Dhrupad in Music in Hindi

Dhrupad in Music in Hindi 15वी शताब्दी की रचना ध्रुपद गायकी क्या है

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Dhrupad in Music in Hindi ध्रुपद गायकी क्या है is described in this post . Learn indian classical music theory in hindi .

Dhrupad in Music in Hindi

ध्रुपद गायकी –

अधिकांश विद्वानों का मत है कि पन्द्रहवीं शताब्दी में  ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर ने इसकी रचना की।

राजा मानसिंह तोमर ने ध्रुपद के प्रचार में बहुत बडा हाथ बटाया। अकबर के समय तानसेन और उनके गुरु स्वामी हरिदास डागुर,नायक बैजू और गोपाल आदि प्रख्यात गायक ध्रुपद ही गाते थे।

ध्रुपद गंभीर प्रकृति का गीत है। इसे गाने में कण्ठ में और फेफड़ों में बल पडता है। इसलिए लोग इसे मर्दाना गीत कहते है।इसका प्रचलन मध्य काल में अधिक था और आजकल जनरुचि में परिवर्तन होने के कारण इसका स्थान ख्याल ने ले लिया है।

अधिकांश ध्रुपद के चार भाग होते है- स्थाई, अन्तरा,संचारी और आभोग। इसके शब्द अधिकतर ब्रजभाषा के होते है। इसमें वीर,शांति और श्रृंगार रस की प्रधानता होती है।

ध्रुपद ताल

यह चारताल, सूलताल, ब्रह्मताल,तीवरा मत्त आदि तालों में गाया जाता है। जो पखावज के ताल है।

ध्रुपद की संगति पखावज ऐसे गंभीर वाद्य से होती है। ध्रुपद में सर्वप्रथम नोम तोम का सविस्तार आलाप किया जाता है। आलाप के भी चार अंग होते है

नोम – तोम का आलाप अपने तीसरे अंग से लयबद्ध  हो जाता है और इसकी गति धीरे धीरे बढाई जाती है। इसी स्थान से गमक का प्रयोग प्रारंभ होता है।

ध्रुपद में खटके अथवा तान के समान चपल स्वर समूह नहीं लिये जाते, बल्कि मींड और गमक का अधिक प्रयोग होता है।

आलाप के पश्चात ध्रुपद की बंदिश गाते हैं और विभिन्न प्रकार की लयकारिया दिखाते हैं। ध्रुपद में लयकारियों को विभिन्न स्थान प्राप्त है।

गीत की बंदिश को लेकर कम और उसके शब्दों को लेकर विभिन्न बोल बनाते हुए लयकारियों का अधिक विस्तार करते हैं।

प्राचीन काल में ध्रुपद गाने वाले को कलावन्त कहा जाता है। आजकल गीत की बंदिश को विभिन्न लयकारियों में बोलते है। प्राचीन काल में ध्रुपद की  मुख्य चार शैलियाँ थी जिन्हें बानी कहते थे। बानियाँ चार थी- खण्डार, नौहार, डागुर और गोबरहार।

आजकल ध्रुपद अधिकतर चारताल में गाया जाता है। नींचे रागकौंश में एक प्रसिद्ध ध्रुपद को देखिए।

Dhrupad Bandish

स्थाई- आये रघुवीर धीर लंकधीश अवध मान।

     संग सखा अंगद, सुग्रीव और हनुमान।

अंतरारहस रहस गावत युवती जग बंधन विधान।

     देव कुसुम बरसत घन जाके रहे नभ विमान।

ध्रुपद गायकी क्या है ? ध्रुपद का संक्षिप्त इतिहास क्या है ? ध्रुपद कैसा गीत है ?

अधिकांश विद्वानों का मत है कि पन्द्रहवीं शताब्दी में  ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर ने इसकी रचना की। ध्रुपद गंभीर प्रकृति का गीत है। इसे गाने में कण्ठ में और फेफड़ों में बल पडता है। इसलिए लोग इसे मर्दाना गीत कहते है।इसका प्रचलन मध्य काल में अधिक था और आजकल जनरुचि में परिवर्तन होने के कारण इसका स्थान ख्याल ने ले लिया है।

ध्रुपद गायन शैली में अधिकतर किस रस का प्रयोग किया जाता है ?

अधिकांश ध्रुपद के चार भाग होते है- स्थाई, अन्तरा,संचारी और आभोग। इसके शब्द अधिकतर ब्रजभाषा के होते है। इसमें वीर,शांति और श्रृंगार रस की प्रधानता होती है।

ध्रुपद के बोल किस भाषा के होते हैं ?

अधिकांश ध्रुपद के चार भाग होते है- स्थाई, अन्तरा,संचारी और आभोग। इसके शब्द अधिकतर ब्रजभाषा के होते है। इसमें वीर,शांति और श्रृंगार रस की प्रधानता होती है।

ध्रुपद की रचना किसने की थी ? ध्रुपद की रचना कब हुई ?

अधिकांश विद्वानों का मत है कि पन्द्रहवीं शताब्दी में  ग्वालियर के राजा मानसिंह तोमर ने इसकी रचना की।

ध्रुपद की ताल क्या हैं ? ध्रुपद को किस ताल में गया जाता है ?

यह चारताल, सूलताल, ब्रह्मताल,तीवरा मत्त आदि तालों में गाया जाता है। जो पखावज के ताल है।

ध्रुपद गायन की संगति में कौन सा वाद्य प्रयोग में आता है ?

ध्रुपद की संगति पखावज ऐसे गंभीर वाद्य से होती है। ध्रुपद में सर्वप्रथम नोम तोम का सविस्तार आलाप किया जाता है। आलाप के भी चार अंग होते है

ध्रुपद गायन शैली में कितने भाग होते हैं ?

अधिकांश ध्रुपद के चार भाग होते है- स्थाई, अन्तरा,संचारी और आभोग। इसके शब्द अधिकतर ब्रजभाषा के होते है। इसमें वीर,शांति और श्रृंगार रस की प्रधानता होती है।

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