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Gharanas of singing Gayan ke gharane in Hindi Indian classical music

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Gharanas of singing Gayan ke gharane in Hindi Indian classical music is described in this post of Saraswati sangeet sadhana .

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Gayan ke gharane/gharanes of singing

         गायन के घराने

  • गायकी से घराने का निर्माण हुआ। एक गायक ने कुछ शिष्य तैयार किये। उन्होंने कुछ अन्य शिष्य तैयार किये। इस प्रकार शिष्यों की पीढी बडती चली गई, जिसे घराना कहा गया।
  • घराने का तात्पर्य यह है कुछ विशेषताओं का पीढी दर पीढी चले आना अर्थात गुरु शिष्य परम्परा को घराना कहते है।
  • मध्यकाल में देशी रियासतें बन गई जहाँ घरानों का जन्म और विकास हुआ।
  • तानसेन के पूर्व कोई घराना नहीं मिलता। मुगलों का पतन और ब्रिटिश राज्य की स्थापना से छोटी छोटी रियासतों की स्थापना हो गई। प्रत्येक रियासत में कुछ गायक – वादक अवश्य होते थे, जिन्हें राजा को गायन वादन सुनाकर खुश करना पडता था और बदले में राजा से पूर्ण आश्रय मिलता था। वे बडे आराम से अपनी जिंदगी गुजारते और जब कोई शिष्य उनसें सीखने जाता तो उसे सिखाने में कतराते।केवल वहीं शिष्य काफी दिनों तक लगे रहने के बाद थोड़ा बहुत सीख पाता था जो उस्ताद की सेवा करने में कुछ बाकी न बचा रखता था।

Gwalior Gharana in Indian music

ग्वालियर घराना

  • स्वर्गीय नत्थन पीरबख्श इस घराने के जन्म दाता माने जाते है। उनके दो पुत्र कादर बख्श और पीरबख्श थे। कादर बख्श ग्वालियर नरेश स्वर्गीय दौलतराव जी महाराज के यहाँ नियुक्त थे। कादर बख्श के तीन पुत्र हुए- हदू, हस्सु व नत्थू खाँ। इन लोगों ने संगीत जगत में बहुत नाम कमाया। नत्थू खाँ को उनके चाचा पीर बख्श ने गोद लिया था।
  • हस्सु खाँ के पुत्र गुले इमाम खाँ थे तथा उनके पुत्र मेहंदी हुसैन खाँ थे। इस परम्परा मे बालकृष्ण बुआ इचलकरंजीकर, बासुदेव जोशी एवमं बाबा दीक्षित(नीलकंठ) थे। बालकृष्ण बुआ के शिष्य पंडित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर थे, जिन्होंने संगीत के प्रचार में बडा हाथ बटाया। स्वर्गीय विनायक राव पटवर्धन, स्व० वी०ए० कशालकर,स्व० वी० एन० ठकार,स्व०ओंकार नाथ ठाकुर,स्व० नारायण राव व्यास इत्यादि पलुस्कर जी के शिष्य थे और इसी परम्परा. के गायक थे।
  • हददु खाँ के दो पुत्र थे, रहमत खाँ और मुहम्मद खाँ। उनके शिष्यों में इंदौर के रामाभाऊ तथा विष्णुपंत छत्रे प्रमुख थे।
  • नत्थू खाँ के दत्तक पुत्र उस्ताद निसार हुसैन खाँ थे,जिन्होंने संगीत में बडा नाम कमाया। नत्थू खाँ का कोई पुत्र नहीं था,इसलिए उन्होंने अपने मित्र के पुत्र निसार हुसैन को गोद ले लिया, जिन्हें संगीत की अच्छी शिक्षा दी। निसार हुसैन की शिष्य परम्परा में शंकर राव, पंडित भाउराव जोशी,पंडित रामकृष्ण बुआ बझे, राजाभैया पूँछवाले, मुस्ताक हुसैन इत्यादि थे। शंकरराव पंडित के पुत्र कृष्णराव शंकर पंडित थे तथा शिष्य राजाभैया पूँछवाले थे।

ग्वालियर घराने की विशेषता-

  • ध्रुपद अंग के ख्याल,
  • जोरदार तथा खुली आवाज,
  • बहलावा से विस्तार,
  • गमक का प्रयोग,
  • सीधी तथा सपाट तानों का विशेष प्रयोग,
  • लयकारी और कभी कभी लड़न्त,
  • ठुमरी के स्थान पर तराना गायन और
  • तैयारी पर विशेष बल।

