History of Kathak Dance in Hindi & Kathak Ke Gharane is described in this post . Kathak shastra notes available on saraswati sangeet sadhana
History of Kathak Dance in Hindi
कथक नृत्य का संक्षिप्त इतिहास
- नृत्य का इतिहास बहुत प्राचीन है। मोहनजोदड़ो और हडप्पा की खुदाई में प्राप्त नृत्य करती हुई मुर्तियां इसकी प्राचीनता सिद्ध करती हैं। वेद, पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में नृत्य का उल्लेख मिलता है। मौर्य और गुप्तकाल में भी नृत्य का उल्लेख मिलता है।
- कथक नृत्य जिसे कथक नटवरी नृत्य भी कहते है, उत्तर भारत का एक प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है। ऐसे तो मणिपुरी, कथकली और भरतनाट्यम शास्त्रीय नृत्य कहलाते है और उत्तर भारत में इनका प्रचार भी है किन्तु इनमें से कथक नृत्य उत्तर भारत में अधिक प्रचलित हैं।
- मोहनजोदड़ो और हडप्पा की मूर्तियों से कथक नृत्य का ही आभास मिलता है। मुसलमानों के आने से कथक नृत्य की रूपरेखा में काफी परिवर्तन हुआ। इनके पूर्व का नृत्य जो समस्त भारत में प्रचलित था भरतनाट्यम सा था। मुसलमानी राज्य स्थापित होने से नृत्य भगवान के मन्दिरों से राज दरबारों में पहूँचा और उनमें भक्ति भावना के स्थान पर श्रृंगारिकता जाग गई। नृत्य का उद्देश्य ईश्वर की उपासना ना होकर राजाओं को खुश करने के लिए मनोरंजन की वस्तु हो गई।
- दक्षिण की देवदासियों और नृत्याचार्यो को राज दरबार में लाया गया और राज दरबार में उन्हें शराब का प्याला लेकर नृत्य करने को बाध्य किया गया। इसलिये पैरों का संतुलन बनाये रखना आवश्यक हो गया नहीं प्याला गिर कर टूट जाता। इसका परिणाम यह हुआ कि नर्तक का पूरा ध्यान उपासना और भाव प्रर्दशन से हटकर शरीर के संतुलन मात्र पर चला गया और धीरे धीरे यह नृत्य केवल पैरों का तमाशा मात्र रह गया।
- नर्तक की वेशभूषा में भी काफी परिवर्तन हुआ। राधा कृष्ण के पावन नृत्य में आध्यात्मिक भाव के स्थान पर श्रृंगारिक भावना आ गई जिससे राजदरबारियों के कामवासना की तृप्ति होती थी। देवदासियों और वेश्याओं को नृत्याचार्यो से नृत्य सीखने के लिए बाध्य किया गया। अतः नृत्य धीरे धीरे सभ्य समाज से दूर हो गया और केवल मनोरंजन का साधन मात्र रह गया।
- कथक नृत्य का अलग शास्त्र बनाया गया। नृत्य के पारिभाषिक शब्द उर्दू भाषा से रख लियें गये जैसे – सलामी, आमद, रियाज आदि।
- मुगल काल में राजाओं के बदलने से कभी तो संगीत को प्रोत्साहन मिला और कभी उसे दबाया गया। औरंगजेब के राज्यकाल में संगीत लगभग समाप्त सा हो गया था। अकबर के समय में संगीत को बहुत प्रोत्साहन मिला। स्वामी हरिदास, तानसेन, बैजूबावरा आदि उन्हीं के काल में थे।
- अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह के समय में संगीत को नया जीवन मिला। उन्होंने संगीत को बहुत प्रोत्साहन दिया। उनको कथक नृत्य कम पसंद था क्योंकि यह एकांकी नृत्य है। उन्हें सामुहिक नृत्य पसंद था। उन्होंने स्वयं संगीत की अच्छी शिक्षा ली और ललनपिया के नाम से अनेक ठुमरियों की रचना की। वाजिदअली शाह के गुरु ठाकुर प्रसाद थे। जिनको उन्होंने गुरु दक्षिणा के रूप में 6 पालकी भर कर रूपया दिया था। उनके समय से कथक नृत्य का प्रचार हुआ था। कहते हैं कि स्व०ठाकुर प्रसाद ने ही इस नृत्य का नाम कथक नटवरी रखा था।
