम्नलिखित रागों में ( पूर्ण गायकी के साथ) बड़ा ख्याल और छोटा ख्याल जानना आवश्यक है
पाठ्यक्रम में निर्धारित राग–
देवगिरी बिलावल,यमनी बिलावल,श्याम कल्याण, गोरख कल्याण, अहीर भैरव, आभौगी कान्हडा,कोशी कान्हडा, चन्द्र कौंस,भाटिया, गुर्जरी तोड़ी,विलासखानी तोड़ी,मधुवंती और बिहागड़ा।(ध्रुपद गायन परिक्षार्थियों के लिये ठाह,दुगुन, तिगुन, चौगुन,आड़,बिआड़ और कुआड़ लयकारी के साथ ध्रुपद गायन जानना आवश्यक है)(लक्ष्मी और पंचम सवारी(पन्द्रह मात्रा) ताल में कम से कम एक रचना।)–वाद्य विभाग के परिक्षार्थियों को पूर्ण वादन शैली सहित मसीतखानी और रज़ाखानी गत जानना अनिवार्य।
- निम्नलिखित राग समूहों में मात्र छोटा ख्याल जानना आवश्यक ध्रुपद गायन परिक्षार्थियों के लिये केवल ध्रुपद गायन। वाद्य विभाग के परिक्षार्थियों के लिये केवल रज़ाखानी गत। भैरव–बहार,गूण्कली,भूपाल तोड़ी, ललित पच्चम,नन्द, आन्नद ,भैरव और बरवा
- निम्नलिखित राग समूहों के राग रुप प्रदर्शन करने की क्षमता,रागों को आलाप या जोड़ आलाप द्वारा(झाला सहित) स्वर विस्तार करना-(ख्याल,ध्रुपद, या गत की आवश्यकता नहीं है – )
शुक्ल बिलावल, नट बिलावल, खम्बावती, गंधारी ,भीम, नट,हंस ध्वनि, धना श्री, बागेश्री और कान्हडा।
- इस वर्ष के निर्धारित रागों में से किसी राग में विभिन्न लयकारियों के साथ दो ध्रुपद और दो धभार जानना आवश्यक है –
ध्रुपद गायन के परिक्षार्थियों के लिये विभिन्न लयकारियों के साथ दो धमार और दो होरी।
- किन्हीं पांच रागों में ठुमरी।
- दो तराना, एक टप्पा,चतुरंग और एक त्रिवट जानना आवश्यक है।
- पूर्ण गायकी के साथ एक भजन दो ठुमरी और एक दादरा जानना आवश्यक है।
- पाठ्यक्रम में निर्धारित समस्त रागों में समानता– विभिन्नता,अल्पत्व–बहुत्व और आविर्भाव–तिरोभाव प्रदर्शन करने की क्षमता।
- कठिन स्वर सुनकर राग निर्णय की क्षमता।
- निर्धारित तालों की विभिन्न लयकारियों को ताली खाली दिखाकर बोलने का अभ्यास।
All Pracheen kala Kendra syllabus
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