Instrumental music syllabus of Sangeet Bhaskar Final – Seventh Year in Hindi Pracheen kala kendra is described in this post of Saraswati sangeet sadhana .
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संगीत भास्कर पूर्ण
Sangeet Bhaskar Final – Seventh Year
ख्याल एवं ध्रुपद और तंत्रवाद्य
(Khayal,Dhrupad, Instrumental)
पूर्णाक:४०० शास्त्र–२००,प्रथम प्रश्न पत्र –१००
द्वितीय प्रश्न पत्र–१००, क्रियात्मक–१२५ , मंच प्रदर्शन-७५
शास्त्र (Theory)
प्रथम प्रश्न पत्र (First Paper)
- पूर्व वर्षों के पाठ्यक्रम में निर्धारित सारे पारिभाषिक शब्दों का ज्ञान।
- गायकी और नायकी के बीच भेद और गायन तथा वादन में उनके सिद्धान्त ।
- ध्वनि की द्रुत गति, कम्पन, प्रति ध्वनि, अनुरूपता, बेसुरापन,स्वर की मधुरता, कार्ड ।
- संगीत अंतराल आवृत्ति के अनुसार।
- स्वर साधना, संगीत सिखाने के तरीके ,पाइथागोरियन और डाइटोनिक और इक्वेली टैमपर्ड स्केल।
- हारमोनियम वाद्य के लाभ और हानियां।
- निम्नलिखित ग्रंथों का श्रुति,स्वर और राग वर्गीकरण विषयों पर अध्ययन – राग तरंगिनी, हृदय कौतुक और हृदय प्रकाश, संगीत पारिजात, स्वर मेल कलानिधि, राग माला, संगीत दर्पण, राग तत्व विवोध, नगमाते आसफी, संगीत का इतिहास, हिन्दुस्तानी संगीत पद्धति (चार भाग),अभिनव राग मंजरी,प्रणव भारती, लक्ष्य संगीतम, भरत का संगीत सिद्धान्त।
- थाट समस्या और श्रुति समस्या के विषय में विशेष अध्ययन।
- मार्गी संगीत के सम्बन्ध में विस्तृत ज्ञान।
- वैदिक तथा भरतकालीन संगीत का अध्ययन।
- नाद की विशेषता और विकास, हारमनी में पाश्चात्य संगीत के मुके तत्व और उसकी उत्पत्ति।
- जाति गायन का राग गायन में विकास।
- नायक: नायिका भेद और गायन तथा वादन में रचनाओं को सुगम बनाने के नियम।
- संगीत का कला पक्ष और भाव पक्ष।
- संगीत कला एवं अन्य ललित कलाओं के बीच तुल्नात्मक अध्ययन।
- भारतीय स्वर लिपि पद्धति का तुलनात्मक अध्ययन एवं पाश्चात्य स्वर लिपि पद्धति का विशेष ज्ञान।
- गीत रचना और स्वरबद्ध करने की क्षमता।
- जीवनी और संगीत के क्षेत्र में योगदान–
उस्ताद मुश्ताक हुसेन खां, अब्दुल करीम खां,जयदेव, अमीर खुसरो,नायक गोपाल, तानसेन, पं. बहोबल, इनायत खां, उस्ताद फैयाज खां, अलाउद्दीन खां, और पंडित ओंकार नाथ ठाकुर।
द्वितीय प्रश्न पत्र (Second Paper)
(१)भारतीय संगीत का सम्पूर्ण इतिहास।
(२) गायकी के विभिन्न प्रकार और गायकी के विशेष सिद्धान्त।
(३) शास्त्रीय संगीत के प्रचार में संगीत विद्यालयो का स्थान।
(४) मानव समाज में संगीत की भूमिका।
(५) शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत।
(६) राग और रस।
(७) संगीत और चित्रकला।
(८) भारतीय संगीत में पाश्चात्य संगीत का प्रभाव।
(९) राग वर्गीकरण।
(१०) लोक धुनों में प्रदेश की छाप।
(११)वृन्द वादन।
(१२) भारतीय शास्त्रीय संगीत में आध्यात्मिक और कलाकारी।
(१३) संगीत की एकात्मक सत्ता और भिन्न सत्ता।
(१४) संगीत का आकर्षण प्रभाव और प्रतिक्रिया।
(१५) भारतीय संगीत स्वर लिपि पद्धति की त्रुटियों एवं उनके सम्बन्ध में अपने विचार।
(१६) रागों की विस्तृत समालोचना। प्रथम से सप्तम वर्ष तक निर्धारित सारे रागों की समानता–विभिन्नता, अल्पत्व– बहुत्व तथा आविर्भाव– तिरोभाव। राग में न्यास स्वरों का प्रयोग एवं महत्व, राग में विवादी स्वर का प्रयोग।
(१७) पाठ्यक्रम में निर्धारित राग समूहों में बड़ा और छोटा ख्याल ( वाद्य के क्षेत्र में मसीतखानी और रज़ाखानी गत ) तथा गीतों के प्रकारों को विष्णु दिगम्बर और भातखंडे स्वर –लिपि पद्धति में लिखने का अभ्यास।