- आगे नृत्य के विभिन्न घरानों पर संक्षिप्त प्रकाश डाला जा रहा है—
Kathak Ke Gharane
History of Lucknow gharana kathak
1.लखनऊ घराना—
- लखनऊ घराने का प्रारंभ स्व० ईश्वरी प्रसाद से माना जाता है जो इलाहाबाद जिले के हण्डिया तहसील के निवासी थे। वे जाति के मिश्र ब्राह्मण थे।
- एक किवदंती के अनुसार कहा जाता है कि उन्हें स्वप्न में कथक नटवरी नृत्य का पुनरूद्धार करने के लिए श्री कृष्ण ने आदेश दिया था। उसी क्षण से वह इस कार्य में लग गये और अपने तीनों पुत्रों – अड़गूजी, खड़गूजी और तूलगूजी को नृत्य की शिक्षा दी और नृत्य का पुनरूद्धार करने का आदेश दिया। कहते है कि ईश्वरी प्रसाद की मृत्यु 105 वर्ष की अवस्था में सर्प के काटने से हुई। उनकी पत्नी भी उनके साथ सती हो गई। पिता की मृत्यु से पुत्रों को बहुत दुख हुआ लेकिन उनकी इच्छा के अनुसार वे नृत्य की साधना और प्रचार – प्रसार में लगे रहे। अडगु जी के तीन पुत्र हुये – प्रकाश जी, दयाल जी और हरि लाल जी जिनकों अडगु जी ने अच्छी शिक्षा दी। अडगु जी की मृत्यु के बाद तीनों पुत्र लखनऊ आ गये। वहाँ प्रकाश जी नवाब आशिफ उद्दौला के दरबारी नृत्यकार हो गये।
- प्रकाश जी के तीन पुत्र हुये – दुर्गा प्रसाद, ठाकुर प्रसाद और मान जी। इन तीनों भाईयों ने नृत्य में बडी ख्याति प्राप्त की। दुर्गाप्रसाद के तीन पुत्र हुये- महाराज बिन्दादीन, महाराज कालिका प्रसाद और भैरव प्रसाद जिन्हें नृत्य में बडी ख्याति मिली। प्रथम दोनों राम- लक्ष्मण के नाम से पुकारे जाते थे। महाराज कालिका प्रसाद और बिन्दादीन ठुमरी गायन में प्रसिद्ध थे और सैकड़ों ठुमरियों की रचना की। उनकी विशेषता यह थी कि ठुमरी गाते थे और उनका भाव अंग संचालनों द्वारा दिखाते थे। इस प्रकार भाव- प्रदर्शन लखनऊ घराने का प्रमुख हो गया।
- गौहरजान और जोहराबाई आदि प्रसिद्ध गायिकाओं ने बिन्दादीन महाराज से ठुमरी की शिक्षा ली। बिन्दादीन महाराज एक कट्टर हिन्दू थे और मुसलमानों और वेश्याओं के साथ रहने से पर भी उन्होंने अपना सात्विक हिन्दू जीवन नहीं छोड़ा।
- कालिका प्रसाद के तीन पुत्र हुये – जगन्नाथ प्रसाद जो अच्छन महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे, बेजनाथ प्रसाद जो लच्छू महाराज के नाम से लोकप्रिय हुये और शम्भुमहाराज। इन तीनों बन्धुओं ने नृत्य जगत में बडी क्रांति मचा दी।
- अच्छन महाराज भाव, लय और ताल के पण्डित थे। ये कठिन से कठिन तालों में बडी आसानी से नृत्य करते थे। इन्होंने अपने छोटे भाई को नृत्य की शिक्षा दी। जिस समय शम्भु महाराज की अवस्था केवल 8 वर्ष की थी तो उनके चाचा और गुरु महाराज बिंदादीन की मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय बिंदादीन ने नृत्य सिखलाने का भार अच्छन महाराज पर डाल दिया था। अच्छन महाराज की मृत्यु 1950 में हुई। उनके एकमात्र पुत्र ब्रजमोहन नाथ है जो बिरजू महाराज के नाम से प्रसिद्ध है। इस घराने में पैरों के बोल और शरीर के विभिन्न अंगों के सुन्दर संचालन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। प्रायः छोटे- छोटे टुकड़े व तोड़े नाचे जाते है। गत भाव की तुलना में गत निकास पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
