Ustad Faiyaz Khan Biography in Hindi

Ustad Faiyaz Khan Biography in Hindi Jeevan Parichay Jivini Life Story 1886 -1950

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Ustad Faiyaz Khan Biography in Hindi

जन्म विवरण –

स्थान – आगरा के पास सिकंदरा, उत्तर प्रदेश

जन्म तिथि – 8 फरवरी 1886

फैयाज खाँ की जीविनी 

फैयाज खाँ की जीवनी

परिवार –

पिता – सफदर हुसैन

शिक्षक – गुलाम अब्बास

उत्तर भारतीय संगीत में घरानों का योगदान बडा सराहनीय रहा है। जब कभी आगरा घराने की चर्चा उठती है तो स्व० उ० फैयाज खाँ का नाम स्मरण बरबस हो जाता है।

बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में जितना सम्मान फैयाज खाँ को मिला उतना किसी मुसलमान गायक को नहीं मिला।

काली शेरवानी और सफेद साफा पहनकर अपने शिष्यों के साथ रंगमंबडीअदा के साथ जब पधारते, तो ऐसा मालूम पडता कोई पहलवान गायक है । हष्टपुष्ट शरीर, बडी बडी मूँछे, दोहरा बदन और लगभग 6 फीट की ऊचाई से वे दूर से ही पहचाने जा सकते थे।

प्रारंभिक जीवन –

•              स्व० उस्ताद फैयाज खाँ का जन्म सन 1886 में आगरा में हुआ था। इनके जन्म से 3-4 माह पहले ही इनके पिता की मृत्यु हो गई थी। फैयाज खाँ के पिता का नाम सफदर हुसैन था।

•              फैयाज खान के नाना गुलाम अब्बास (1825-1934), जिन्होंने उन्हें 25 साल की उम्र तक संगीत सिखाया।

•              वह उस्ताद महबूब खान “दरसपिया”, उनके ससुर, नत्यान खान और उनके चाचा फिदा हुसैन खान के छात्र भी थे। ‘हिंदुस्तानी संगीत के महान स्वामी’ नामक “फैयाज खान की संगीत वंशावली स्वयं तानसेन तक जाती है।

व्यक्तिगत जीवन –

•              भारतीय शास्त्रीय संगीत के कुछ विद्वानों द्वारा एक नव-क्लासिकिस्ट माने जाने वाले फैयाज खान को उनकी व्यापक सोच, दयालुता, विनम्रता और अचानक गुस्से के दौरे के लिए जाना जाता था जो लगभग तुरंत ठंडा हो जाता था।

•              उनके सहयोगी, एक रिश्तेदार और एक आजीवन साथी गुलाम रसूल ने 1930 के दशक की एक घटना का वर्णन किया है, जब एक हजार रुपये का नोट उनकी शेरवानी की जेब में रखा हुआ पाया गया था, जब वह धोकर, साफ करके, सुखाकर और इस्त्री करके घर वापस आ गया था। धोबी।

•              रसूल द्वारा इसके बारे में पूछे जाने पर, उस्ताद ने पूरी मासूमियत से जवाब दिया – “मुझे कैसे पता चलेगा कि कौन मुझे क्या दे रहा है और मुझे कैसे पता चलेगा कि एक करेंसी नोट सौ रुपये से अधिक का हो सकता है?”

•              एक अन्य घटना में, जो कुछ वर्षों बाद कानपुर के पास, उनांव में हुई; जब उस्ताद को पता चला कि उनके संरक्षक अपने बेटे के ‘पवित्र जनेऊ समारोह’ का जश्न मनाने के लिए उस्ताद के संगीत समारोह की मेजबानी करने के लिए अपने साधनों से परे खर्च कर रहे थे, फैयाज खान ने अपनी वापसी यात्रा के लिए केवल किराया स्वीकार किया और खरीदे गए सोने की अंगूठी के साथ बच्चे को आशीर्वाद दिया एक दिन पहले दोपहर में टहलने के दौरान स्थानीय सुनार से। फैयाज खान एक महान संगीतकार थे जिन्होंने ‘प्रेम पिया’ उपनाम से कई बंदिशों की रचना की।

आजीविका –

•              फैयाज खाँ किसोर अवस्था से ही अच्छा गाने लगे थे प्रत्येक स्थान पर इनका अच्छा प्रभाव पड़ता। तत्कालीन मैसूर नरेश इनके गायन से बडे प्रभावित हुए । इन्हें  सन.1906 मे एक स्वर्ण पदक और सन 1911 में ‘ आफताबे मौशिकी’ सुशोभित किया गया।

•              बडौदा महाराज फैयाज खाँ की गायकी से बहुत प्रभावित हुए और  इन्हें अपना राज्य गायक नियुक्त किया।

