k-C-D-BRAHASPATI biography in hindi

Biography of K C D Brahaspati Musician-Jivni in Hindi

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Biography ( Lifesketch ) of K C D Brahaspati Musician-Jivni in Hindi is described in this post of Saraswati sangeet sadhana .

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K C D Brahaspati Musician-Jivni

 

कैलाश चन्द्र देव ब्रहस्पति (आचार्य ब्रहस्पति ) (के । सी । देव ब्रहस्पति) की जीविनी 

 

जन्म –

श्री कैलाश चन्द्र देव ब्रहस्पति का जन्म पोष शुक्ल अस्टमी रविवार विक्रमात्व 1974 सन 1918 ई. को उत्तरप्रेदेश के रामपुर राज्य में हुआ । इनके पिता श्री गोविंद राम , दादा पं. अयोध्या प्रसाद तथा परदादा पं. बुद्धसेन जी उच्चकोटी के विद्वान थे । अयोध्याप्रसाद को उनके चाचा पं. दत्ताराम जी ने गोद ले लिया था । पं. दत्ताराम जी न्याय , व्याकरण , कर्मकांड , ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, सिद्ध तांत्रिक तथा महान संगीतज्ञ थे । संक्षेप रूप में यह कहा जा सकता है की कैलाशचंद्र देव को संगीत को शिक्षा दीक्षा पैतृक विरासत में मिली । दस वर्ष की आयु में ही कैलाशचंद्र को पित्र स्नेह से वंचित होना पड़ा । पित्र स्नेह रूपी छाया से विहीन बालक को उनकी मटा नर्मदा देवी ने कुलीन संस्कारो से सींचा और संगीत क्षेत्र में वैट व्रक्ष रूप मेन स्थापित किया । इस प्रकार बाल्य अवस्था से ही कैलाश चन्द्र वंश परंपरा के निर्वाह के प्रति भी द्रर रहने लगे ।

आचार्य ब्रहस्पति का उच्चारण साड़े तीन वर्ष की अवस्था में पूर्णतया शुद्ध था । पाँच वर्ष की आयु में “ चाणक्य नीति” व ‘पांडव गीता’ के श्लोको के साथ दुर्गा सप्तशती के ‘कवच’ अर्मला और कौलक भी इन्हे कंठस्थ थे । ग्याहरेवे वर्ष में इनहोने ‘सवैया चंद’ की रचना करना प्रारम्भ कर दिया था । चौदहवे वर्ष की आयु में अयोध्या की पंडित परिषद ने संस्कृत में स्लोके रचना से संतुस्ट होकर इन्हे ‘काव्य मनीषी’ व ‘साहित्य – सूरि’ उपध्यों से विभूषित किया था ।

संगीत व शस्त्र ग्रंथो की शिक्षा –

रामपुर दरबार के संगीतज्ञ सईयद मिर्जा नवाब हुसेन कंठ संगीत में ब्रहस्पति जी के गुरु थे । ताल व्यवहार में इसी दरबार के स्व. प. अयोध्या प्रसाद के शिया बने । इनहोने अलंकार शस्त्र को शिक्षा महाम्न्होध्याय प. पेरमेश्वरानन्द शास्त्री , न्याए की शिक्षा की शिक्षा श्री स्व. प. हरीशंकर झा , व्याकरण की शिक्षा प. छेदी झ , तथा प्रारम्भिक शिक्षा श्री प. कन्हैया लाल शुल्क , राजपण्डित रामचंद्रा शास्त्री तथा अपने पिता से प्राप्त की ।