History of Jaipur gharana kathak
2. जयपुर घराना—
- इस घराने की स्थापना भानु जी महाराज द्वारा आज से 200 वर्ष पुर्व की थी। इन्होंने एक संत द्वारा शिव तांडव की शिक्षा प्राप्त की थी।
- भानु जी के प्रपोत्र, कान्हू जी जो शिव तांडव बडे निपुण थे वृन्दवादन आकर नृत्य के अन्य पद्धतियों की शिक्षा ली। वहाँ पर इन्होंने लास्य नृत्य में निपुणता प्राप्त की।
- कान्हू जी के प्रपोत्र हनुमान प्रसाद के तीन पुत्र – मोहनलाल, चिरोंजीलाल और नारायण प्रसाद थे। हनुमान प्रसाद के भाई हरि प्रसाद भी नृत्य में बडें पारंगत थे। हरिप्रसाद आकाशचारी और चक्कदार परन में और हनुमान प्रसाद लास्य नृत्य में पारंगत थे। हनुमान प्रसाद के चचेरे भाई चुन्नीलाल थे। जिनके दो पुत्र जयलाल और सुंदरप्रसाद हुये। इन दोनों भाईयों ने अपने घराने के अतिरिक्त लखनऊ घराने के पण्डित बिन्दादीन से नृत्य शिक्षा ली। इस प्रकार वे दोनों घराने की शिक्षा में पारंगत हो गये। सुन्दर प्रसाद से रोशन कुमारी ने संगीत शिक्षा ली। पं० जयलाल की मृत्यु सन् 1948 में हुई। सुन्दर प्रसाद की मृत्यु 28 मई 1970 को दिल्ली में हुई।
- जयलाल की सुपुत्री श्रीमती जयकुमारी भी कथक नृत्य में बडी प्रवीण थी।
- इस घराने के कुन्दनलाल गंगानी कथक केंद्र दिल्ली में वरिष्ठ गुरु थे।इस घराने में तांडव का बहुत प्रभाव पडा। इस नृत्य शैली में कठिन तालों में नृत्य करना, कठिन लयकारी दिखाना, तैयारी में कठिन से कठिन बोलो को निकालना गत भाव आदि पर ध्यान देना विशेष है।
- रोशन कुमारी इस घराने की वर्तमान प्रमुख नर्तकी है। इस घराने में लखनऊ की ठुमरी की अपेक्षा भजन या गीत का भाव नृत्य द्वारा दिखाते है।
History of Kathak Dance in Hindi
History of Banaras gharana kathak
3.बनारस घराना
- इस घराने में बहुत कम नृत्य के कलाकार हैं, अतः इस घराने से लोग बहुत कम परिचित है। इस घराने की आत्मा जयपुर घराना है। कहते है कि जयपुर घराने के दुल्हाराम और उनके शिष्य गनेशी प्रसाद बनारस चले गये और वहीं रहने लगे। इस प्रकार बनारस घराने का प्रारंभ हुआ।
- दुल्हाराम के तीन पुत्र हुये – बिहारीलाल, पूरनलाल और हीरालाल। दुल्हाराम के शिष्य गनेशी लाल के भी तीन पुत्र हुये- हनुमान प्रसाद, शिवलाल तथा गोपाल जी। ये लोग कथक नृत्य में बड़े निपुण थे और उन लोगो ने अपनी एक स्वतंत्र शैली की रचना की।
- गोपाल जी के पुत्र कृष्ण कुमार इस घराने का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और दिल्ली में रह रहे थे। कुछ वर्षों पूर्व इनका देहावसान हो गया।
- इस शैली में नृत्य के बोलो की मौलिकता, हाव-भाव तैयारी, स्पष्टता और सौन्दर्य पर विशेष ध्यान दिया जाता है। तबले अथवा पखावज के बोल नृत्य में नहीं प्रयोग करते। ततकार में एड़ी का प्रयोग अधिक करते है।
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कथक के घराने कितने हैं ?
कथक के घराने तीन हैं –
लखनऊ घराना
जयपुर घराना
बनारस घराना