vakra swar in indian classical music

Defination of Vakra swar in Indian classical music  in hindi/वक्र स्वर की परिभाषा

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Defination of Vakra swar in Indian classical music  in hindi is described in this post of Saraswati sangeet sadhana .

Vakra swar / वक्र स्वर –

संगीत में वक्र स्वर का शाब्दिक अर्थ लिया गया है अर्थात गाते –बजाते समय जिस स्वर का प्रयोग सपाट न होकर टेढ़ा –मेढ़ा  हो उसे वक्र स्वर कहते हैं । सपाट स्वर –समुदाय में सवरो का उतार –चढ़ाव बिल्कुल सीधा होता है जैसे –सा रे ग म प अथवा प म ग रे सा ,किन्तु वक्र –समुदाय में ऐसा नहीं होता । आरोह तथा अवरोह बोलते समय जब किसी स्वर तक पहुच कर पीछे लौट आते है और पुनः आगे बढ़ने के लिए उसे स्वर को छोड़ देते हैं तो वह स्वर –चक्र कहलाता है । उदा हरण  रे ग म ग प ,स्वर समुदाय में म स्वर ‘वक्र ‘है ,क्योंकि रे ग म तक सीधे चले जाने के बाद गंधार तक लौट आते हैं और पुनः आगे बढ़ने के लिए मध्यम को छोड़ देते हैं । इसी प्रकार सा रे सा म ,म प ,स्वर –समूह में रिषभ स्वर वक्र है । आलाप में वक्र स्वर का प्रयोग प्रचुरता से होता है , किन्तु तान के प्रकारो में यह नियम कुछ शिथिल हो जाता है ।

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