संगीत क्षेत्र में योगदान –

कैलाश चन्द्र देव ने महत्वपूर्ण ग्रंथो से संगीत संबंधी ऐसे मुलहये सूत्र एकत्रित किए जिनको आधार बना कर उन्होने भारतिए संगीत को सम्पूर्ण  जगत के समक्ष स्पस्ट रूप से रखा । नवम्बर मास सन 1955 में इनहोने बंबई की सुर श्रिंगर संसद द्वारा आयोजित सेमिनार में जब अध्यक्षीय भाषण दिया तब श्रोताओ ने संगीत जगत में उभरते हुए इस सितारे का मूलये पहचाना । इस सेमिनार में आचार्ये ने भारतिए संगीत की विभिन्न कालीन परिवर्तित स्थितियों का सकारण विवेचन किया । 1956 ई. सितम्बर मास में आल  इंडिया रेडियो देहली द्वारा आयोजित सेमीनार में आचरये ब्रहस्पति ने ‘रस सिद्धान्त’ पर अपना मौलिक निबंध पड़ा । इसी सेमीनार में आचार्य जी ने महरीशि भरत के ‘ऋति दर्पण’ नमक वाद्य पर  श्रुति मण्डल का प्रक्तक्षीकारण चर्चित किया । आचार्य ब्रहस्पति न महर्षि भरत के सिद्धांतों को वैज्ञानिक परीक्षा के संबंध में कहा है की “ जहां तक श्रुतियों व स्वरों के पारिमाणों की परीक्षा का संबंद है मुझे एसमें कोई आपति नहीं है की ‘नेशनल लेबोरेट्री’ जैसी प्रयोगशाला में अधिकारी वैज्ञानिकों के द्वारा मेरे अनुसंधान के परिणामो को पश्च्त्ये विज्ञान की कसौटी पर कसा जाए । यदि यह कसोटी खोटी नहीं है तो , महर्षि भरत की स्थापनए अपनी समानता व व्यवहारयता को सिद्ध कर देगी । इस वैज्ञानिक परीक्षा को शिघ्रातिशीघ्र करके अंतिम निर्णये देना शशन का कर्तव्य है , जिससे की इस संबंध में फैली अनेक भ्रांत धारणाओं का निराकरण हो सके और उन क्षेन्नों का मुख – मुदरण हो जाए जो महर्षि भरत जैसे पुरुषो के वाक्यों में अश्रद्धा का निरंतर निर्माण करते रहे हैं कर रहे है ।

गंधर्व महाविध्यालय दहले में निमंतरण एक प्रैस कोन्फ्रेंस में आचार्य ने प. भीष्मवेदी द्वारा ‘श्रुति – दर्पण’ पर श्रुति मण्डल को मूर्त कराकर ‘ यमन – कल्याण’ व दरबारी के प्रथक- प्रथक ऋषम तथा तोड़ी व पीलू के प्रथक – प्रथकगांधार जैसे सूक्ष्म स्वरों का दर्शन भरत के श्रुति मण्डल में कराया । दूसरी सारना में इनहोने अंतर गांधार , काकली निषाद तथा सरना के परिणामस्वरूप ने वराली मध्यम कहा है । इस संबंध में अपनी पुष्टि करते हुए आचार्ये जी कहते हैं की ‘ यह एक भ्रम है की आधुनिक तीव्र मध्यम प्राचीन ‘मध्यांग्रामिक’ पंचम से अभिन्न है । वस्तुत तीव्र मध्यम पंचम की दूसरी श्रुति पर तथा ‘मध्यम ग्रामिक पंचम ‘ पंचम की तीसरी श्रुति पर है ।

सम्मान व पुरुसकर –

संगीत रचनाओ के लिए आचार्य ब्रहस्पति को राष्ट्रपति द्वारा आचार्ये ब्रहस्पति संगीत नाटक अकादेमी के ‘रत्न सदस्य’ के रूप में सम्मानित किया । अखिल भारतीय गंधर्व मण्डल ने उन्हे ‘संगीत महामाहोपाध्याय पदवी देकर सम्मानित किया गया ।  द्वारिकापीठ के शंकरचर्ये ने आचार्ये जी को उनके   सर्वतोमुखी पंडितय के कारण विद्या मार्तण्ड की पदवी दी ।

 संगीत संबंधी पुस्तके –

ब्रहस्पति जी ने संगीत के लेखन क्षेत्र पे भी काफी योगदान दिया । भरत का संगीत शिद्धांत , संगीत चिंतामणि , ध्रुव्पड और उसका विकास , मुसलमान और भारतीय संगीत , संगीत समयसार , राग रहस्य , नाट्यशास्त्र का अट्ठाईसवा अध्याय , खुसरो तानसेन तथा अन्य कलाकार , ब्रज वल्लरी विलास , मेघ का कवि इनकी प्रामूक सोगौतीक पुस्तके हैं ।

राग व रचनए –

आचार्ये ब्रहस्पति जी ने कुछ नवीन राग भी बनाए जो की प्रभात रंजनी ।

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