    Agra gharana in indian music

आगरा घराना

  • आगरे घराने का विशेष सम्बन्ध ग्वालियर घराने से है, इसलिए बहुत सी बातें आपस में मिलती जुलती है। इस घराने के प्रवर्तक सुजान खाँ थे। आगे चलकर इस.घराने का प्रचार घग्गे खुदाबख्श द्वारा हुआ। वे ग्वालियर घराने नत्थन पीरबख्श (हस्सु, हददु और नत्थू खाँ के बाबा) के शिष्य बन गये थे और उनसें ख्याल गायकी की शिक्षा ली और आगरा चले गए। इस प्रकार ग्वालियर घराने की विशेषताएं आगरा चली गयी।
  • खुदाबख्श और जग्गू खाँ भाई भाई थे। जग्गू के पोत्र नत्थन को संगीत की शिक्षा घग्गे खुदाबख्श के पुत्र गुलाम अब्बास खाँ से प्राप्त हुई। गुलाब अब्बास खाँ स्वर्गीय उस्ताद फैयाज खाँ आगरा घराने के रत्न माने थे। नत्थन खाँ की गायकी का प्रभाव फैयाज खाँ के शिष्यों में शराफत हुसैन और लताफत हुसैन प्रमुख थे,जो आगरा घराने का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। नत्थन पीरबख्श के पुत्र विलायत हुसैन की मृत्यु कुछ वर्ष पूर्व हुई है।
  • आगरा घराने की विशेषताएं:-
  • ग्वालियर घराने की तरह खुली किन्तु जवारीदार आवाज,
  • ध्रुपद के समान ख्याल में भी नोम तोम का आलाप,
  • जबडे का अधिक प्रयोग,
  • बन्दिशदार चीजे,
  • बोलतानो की विशेषता,
  • ख्याल के अतिरिक्त ध्रुपद, धमार और ठुमरी में प्रवीणता,
  • लयताल पर विशेष अधिकार।

Delhi gharana in indian music

दिल्ली घराना

  • मुगलों के पतन के बाद तानरस खाँ ने इस घराने को जन्म दिया। तानरस खाँ के तानों में अजीब बात यह थी कि उनकी तानों से ऐसा मालूम पडता था कि बहुत सारे पक्षी एकसाथ उड़ गए हो।
  • तानरस खाँ के पुत्र उमराव खाँ ने इस घराने को आगे बढाया। पटियाला घराने के प्रसिद्ध उस्ताद अलैया और फत्ते अली खाँ ने तानरस खाँ से शिक्षा पाई थी। अभी तक उस्ताद चाँद खाँ इस घराने का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

दिल्ली घराने की विशेताए;

  • ख्याल की कलापूर्ण बंदिश,
  • तानों में निरालापन,
  • द्रुत लय में बोल तानों का प्रयोग,
  • तैयारी पर बल।

Jaipur gharana in Indian music

     जयपुर घराना

  • आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व मुहम्मद अली खाँ ने जयपुर घराने को जन्म दिया था। कुछ लोगों का विचार है कि इस घराने के प्रवर्तक मनरंग थे। मुहम्मद अली इनके वंशज माने जाते है।इनके पुत्र प्रसिद्ध सौगीतज्ञ आशिक अली खाँ थे। आशिक अली खाँ पहले गाना गाते थे किंतु बाद में सितार बजाने लगे। इनके शिष्यों में जी० एन० गोस्वामी, मुश्ताक अली, अनवरी बैगम, रसूलन बाई प्रमुख हैं।
  • जयपुर घराने की विशेताए:-
  • गीत का संक्षिप्त बंदिश,
  • वक्र ताने तथा छोटी छोटी तानों से आलाप की बढत,
  • आवाज लगाने का अपना ढंग,
  • खुली आवाज का गायन।
  • इस घराने के अलैया और फत्तू ने तथा अल्लादिया खान ने दो प्रथक घरानों को जन्म दिया, जिनका संक्षिप्त विवरण नीचें दिया जा रहा है।

Patiyala gharana in indian music

पटियाला घराना :-

  • इस घराने को अलैया जिन्हें अलीबख्श कहते थे तथा फत्तू जिन्हें फतेह अली खान कहते थे,इन दो भाईयों ने चलाया।
  • कुछ लोगों का विचार हैं कि इनके पिता बडे मियां कालू खाँ ने इस घराने की नींव डाली। इन दो भाइयों ने जयपुर की गोरखी बाई तथा तानरस खाँ से शिक्षा प्राप्त की थी और पटियाला घराने को आगे बढाया। अभी तक इस घराने का प्रतिनिधित्व गुलाम अली खान कर रहे थे। बडे गुलाम खाँ को अपने चाचा काले खाँ से शिक्षा मिली।
  • बडे गुलाम अली खान के पिता अलीबख्श और चाचा काले.खान को बडे कालू खाँ से शिक्षा प्राप्त हुई। काले खाँ को फतेह खाँ द्वारा भी शिक्षा मिली थी। बडे गुलाम अली खान के पुत्र मुनव्वर अली खान अभी तक इस घराने का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
  • पटियाला घराने की विशेताए;
  • ख्याल की कलापूर्ण बंदिश किन्तु संक्षिप्त ख्याल,
  • अलंकारिक, वक्र तथा फिरत तानों का प्रयोग,
  • तानों की तैयारी और उनका अधिक प्रयोग,
  • ख्याल के साथ पंजाब अंग की ठुमरी गाने में निपूणता और
  • गले की तैयारी।