(१८)पूर्व वर्षो में निर्धारित तालों को कुआड़,विआड़ और अन्य लयकारियों में लिखने की क्षमता।
नोट– (क) निबन्धों के अतिरिक्त परिक्षार्थी से संगीत समस्या पर और भी निबन्ध लिखने को कहा जा सकता है।
(ख) क्रियात्मक बंदिशें–
(१) संगीत भास्कर प्रथम और द्वितीय खण्ड में निर्धारित तमाम रागों का पूर्ण परिचय।
(२)विभिन्न स्वर लिपि पद्धतियों में पूर्ण गायकी और वादन शैली लिखने का अभ्यास।
(३) निर्धारित राग को विभिन्न कठिन लयकारियों में लिखना।
क्रियात्मक (Practical)
- निम्नलिखित रागों में बडा ख्याल और छोटा ख्याल पूर्ण गायकी के साथ ध्रुपद गायन के परिक्षार्थियों के लिये ठाह, दुगुन, तिगुन ,चौगुन, आड़ ,कुआड़, बिआड़ और लयकारी के साथ पूर्ण ध्रुपद जानना आवश्यक (ब्रह्म और रूद्र ताल में कम से कम एक रचना अनिवार्य ) तंत्र वाद्य विभाग के परिक्षार्थियों के लिये सम्पूर्ण वादन शैली के साथ मसीतखानी और रज़ाखानी गत जानना आवश्यक है
निर्धारित राग
पूरिया कल्याण, नायकी कान्हडा, कौशी कान्हडा(मालकौंस अंग) मेघ, मारू बिहाग,शुद्ध सारंग,सूर मल्हार, रामदासी मल्हार,आन्नद, भैरव, बसन्त बहार, जोग,कलावती, नारायणी।
- निम्नलिखित रागों में मात्र द्रुत ख्याल जानना आवश्यक है–ध्रुपद गायन परिक्षार्थियों के लिये मात्र ध्रुपद गायन।
वाद्य विभाग के परिक्षार्थियों के लिये रज़ाखानी एवं मसीतखानी गत,सुघरई,सूहा, काफी कान्हडा, मध्यमाद सारांग,झिंझोटी, जोनपुरी,शिवरंजनी,पहाड़ी, नट मल्हार और जयन्त मलहार।
- निम्नलिखित राग समूहों के मात्र राग रूप प्रदर्शन करने की क्षमता। (ख्याल या ध्रुपद या गत की आवश्यकता नहीं केवल आलाप अथवा जोड आलाप(झाला सहित) अथवा स्वर विस्तार द्वारा दर्शाना। बंगाल भैरव,शिवमत भैरव,नट बिहाग,ललिता गौरी,देव गंधार, चांदनी केदार,कुकुभ बिलावल, सरपर्दा, रेवा एवं जेत कल्याण।
- इस वर्ष के निर्धारित राग समूहों में से किसी राग में विभिन्न प्रकार के आलाप एवं विभिन्न प्रकार की लयकारियों के साथ दो ध्रुपद तथा दो धमार पूर्ण गायकी के साथ गाना आवश्यक है। –ध्रुपद गायन के परिक्षार्थियों के लिये पूर्ण गायकी के साथ तीन धमार और तीन होरी को विभिन्न लयकारियों मे गाने की क्षमता।
- कुछ तराने,चतुरंग,त्रिवट और रागमाला।
- पूर्ण गायकी के साथ एक टप्पा, एक तराना, एक भजन, एक चैती और एक कजरी जानना आवश्यक है।
- पूर्ण गायकी के साथ दो ठुमरी जानना आवश्यक।
- पाठ्यक्रम में निर्धारित संपूर्ण रागों की समानता विभिन्नता, अल्पत्व बहुत्व,आविर्भाव तिरोभाव प्रदर्शन करने की क्षमता।
- कठिन स्वर विस्तार सुनकर राग निर्णय की क्षमता।
- निर्धारित सभी तालो में विभिन्न लयकारियाँ ताली खाली दिखाकर बोलने का अभ्यास।
निर्धारित ताले:- खमेटा,रूद्र, लक्ष्मी,कुम्भ ,मत और गणेश।
टिप्पणी– पूर्व वर्षों का पाठ्यक्रम संयुक्त रहेगा।
मंच प्रदर्शन–
(क) पाठ्यक्रम के किसी भी राग में एक विलम्बित और एक द्रुत ख्याल अथवा एक मसीतखानी और रज़ाखानी गत पूर्ण गायकी तथा सम्पूर्ण वादन शैली के साथ एक घंटे तक गायन अथवा वादन।
(ख) किसी भी राग मे ठुमरी गायन अथवा धुन वादन या
एक ध्रुपद या धमार या तराना या त्रिवट सम्पूर्ण गायकी सहित।
नोट:- परिक्षार्थी को ख्याल गायकी और वादन शैली में योग्यता दर्शाना। श्रोताओं पर प्रभाव डालने के लिये मंच प्रदर्शन के समय संवादन करने की कुशलता।
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