Description of Indian Lok , Garba , Bhangra , shikari , Chapeli Dance e and types of dance in hindi is described in this post . Learn indian classical dance in simple steps.
लोक नृत्य / Lok dance
उत्तर भारत मे ही नही, सम्पूर्ण भारत लोक नृत्यों से भरा है। प्रत्येक प्रान्त मे वहाँ के सुन्दर लोक नृत्य मिल जायेंगे, जैसै- गुजरात मे गरबा, पंजाब मे भांगड़ा, कुमायू प्रदेश मे छपेली नृत्य आदि। इन नृत्यों मे स्वाभाविकता छूती रहती मनुष्य के हृदय मे उपजते भावों को सरलता से व्यक्त करना ही उनकी विशिष्टता है। लोक नृत्य मे बाल, किशोर , युवा, महिला, पुरूष आदि सभी मुक्त भाव से सम्मिलित होते हैं। जीवन की जटिलता और दैनिक कठोर परिश्रम की थकाई लोकगीत के ढोलक की थाप दूर करती है। लोक नृत्य की पहचान उसकी पारम्परिक वेश भूषा है, लेकिन इसमे वेश भूषा का कड़ा बन्धन नही है। सदियों की गुलामी के कारण हमारे लोक नृत्य समाज मे अपनी प्रतिष्ठा खो चुके थे, किन्तु स्वतंत्रता के बाद से उन्हे नई चेतना मिली है। अब किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम मे हमे शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ लोक संगीत भी परोसे जाते हैं। नीचे हम भारत के कुछ प्रसिध्द लोक नृत्य का संक्षिप्त वर्णन करेंगे।
गरबा नत्य / Garba dance
यह नृत्य गुजरात प्रान्त का एक लोक प्रिय नृत्य है। इसमे केवल स्त्रियाँ सामुहिक रूप से नृत्य करती हैं। पुरूष भाग नही लेते । इस तरह का नृत्य जो पुरूष के लिए है, गरबी नत्य कहलाता है। अश्विन शुक्ल प्तिपदा से ही यह नृत्य गुजरात के घर-घर मे तथा गाँव-गाँव मे आरम्भ हो जाता है। शरद् ऋतु की सुहावनी रात मे ताली बजाती हुई स्त्रियों का नृत्य और साथ मे गरबा गीत बड़ा आकर्षक लगता है। उस दिन पूजा का एक घट ‘गरबा का घट’ सजाया जाता है।उस पर फूल पत्तियाँ बनायी जाती हैं और बीच मे घी का दीपक जलाया जाता है। इस घट को गरबी कहते हैं। प्रथम नवरात्र को घर-घर मे गरबी को सजाया जाता रात्रि के 8-9 बजे स्त्रियाँ अपने अपने घरों के कामों से निवृत्त होकर उसे एक स्थान पर रखकर उसके चारो ओर एक घेरा बनाती हैं। और रात्रि मे बहुत देर तक ‘गरबा’ करती इस मण्डली की एक नायिका होती है। गीत की एक पंक्ति पहले वह गाती है और उसके पश्चात् अन्य स्त्रियाँ गाती हैं। नर्तक मण्डली पहले एक ओर झुकती है और फिर दूसरी ओर नर्तकियाँ पैर पटकने के साथ साथ हाँथों से ताली भी बजाती हैं। इस प्रकार वह कार्यक्रम घंटों चलता रहता है। नृत्य के साथ साथ गीत भी गाये जाते हैं। साथ-साथ ढोलक भी बजाया जाता है। अब तो अनेक स्थानों पर आधुनिक वाद्य यंत्र भी प्रयोग होने लगे हैं। नृत्य के उपरान्त प्रसाद बाँटा जाता है जिसे ‘सलहानी’ कहते हैं। इस प्रकार नौ दिनो तक यह नृत्य चलता रहता है। अन्तिम दिन ‘गरबी’ घट नदी मे विसर्जित कर दी जाती है। यह नृत्य महाराष्ट्र के गोफां, उत्तर प्रदेश के रास और आन्ध्र प्रदेश के कौलाटम नृत्य से मिलता जुलता है। नर्तकियों के साथ वाद्य कलाकार बहुधा पुरूष हुआ करते हैं।
गरबी नृत्य / Garbi dance
यह गुजरात का एक लोक प्रिय लोक नृत्य है। जिस प्रकार स्त्रियों के लिए गरबा है,उसी प्रकार वहाँ पुरूषों के लिए गरबी नृत्य है। गरबा की भाँति गरबी भी देवी पूजन हेतू सम्पन्न किया जाता है, अन्तर केवल यह है कि गरबा को अन्य अवसरों पर भी किया जाता है ,जबकि गरबी को केवल नवरात्र के दिन। इसमे देवी का एक चित्र मध्य मे रख दिया जाता है और उसके पास एक जलता हुआ दीपक आदि रख दिया जाता नर्तक लोग इसके चारो ओर नृत्य करते हैं। नृत्य मे लयताल का कार्य ताली या चुटकी से लिया जाता है। एक नर्तक गीत गाता है और दूसरे नर्तक उस गीत को दोहराते हैं। वैसे तो गरबी के लिए विशेष रूप से गीत रचे गये हैं, पर प्राय: गरबा मे प्रयुक्त होने वाले गीतों को ही उपयोग मे ले लिया जाता है। ‘गरबी’ नृत्य प्रस्तुत करते समय पुरूष अपनी गुजराती वेश भूषा मे रहते हैं। वे नीचे एक धोती पहनते हैं और नीचे एक कुर्ता। कभी-कभी वह केवल धोती ही पहनते हैं। ‘गरबी’मे मिट्टी के पात्रों का प्रयोग नही किया जाता है।