Allahdiyan gharana in indian music

अल्लादिया खाँ का घराना

  • अल्लादिया खाँ ने अपनी स्वतंत्र गायन शैली द्वारा एक नया घराना चलाया। उन्होंने जहाँगीर खाँ से संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी। जहांगीर खाँ ने अपने पिता ख्वाजा अहमद से और ख्वाजा ने मानतोल खाँ से शिक्षा ग्रहण की थी। बाद में खाँ साहब अल्लादिया खाँ महाराष्ट्र में रहने लगे थे, उनके भाई हैदर खाँ थे जो उच्च कोटि के गायक थे।
  • स्व० भास्कर बुआ बखले ने संगीत जगत में अच्छा नाम कमाया। मंजी खाँ और भुर्जी खाँ अपने समय के बडे अच्छे कलाकार थे। ये दोनों भाई थे और अल्लादिया खाँ के पुत्र थे। मंजी खाँ का पूरा नाम बदरुद्दीन खाँ और भुर्जी खाँ का पूरा नाम शमसुद्दीन खाँ था।
  • आजकल इस घराने के प्रतिनिधि कलाकार थे- केसरबाई केरकर, मोघूबाई कुर्डीकर, तथा शंकरराव सरनाईक आदि।
  • अल्लादिया घराने की विशेताए;
  • बुद्धि प्रधान और पेंचदार गायकी,
  • बोल अंगों की विशेषता,
  • गीत को भरने का अपना विशेष ढंग,
  • अप्रचलित रागों की ओर विशेष झुकाव,
  • विलम्बित लय में गायन,
  • कठिन गायकी।

Kirana Gharna in indian music

किराना घराना

  • इस घराने की बुनियाद मुगल काल में हुई थी। बाढ के कारण दोताही के संगीतज्ञों को जहाँगीर ने यू० पी० में ही जिला मुजफ्फरनगर के किराना नामक स्थान में बसा दिया। इस घराने का नाम उस स्थान के नाम पर पडा। सादिक अली खाँ वहाँ के एक प्रसिद्ध बीनकार थे। उनके सुपुत्र उ० बन्दे अली खाँ एक अच्छे गायक और बीनकार हुये। वे इन्दौर दरबार के संगीतज्ञों और महाराजा के गुरु भी थे। उस्ताद बन्दे अली खाँ के शिष्यों में प्रमुख थे -मुराद खाँ बीनकार और नन्हे खाँ ध्रुपदिया जिनके शिष्य थे अलीबख्श और मौलाबख्श । आगे चलकर अब्दुल करीम खाँ और अब्दुल वहीद खाँ इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि हुये, जिन्होंने इस घराने को बहुत आगे बढाया।
  • अब्दुल करीम खाँ अपनी मधुर आवाज और मोहक गायकी के कारण अधिक लोकप्रिय हुए। अब्दुल वहीद खाँ करीम खाँ के निकट संबंधी थे जो मिरज में रहते थे तथा इस घराने के प्रतिनिधि थे। करीम खाँ चार भाई थे- अब्दुल हक,अब्दुल गनी, अब्दुल मजीद और स्वयं। स्वर्गीय रामाभाउ कुन्दगोलेकर (सवाई गन्धर्व) स्व० सुरेश बाबू माने इसी परम्परा के गायक थे,जिन्होंने अब्दुल करीम खाँ से शिक्षा प्राप्त की थी।
  • आजकल इस घराने के प्रमुख प्रतिनिधि कलाकार हैं स्व० हीराबाई बडोदेकर, पं० भीमसेन जोशी, सरस्वती बाई राने, बस्वराज राजगुरू, गंगूबाई हंगल, स्व० रज्जब अली खाँ, स्व० उस्ताद अमीर खाँ,बहरे बुआ, पाकिस्तान की श्रीमती रोशन आरा बेगम इत्यादि। सवाई गन्धर्व से भीमसेन जोशी, गंगूबाई हंगल तथा बस्वराज राजगुरु ने संगीत शिक्षा ग्रहण की।
  • किराना घराने की विशेताए;
  • आलाप प्रधान गायकी,
  • स्वर लगाने की भावपूर्ण ढंग,
  • स्वर की विलम्बित बढत,
  • चैनदार गायकी,
  • विलम्बित लय प्रधान गायकी।

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