•              फैयाज खाँ में पितृवंश से रंगीले और मातृवंश से आगरा घराने का योग था। उन्होंने दोनों प्रकार की गायकी का सुन्दर समन्वय अपनी गायकी में किया।

•              खाँ साहब का कंठ नीचा किन्तु भरा, जवारीदार और बुलन्द था। काफी नींचे स्वर से गाते थे और गाते समय अपने मूड का ध्यान रखते थे। बहुत सज धजकर बैठते और हिना का इत्र लगाकर पान की डिब्बी लेकर साथ बैठते थे।

•              खाँ साहब ख्याल, ध्रुपद, धमार, ठुमरी,टप्पा,गजल,कव्वाली आदि सभी के गायन में बडे कुशल थे। ख्याल, ध्रुपद और धमार में अद्वितीय थे,किन्तु मोटी आवाज से ठुमरी के प्रत्येक अंग को इतनी सुन्दरता से प्रस्तुत करते थे कि बडा आश्चर्य होता।

•              उनकी गाई हुई ठुमरी का रिकार्ड बाजूबंद खुल खुल जाये बडा प्रसिद्ध है। ख्याल में भी ध्रुपद ,धमार के समान नोम तोम का आलाप करते थे। बीच बीच में तू ही अनन्त हरि कभी कभी बोलते। विस्तृत आलाप करने.के बाद गीत की बंदिश शुरू करते। उनके स्वर लगाने की रीति आगरा घराने का प्रतिनिधित्व करती है और सुनते ही उस घराने की याद आ जाती है। उनका यह अंग उनके शिष्यों में थोड़ा बहुत मिलता है।

•              फैयाज खाँ की गायकी में बडी रंगत थी। वे बोल बनाव और बोल तान में जो आगरा घराने की विशेषता है, बडे निपुण थे। ऐसे ऐसे स्थान से बोल बनाते हुए सम से मिलाते के सुनने वाले को दाँतों तले उंगली दबानी पडती। बीच बीच में कव्वाली के समान बोल बनाते समय हाँ हाँ भी करते जिससे और रंगत बढ जाती। स्वर, लय और ताल पर उन्हें पूर्ण अधिकार था। कहीं से भी गला घुमा देते और बंदिश से मिल जाते, लेकिन सही स्थान पर पहुचते। जबडे की तानों का प्रयोग करते,किन्तु उनकी ताने सुन्दर, स्पष्ट और तैयार थी। उनका राग ज्ञान बहुत अच्छा था। वे प्रत्येक राग को अलग अलग ढंग से गा सकते थे।

•              फैयाज खाँ एक अच्छे रचनाकार भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में अपना नाम प्रेमप्रिया रखा था। उन्होंने बहुत सी बंदिशों की भी रचना की।

जैजैवन्ती में “मोरे मन्दिर अब लौ नही आये”

राग जोग में “आज मोरै घर आये”

ललित राग में निबद्ध  ‘ तडपत हू जैसे जल बिन मीन’

नट बिहाग में “झन झन पायल बाजे रेकाँर्डस”

आदि गीतों की भु रिकार्डिंग भी हो चुकी हैं, और ये गीत बहुत लोकप्रिय और बडे उच्चकोटि के है।

•              बडौदा दरबार में रहते हुए भी वे महाराज की आज्ञा से संगीत सम्मेलनों तथा आकाशवाणी कार्यक्रम में भाग लेने जाते।

•              जैजैवंती, ललित, दरबारी, सुघराई, तोड़ी, रामकली, पूरिया, पूर्वी आदि उनके प्रिय राग थे।

•              उनके प्रमुख शिष्यों में स्व० पं० यस० यन० रातनजनकर, दिलिप चन्द्र बेदी, विलायत हुसैन, लताफत हुसैन, शराफत हुसैन, अजमत हुसैन, अता हुसैन आदि थे।

गुरुकुल वंश

उनके कुछ जाने-माने छात्र थे –

•              विदुषी दीपाली नाग

•              दिलीप चंद बेदी

•              सोहन सिंह

•              असद अली खान

•              ध्रुवतारा जोशी

•              श्रीकृष्ण रतनजंकर

•              ज्ञानेंद्र प्रसाद गोस्वामी

•              खादिम हुसैन खान

•              विलायत हुसैन खान

•              लताफत हुसैन खान

•              अता हुसैन खान

•              शराफत हुसैन खान।

फैयाज खान स्वयं किराना घराने के अब्दुल करीम खान के प्रशंसक थे। एसएन रतनजंकर शायद उनके अंतिम शिष्य थे जिन्होंने एक शिक्षक और एक कलाकार के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

अन्य सूचना

•              मृत्यु तिथि – 5 नवम्बर 1950

•              स्थान – बड़ौदा।

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