भाँगड़ा नृत्य / Bhangra dance
पंजाब का भाँगड़ा नृत्य वीर रस प्रधान सामूहिक रोमांचक नृत्य है, अत: इसमे गति की प्रधानता रहती है। वर्तमान समय मे यह पंजाब मे बहुत लोक प्रिय है। ऐसे तो यह पुरूषों का नृत्य है, किन्तु कभी कभी इसे स्त्रियाँ भी करती हैं, किन्तु पुरूषों और स्त्रियों का सम्मिलित नृत्य अधिक प्रचलित नही है। यह उल्लास और वीर रस भावना प्रदर्शक लोक नृत्य है, अत: इस नृत्य का प्रदर्शन खुशी के अवसरों पर किया जाता है। पुरूष नर्तक रंगीन लुंग्गी, ढीला कुर्ता, गले मे माला , कामदार वासकेट तथा सिर पर छोटी सी पगड़ी बांधते हैं। दोनो हाथों मे दो चटक रंग के रूमाल बांधते हैं, और सामूहिक नृत्य करते हैं। इसमे पैर हांथ का संचालन ही विशेष रुप से होता है। मुख के भावों का कोई विशेष महत्व नही होता। लय धीमी गति से प्रारम्भ होती है और क्रमश: तेज होती जाती है। जिस समय लय तेज हो जाती है तो एक नर्तक दूसरे नर्तक के कंधे पर खड़ा हो जाता है। और हांथ से लय देता रहता है। कभी-कभी दो-दो नर्तकों के कंधे पर एक एक खड़ा हो जाता और सब। मिलकर एक घेरा बना लेते हैं। हर समय हाथों या पैरों से या दोनो से लय देते रहते है। यह नृत्य काफी देर तक चलता रहता है। नगाड़ा अथवा ढोलक से संगति करते हैं। बीच-बीच मे चिल्लाते भी हैं अथवा लय के साथ सीटी भी बजाते है। इस प्रकार नृत्य काफी समय तक चलने के बाद गति अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर समाप्त होती है।
शिकारी नृत्य / shikari dance
यह एक लोक प्रिय नृत्य है। वास्तव मे यह बंगाल और असम की पहाड़ी घाटियों के भीलों का एक लोक नृत्य है। अब सभ्य समाज मे स्त्री पुरूष अकेले अथवा सामूहिक रूप से इसे करने लगे हैं। कलाकार सुन्दर वेश भूषा पहनता है, जो बड़ा आकर्षक लगता है। कमर के नीचे जानवर की खाल, गनशले मे माला, कानों मे बड़ी बड़ी बालियाँ, सिर पर लाल रंग की पट्टी और उसमे चिड़ियों के रंग बिरंगे पंख खोसते हैं। पैरों मे घुंघरु और एक हाथ में धनुष बाण अथवा लम्बी नुकिली बर्छी और दूसरे हाँथ मे चमड़े से बनी हुई ढाल रहती है । ऊपर का शरीर नंगा रहता है।
नर्तक शिकार को खोजता हुआ रंग मंच मे प्रवेश करता है। उसके बाद कई वाद्य एक साथ बजाये जाते हैं। देखने वालों को ऐसा मालूम पड़ता है कि मानो वह किसी शिकार की तलाश मे घुम रहा हो। श्रम से थक कर वह मस्तक का पसीना पोछता कभी शिकार को देख कर आनन्द का भाव प्रदर्शित करता है तो कभी उस शिकार के भाग जाने पर बड़ा निराश होता है, और वही पर मुर्छित होकर गिर जाता है। कुछ समय के बाद वह उठता है और फिर शिकार ढुंढने का नृत्य करता है। दूसरी बार शिकार को मारने मे सफल हो जाता है। अत: कुछ देर तक खुशी मे वह नृत्य करता है। उसके बाद शिकार को रस्सी से बांधने का अभिनय करता है और उसे घसीटकर ले जाता है। इसके साथ ही नृत्य समाप्त होता है।
छपेली नृत्य / Chapeli dance –
उत्तर प्रदेश के कुमायुँ भू-भाग का यह नृत्य है। वहां के लोगों की सहृदयता,सरलता, उल्लास, प्रकृतिक सुषमा, तथा निश्चिन्तता का सुन्दर रूप इस नृत्य मे देखने को मिलता है। इसमे कोई भेद भाव नही मिलता है। यह नृत्य अक्सर त्यौहारों, पर्वों और मेलों मे जगह-जगह दिखलाई पड़ता है। इस नृत्य मे दो नर्तक होते हैं। इसमे एक व्यक्ति स्त्री तथा दूसरा पुरूष होता है। उन्ही के अनुरूप नृत्य का आयोजन होता है। इसमे हुँकार और बाँसुरी से संगति की जाती है। साथ-साथ मधुर कण्ठ से गायन भी होता रहता है। छपेली नृत्य खुशी का पवित्र नृत्य है, जिसको देखने से दर्शक मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं।
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