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मणिपुरी नृत्य
इस नृत्य का कोई भी ऐतिहासिक प्रमाण नही प्राप्त होता कि इसकी उत्पत्ति कब और किसके द्वारा हुई मणिपुर प्रदेश मे अत्यधिक प्रचलित होने के कारण इसे मणिपुरी नृत्य कहते हैं। इसकी विशेषताओं को देख के ये आभास होता है कि इस नृत्य की जन्मभूमी मणिपुर ही रही इसके जन्म के विषय मे अनेक दन्त कथाएं हैं ,परन्तु उन्हे प्रमाणिक नही माना जा सकता। यह पूर्वी बंगाल और असाम का शास्त्रीय नृत्य व लोक नृत्य दोनो है। इसका प्रचार बंगाल , बिहार, उत्तर प्रदेश तथा भारत के अन्य प्रान्तों मे है।
इस नृत्य को अधिकतर बालिकायें ही करती हैं। किन्तु बालकों अथवा पुरूष के लिए वार्ज्य नही है। पुरूष भी इसे करते हैं। यह नृत्य एक प्रकार की रासलीला है। इसमे नर्तक और नर्तकी कृष्ण राधा और गोपियों का रूप बनाकर नृत्य करती हैं। और अंगों के भावपूर्ण संचालन द्वारा रस सृष्टि करती हैं।
मणिपुरी नृत्य मे रासलीला के चार प्रकार हैं- बसन्त रास ,महारास, कुन्ज रास और नित्यरास। किसी में राधा का आत्म समर्पण का भाव है तो किसी मे राधा कृष्ण के श्रृंगार का,और किसी मे कृष्ण के वियोग का। मणिपुर के अन्य नृत्य भी रास शैली पर आधारित हैं। सभी मे पाद विक्षेप, भ्रु संचालन, हस्त मुद्राएं तथा अंगहार सभी कुछ लास्य मय रहता है।
वेश-भूषा / Manipuri dance dress –
मणिपुर अपनी वेश-भूषा और साज-श्रृंगार के लिए विख्यात है। इस नृत्य की वेश भूषा भी बहुत आकर्षक और रंग-बिरंगी होती है। इतने आकर्षक वस्त्र व आभूषण किसी अन्य नृत्य शैली में नही मिलते। इस नृत्य की वेश-भूषा महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ कला की एक नमूना होती नारी पात्रों का जो पहिनावा है, वह बहुत ही मनमोहक एवं सुन्दर होता है। जिसे ‘पटलोई’ कहते हैं। चमकीले साटन अथवा रेशमी कपड़े का ढीला लहंगा होता है जिसे कूमिन कहते हैं । इस पर शीशा एवं जरी की बहुत सुन्दर पच्चिकारी रहती है। इसके ऊपर एक परदर्शक सिल्क होता है। कूमिन को घुटने के पास फुलने के लिए अन्दर से उसमे बाँस की खपच्चियों को गोला कर बांध दिया जाता जिससे यह लहंगा फुला हुआ और गोल रहता गोपियां प्राय:लाल रंग की तथा राधा हरे रंग की वस्त्र पहनती हैं। ऊपर चोली पहनती हैं, जिस पर जरी,रेशम या गोटे से तरह-तरह के बेल-बूटे बने रहते हैं। सिर के बालों को एक गाँठ जैसा बाँधा जाता है। और सिर के पिछले भाग की ओर ऊँचा उठाकर कस दिया जाता है। इस गाँठ के ऊपर चाँदी का एक आभूषण पहना जाता है। बालों के ऊपर एक पारदर्शक वस्त्र ओढ़नी की तरह डाला जाता है जो मुख को भी ढके रहता है। यह अत्यन्त पारदर्शक वस्त्र होने के कारण दर्शकों को मुख के हाव भाव को देखने मे कोई कठिनाई नही होती । उसके मुख और हाँथों को अनेक प्रकार से सजाया जाता है। आँख माथा और कपोल पर चंदन अथवा अन्य रंगों से चित्रकारी की जाती है। काजल, पाउडर तो प्रयोग करते ही हैं, माथे पर एक प्रकार का तिलक लगाया जाता है। हाथ मे आलता, मेंहदी,नाखुन पर नेलपालिश आदि का उपयोग
होता है। बाल कान भूजा और कलाइयों मे, बहुत ही आकर्षक आभूषण धारण किये जाते हैं। गोपियों की भाँति कृष्ण का भी उत्तम श्रृंगार किया जाता है, उन्हे प्राय: जोगिया रंग का वस्त्र पहनाते है। काछ लगी रेशमी मर्दानी धोती तथा ऊपर चोली की तरह बण्डी और मोर पंखियों से बनी मुकुट पहनते हैं। तथा अनेक प्रकार के आभूषण व माला पहनते हैं। कृष्ण के कमर मे चाँदी व शीशे की कमदार पेटी पहनते हैं।
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